जब कभी क्लाइमेट चेंज की बात होती है, तो दिमाग में साउथ पोल की पिघलती हुई बर्फ की तस्वीर आती है. यह सही है कि बर्फ के पिघलने से तटीय देश समुद्र की ऊंची लहरों में डूब जाएंगे. लेकिन इस बर्फ में कुछ ऐसा छिपा हुआ है, जो अगर बाहर आ गया तो जमीनी या किसी भी तरह के इलाके में रहने वाले लोगों का बच पाना नामुमकिन है.वैज्ञानिक ने पाया है कि आर्कटिक की बर्फ में खतरनाक गैस मीथेन जमी हुई है. उससे ज्यादा चिंता की बात यह है कि बर्फ की चादर के नीचे हजारों सालों पुराना ज़ॉम्बी वायरस दफन है. अगर बर्फ के पिघलने की दर ऐसी ही रहती है, तो जल्द धरती एक ऐसे प्राकृतिक आपदा की चपेट में होगी जिसका समाधान निकाल पाना शायद ही मुमकिन हो.
आइए जानते हैं कि ये ज़ॉम्बी वायरस क्या है और इससे धरती को कितना खतरा है.ग्लेशियर से बड़ी परेशानी है पर्माफ्रॉस्टआमतौर पर लोगों को लगता है कि जलवायु परिवर्तन से सिर्फ आर्कटिक के ग्लेशियर ही पिघल रहे हैं. लेकिन धरती के बढ़ते तापमान से आर्कटिक के पर्माफ्रॉस्ट भी पिघल रहे हैं. पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से इंसानों को कई गुना घातक आपदा का सामना करना पड़ सकता है. आगे बढ़ने से पहले पर्माफ्रॉस्ट के बारे में समझना जरूरी है
पर्माफ्रॉस्ट वो जमीन है जो लगातार, कम से कम, दो सालों तक पूरी तरह से जमी (0 डिग्री सेल्सियस या इससे नीचे का तापमान) रहती है. ये जमीन ऐसे मिट्टी, पत्थर और रेत की बनी होती है जिन्हें बर्फ साथ जोड़कर रखती है. पर्माफ्रॉस्ट में मिट्टी और बर्फ पूरे साल जमी रहती है. सतह के पास, पर्माफ्रॉस्ट मिट्टी में बड़ी मात्रा में ऑर्गेनिक कार्बन होता है. यह मरे हुए पौधों का बचा हुआ वो पदार्थ होता है जो ठंड के कारण डीकंपोज या सड़ नहीं पाता. इसके अलावा, पर्माफ्रॉस्ट के नीचे की परतों में ज्यादातर खनिजों से बनी मिट्टी होती है.Permafrostधरती के बढ़ते तापमान से आर्कटिक के पर्माफ्रॉस्ट भी पिघल रहे हैं.
(NASA/JPL)पर्माफ्रॉस्ट पिघला तो क्या होगा?जैसे-जैसे धरती का तापमान बढ़ रहा है, वैस-वैसे पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने का दर भी बढ़ रहा है. पर्माफ्रॉस्ट पिघला तो एक साथ कई परेशानियों का पिटारा पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लेगा. दरअसल, जब पर्माफ्रॉस्ट जमा हुआ होता है, तो मिट्टी में मौजूद ऑर्गेनिक कार्बन टूट या डीकंपोज नहीं हो पाता. जैसे ही पर्माफ्रॉस्ट पिघलता है, माइक्रोब्स इस कार्बन को तोड़ना शुरू कर देते हैं. इस प्रोसेस से वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन जैसी ग्रीनहाउस गैस बाहर निकलती हैं. ग्रीनहाउस गैस वो गैस होती हैं जो धरती की गर्मी को अंतरिक्ष में जाने से रोकती हैं.
नतीजन, पृथ्वी का तापमान और बढ़ता है. इस तरह एक ऐसे चक्र की शुरूआत होती है, जो वातावरण को धीरे-धीरे रहने लायक नहीं छोड़ेगा.ज़ॉम्बी वायरस का प्रकोपजब पर्माफ्रॉस्ट पिघलता है, तो बर्फ और मिट्टी में कैद प्राचीन बैक्टीरिया और वायरस भी इंसानों के संपर्क में आते हैं. आम भाषा में इन्हें ज़ॉम्बी वायरस कहते हैं. अमेरिका की हेल्थ एजेंसी NCBI के अनुसार, ‘ज़ॉम्बी वायरस’ शब्द उन वायरस को संदर्भित करता है जो लंबे समय से इनएक्टिव हैं.साल 2013 में साइबेरिया के पर्माफ्रॉस्ट में 30,000 साल पुराना वायरस पहचाना गया था.
कुछ समय पहले, रूस में जमी हुई झील में इससे भी 10 हजार साल पुराना पैंडोरावायरस येडोमा ज़ॉम्बी वायरस मिला है. रिपोर्ट के अनुसार, वहां ऐसा ज़ॉम्बी वायरस मिला है जो हजारों सालों तक जमे रहने के बाद भी संक्रामक है. वैज्ञानिकों का मानना है कि ये वायरस इंसानों और जानवरों दोनों के लिए गंभीर बीमारियों का कारण बन सकता है.
पर्माफ्रॉस्ट पिघलने से बाहर आएंगे ज़ॉम्बी वायरस (U.S. Geological Survey)क्यों हजारों साल पुराने वायरस हैं चिंत की बात?ज़ॉम्बी वायरस चिंता की बात इसलिए है क्योंकि हम इंसानों का इम्यून सिस्टम इन प्राचीन वायरसों के लिए तैयार नहीं है. एकस्पर्ट्स मानते हैं कि अगर ज़ॉम्बी वायरस का संक्रमण फैलता है, तो हमारा इम्यून सिस्टम इनसे निपटने में सक्षम नहीं है. क्योंकि प्राचीन वायरस की संरचना आज के वायरस से बहुत अलग होगी, इसलिए ज़ॉम्बी वायरस से लड़ने के खिलाफ कोई दवा और टीका भी तुरंत उपलब्ध नहीं हो पाएगा.शोध में पता चला है कि सभी ज़ॉम्बी वायरस फैल सकते हैं और नई महामारी को जन्म दे सकते हैं.