प्रशासन से हर व्यक्ति किसी न किसी रुप से जुड़ा होता है। इसलिए उसे नौकरशाहों से भी काम पड़ता है। सच तो यह है कि नौकरशाहों के बिना प्रशासन को नहीं चलाया जा सकता है। इसके बाद भी नौकरशाहों के कार्यों की समीक्षा हर कोई करने का प्रयास करता है। भारत में अंग्रेजी शासन से नौकरशाही का विकास हो रहा है। ‘नौकरशाही’ एक ऐसा शब्द है, जिसका प्रयोग पहले अनादर और घृणा के साथ किया जाता है, इस शब्द में एक प्रकार के दुरुपयोग की गंध मिलती है।असैनिक कर्मचारियों की आलोचना तथा निंदा करते समय ही इस शब्द का प्रयोग किया जाता था नौकरशाही ही वह व्यवस्था है, जिसमें सरकारी कार्यों का संचालन एवं निदेशन उन लोगों द्वारा किया जाता है, जो जनहित से जुड़कर विशेष प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं और कानून का अक्षरशः पालन करनेवाले होते हैं। इस व्यवस्था के आलोचक कहते हैं कि इसके अंतर्गत कर्मचारी अपना उत्तरदायित्व जनता के प्रति तनिक भी नहीं समझते, जबकि उनका उद्देश्य जनता की भलाई करना ही होता है। ये अपने को उच्चतर पदाधिकारी के प्रति उत्तरदायी समझते हैं और उनका काम निर्जीव मशीन की तरह पदसोपान विधि द्वारा चलता रहता है। नौकरशाह या लोकसेवक से मर्यादित व्यवहार की उम्मीद भी की जाती है। लेकिन कई बार ऐसे उदाहरण सामने आते हैं जिसमें लोकसेवक अपने व्यक्तिगत स्वार्थों और क्षुद्रताओं के कारण शासकीय सदाचार का पालन नहीं करता है। इससे लोकसेवकों के साथ सरकारी तंत्र की भी किरकिरी होती है। देश-प्रदेश में अक्सर ऐसी घटनाएं होती रहती हैं जैसे एसडीएम ज्योति मौर्य प्रकरण।
यह विषय अब साहित्य से अछूता नहीं रहा। कई पत्रकारों और साहित्यिकारों ने इस विषय पर अपनी लेखनी चलाई है। आजकल इस विषय पर आने वाली किताब “माली ” की चर्चा है। माली एक उपन्यास है जिसके लेखक
डॉ. दिनेश श्रीवास हैं जो एक प्राध्यापक हैं। उपन्यास का प्रकाशन दिल्ली-एनसीआर के नामी प्रकाशक पुस्तकनामा द्वारा किया जा रहा है। यह उपन्यास नौकरशाही के बारे में जनमानस की अवधारणा, भ्रष्टाचार की मौजूदगी, नवाचार की कमी और व्यवस्था में सुधार की आवश्यकता पर भी प्रकाश डालती है।
लेखक ने ‘सुशासन के लिए कई सूत्र’ भी सुझाए हैं। लेखक ने नौकरशाहों के कथा-व्यथा को साहित्यिक अंदाज में अभिव्यक्त किया है। लोकसेवकों के सार्वजनिक जीवन से लेकर व्यक्तिगत की झांकी इसमें मिलती है। लोकसेवक के व्यक्तिगत संस्कार और क्षुद्रताएं उसके प्रशासनिक व्यवहार को कैसे प्रभावित करते हैं इसमें देखने मिलेगा। इसमें आईएएस, तहसीलदार, डॉक्टर, प्राध्यापक,शिक्षक, पुलिसकर्मी सभी हैं। लेखक मानता है कि नौकरशाह या लोकसेवक अन्ततः एक मनुष्य है। इसलिए उसमें दूर्गुण हो सकते हैं लेकिन लोकहितार्थ इन दूर्गुणों को परिष्कृत किया जाना चाहिए तभी सुशासन संभव है।