नई दिल्ली:- एडीएचडी यानी अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर जिसे हिन्दी में ध्यानाभाव एवं अतिसक्रियता विकार के नाम से भी जाना जाता है। यह एक न्यूरोडेवलपमेंटल डिसऑर्डर है, जो हमारे मस्तिष्क के कार्यों को प्रभावित कर देता है। यह बीमारी बचपन से ही शुरू होती है और इसलिए बचपन में ही इसके लक्षण दिखने लगते हैं। जबकि कई बार लक्षण कम होने की वजह से बचपन में नहीं दिखते हैं और के साथ-साथ लक्षण गंभीर होते रहैं और बाद में व्यक्ति में एडीएचडी पाया जाता है। हालांकि, बचपन में ही इसके लक्षण दिख जाने से इसके लक्षणों को मैनेज करने के कुछ उपाय किए जा सकते हैं, ताकि इसके साथ जीवन में होने वाली जटिलताओं को कुछ हद तक कम किया जा सके। इस लेख में हम आपको एडीएचडी से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण जानकारी देने वाले हैं, जो काफी मदद कर सकते हैं –
बच्चों में एडीएचडी के लक्षण
एडीएचडी के लक्षणों की जितनी जल्दी पहचान हो जाए, इसे मैनेज करने में उतना ही आसानी रहती है। हालांकि, बचपन में कई बार एडीएचडी के लक्षणों की पहचान करना मुश्किल हो सकता है, लेकिन बच्चे में कुछ असामान्य बदलावों की पहचान करके एडीएचडी का पता लगाया जा सकता है, जिनके बारे में हम आपको इस लेख में बताने वाले हैं। बच्चों में एडीएचडी के लक्षण कुछ इस प्रकार हो सकते हैं।
एक जगह पर चुपचाप न बैठ पाना
पूरा दिन कोई न कोई एक्टिविटी करते रहना
जरूरत से ज्यादा फिजिकल मूवमेंट करना
बहुत ज्यादा बोलना और ठीक से बोल न पाना
स्कूल या घर में अपनी बारी की प्रतीक्षा न कर पाना
बिना सोचे समझे प्रतिक्रिया देना
बच्चों में एडीएचडी के कारण
एडीएचडी एक जेनेटिक डिजीज है और इसलिए इसके सटीक कारण का अभी पता नहीं चल पाया है। रिसर्चों में भी यह पाया गया है कि व्यक्ति के जीन इस बीमारी के होने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। अगर किसी व्यक्ति के करीबी रिश्तों में जैसे माता, पिता या भाई-बहन में किसी को थोड़ी बहुत भी एडीएचडी की समस्या है, तो उसमें भी यह बीमारी होने का खतरा काफी हद तक बढ़ जाता है।
बच्चों में एडीएचडी का इलाज
एडीएचडी को इलाज की मदद से जड़ से खत्म नहीं किया जा सकता है, लेकिन उपलब्ध इलाज विकल्पों की मदद से एडीएचडी के लक्षणों को कुछ हद तक कंट्रोल किया जा सकता है। एडीएचडी के इलाज में दवाओं के साथ-साथ बिहेवियरल थेरेपी, काउंसलिंग, साइकोएजुकेशन और अन्य कई ट्रीटमेंट थेरेपी की जाती हैं। एडीएचडी का इलाज में सिर्फ इसके लक्षणों को कुछ हद तक कम किया जा सकता है और मरीज के जीवन जीने की होने वाली जटिलताओं को कुछ हद तक कम किया जा सकता है। अभी तक इस बीमारी को जड़ से खत्म करने के लिए कोई इलाज नहीं बन पाया है, लेकिन अभी इन जेनेटिक बीमारियों का जड़ से इलाज ढूंढने के लिए लगातार रिसर्च चल रहे हैं।