नई दिल्ली :– आरएसएस और बीजेपी की जुबानी जंग थमने का नाम नहीं ले रही है। हर दूसरे दिन कोई न कोई बयान इस जंग की आग में पेट्रोल छिड़क जाता है। फिर चाहे वह संघ प्रमुख मोहन भागवत का बयान हो या इंद्रेश कुमार का। इसके अलावा बात अब केवल जुबानी जंग तक ही सीमित नहीं रही है। यह कलम तक आ चुकी है। संघ का मुखपत्र कही जानी वाली पत्रिका ‘द आर्गेनाइजर’ का ताजा लेख भी यही इशारा कर रहा है।
18 मई को भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष जय प्रकाश नड्डा ने एक इंटरव्यू के दौरान कहा कि भाजपा अब उस स्थिति से आगे निकल चुकी है। जब उसे आरएसएस की ज़रूरत थी। अब बीजेपी अपने दम पर पूरी तरह सक्षम है और अपना काम अपने मुताबिक चलाती है। नड्डा ने कहा था कि “पार्टी बड़ी हो गई है और सबको अपनी भूमिकाएं मिल चुकी हैं। आरएसएस एक सांस्कृतिक और सामाजिक संगठन है और हम एक राजनीतिक। ज़रूरत का सवाल ही नहीं है। वो वैचारिक रूप से अपना काम करते हैं और हम अपना।
क्यों शुरू हुआ यह कथित विवाद
बीजेपी अध्यक्ष का यह ‘आत्मनिर्भर’ बयान शायद आरएसएस को रास नहीं आया। संघ प्रमुख मोहन भागवत ने चुनाव नतीजों के बाद एक बयान में कहा कि “जो मर्यादा का पालन करते हुए काम करता है। वह गर्व तो करता है, लेकिन अहंकार नहीं करता। वही सही अर्थों में सेवक कहलाने का अधिकारी है।” सरसंघचालक यहीं नहीं रुके, उन्होंने मणिपुर का जिक्र करते हुए सरकार को नसीहत भी दी। भागवत ने कहा कि सरकार का कर्तव्य है कि इस हिंसा को रोके। मोहन भागवत इससे पहले भी मणिपुर हिंसा पर बयान दे चुके हैं।
इंद्रेश कुमार ने दोबारा दी हवा
मोहन भागवत के इस बयान पर सियासी फिजाओं में खूब घोला गया। चर्चा हुई कि यह बयान नतीजों को बाद 303 से 241 पर सिमटी बीजेपी को संघ प्रमुख ने जवाब दिया है। इसे नड्डा के बयान से जोड़कर देखा गया। लेकिन कुछ दिन बीते और मामला चर्चा से दूर हो गया। जिसे बीते कल यानी शुक्रवार को इंद्रेश कुमार ने एक बार फिर हवा दे दी।
बीजेपी को लेकर क्या बोले इंद्रेश
आरएसएस के इंद्रेश कुमार ने कहा कि “2024 में राम राज्य का विधान देखिए…जिनमें राम की भक्ति थी और धीरे-धीरे अहंकार आ गया। उन्हें 240 सीटों पर रोक दिया। जिन्होंने राम का विरोध किया, उनमें से राम ने किसी को भी शक्ति नहीं दी। उन्होंने आगे कहा कि तुम्हारी अनास्था का यही दंड है कि तुम सफल नहीं हो सकते।
रतन शारदा के लेख में भी वही बात
इंद्रेश कुमार के इस बयान के बाद जिस चर्चा या कथित विवाद का पटाक्षेप हो चुका था वह फिर से शुरू हो गया। दूसरी तरफ संघ का मुखपत्र में भी लोकसभा चुनाव 2024 में भाजपा के प्रदर्शन पर एक समीक्षात्मक लेख छपा। इस लेख में संघ के आजीवन सदस्य रतन शारदा ने बीजेपी पर तीख प्रहार करते हुए कहा कि दिखावा करना बीजेपी का नया मानदंड बन चुका है।
क्या हैं इस जुबानी जंग के मायने
इन बयानों और नसीहतों को लेकर राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि संघ और बीजेपी के बीच बड़ा मतभेद भले ही न हो लेकिन थोड़ा बहुत तनाव ज़रूर है। इस तनाव के पीछे बीजेपी को वजह माना जा रहा है। कहा जा रहा है कि बीजेपी खुद को आरएसएस से अलग बताकर खुद की छवि ‘सबका साथ, सबका विकास’ और ‘सबका विश्वास’ वाली बनाना चाहती है।