नई दिल्ली:– एनसीईआरटी की 12वीं की पॉलिटिकल साइंस को संशोधित किताब पिछले सप्ताह बाजार में आ चुकी है। एनसीईआरटी की किताब में अयोध्या विवाद से लेकर बाबरी मस्जिद से जुड़े कुछ बदलाव किए गए हैं। संशोधित पाठ्यपुस्तक में बाबरी मस्जिद का नाम नहीं लिया गया है, इसे ‘तीन गुंबद वाली संरचना’ कहा गया है। पाठ्यपुस्तक में अयोध्या खंड को चार से दो पृष्ठों का कर दिया गया है। साथ ही पहले संस्करण से महत्वपूर्ण विवरण हटा दिए गए हैं। इनमें गुजरात के सोमनाथ से अयोध्या तक बीजेपी की रथ यात्रा; कारसेवकों की भूमिका; 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद सांप्रदायिक हिंसा; भाजपा शासित राज्यों में राष्ट्रपति शासन; और भाजपा द्वारा “अयोध्या की घटनाओं पर खेद” व्यक्त करने को शामिल किया गया है।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में अप्रैल महीने में एनसीईआरटी की पाठ्यपुस्तक में बदलाव को लेकर जानकारी दी गई थी। अब चूंकि किताब बाजार में आ चुकी है तो एक नजर किताब में हुए महत्वपूर्ण बदलावों पर डालते हैं।
बाबरी मस्जिद की जगह तीन गुंबद वाली संरचना
पुरानी किताब में बाबरी मस्जिद को 16वीं सदी की मस्जिद के रूप में पेश किया गया है जिसे मुगल बादशाह बाबर के जनरल मीर बाकी ने बनवाया था। अब, अध्याय में इसे ‘तीन गुंबद वाली संरचना’ के रूप में संदर्भित किया गया है 1528 में श्री राम के जन्मस्थान पर बनाया गया था, लेकिन संरचना के अंदरूनी और बाहरी हिस्सों में हिंदू प्रतीकों और अवशेषों का स्पष्ट प्रदर्शन था।
नया पैरा जोड़ा गया
पुरानी किताब में दो पन्नों से ज्यादा फैजाबाद जिला अदालत के आदेश पर फरवरी 1986 में मस्जिद के ताले खोले जाने के बाद ‘दोनों तरफ’ की लामबंदी का वर्णन किया गया था। इसमें सांप्रदायिक तनाव, सोमनाथ से अयोध्या तक आयोजित रथ यात्रा, दिसंबर 1992 में राम मंदिर निर्माण के लिए स्वयंसेवकों द्वारा की गई कार सेवा, मस्जिद का विध्वंस और उसके बाद जनवरी 1993 में हुई सांप्रदायिक हिंसा का ज़िक्र किया गया है। इसमें बताया गया है कि कैसे भाजपा ने ‘अयोध्या में हुई घटनाओं पर खेद व्यक्त किया’ और ‘धर्मनिरपेक्षता पर गंभीर बहस’ का जिक्र किया। इसे एक पैराग्राफ से बदल दिया गया है: ‘1986 में, तीन गुंबद वाली संरचना से संबंधित स्थिति ने एक महत्वपूर्ण मोड़ ले लिया जब फैजाबाद (अब अयोध्या) जिला अदालत ने संरचना कोखोलने का फैसला सुनाया, जिससे लोगों को वहां पूजा करने की अनुमति मिल गई। यह विवाद कई दशकों से चल रहा था क्योंकि ऐसा माना जाता था कि तीन गुंबद वाली संरचना श्री राम के जन्मस्थान पर एक मंदिर को ध्वस्त करने के बाद बनाई गई थी। हालांकि, मंदिर के लिए शिलान्यास किया गया था, लेकिन आगे के निर्माण पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। हिंदू समुदाय को लगा कि श्री राम के जन्मस्थान से संबंधित उनकी चिंताओं को नजरअंदाज कर दिया गया था, जबकि मुस्लिम समुदाय ने संरचना पर अपने कब्जे का आश्वासन मांगा था। इसके बाद, स्वामित्व अधिकारों को लेकर दोनों समुदायों के बीच तनाव बढ़ गया, जिसके परिणामस्वरूप कई विवाद और कानूनी संघर्ष हुए। दोनों समुदाय लंबे समय से चले आ रहे मुद्दे का निष्पक्ष समाधान चाहते थे। 1992 में, संरचना के विध्वंस के बाद, कुछ आलोचकों ने तर्क दिया कि यह भारतीय लोकतंत्र के सिद्धांतों के लिए एक बड़ी चुनौती पेश करता है।
पाठ्यपुस्तक के नए संस्करण में अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर एक उपखंड जोड़ा गया है। इसमें कहा गया है कि ‘किसी भी समाज में संघर्ष होना लाजिमी है’, लेकिन ‘एक बहु-धार्मिक और बहुसांस्कृतिक लोकतांत्रिक समाज में, ये संघर्ष आमतौर पर कानून की उचित प्रक्रिया के बाद हल हो जाते हैं’। इसके बाद इसमें अयोध्या विवाद पर 9 नवंबर, 2019 को सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ के 5-0 के फैसले का उल्लेख किया गया है। उस फैसले ने मंदिर के लिए मंच तैयार किया – जिसका उद्घाटन इस साल जनवरी में हुआ। पाठ्यपुस्तक में कहा गया है, ‘फैसले ने विवादित स्थल को राम मंदिर निर्माण के लिए श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट को आवंटित किया और संबंधित सरकार को सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को मस्जिद के निर्माण के लिए उपयुक्त स्थल आवंटित करने का निर्देश दिया। इस तरह, लोकतंत्र हमारे जैसेबहुलतावादी समाज में संघर्ष समाधान के लिए जगह देता है, जो संविधान की समावेशी भावना को बनाए रखता है। पुरातात्विक उत्खनन और ऐतिहासिक अभिलेखों जैसे साक्ष्यों के आधार पर कानून की उचित प्रक्रिया के बाद इस मुद्दे को सुलझाया गया। सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का समाज ने बड़े पैमाने पर जश्न मनाया। यह एक संवेदनशील मुद्दे पर आम सहमति बनाने का एक उत्कृष्ट उदाहरण है जो लोकतांत्रिक लोकाचार की परिपक्वता को दर्शाता है जो भारत में सभ्यतागत रूप से निहित है।’
समाचार पत्रों के लेखों की तस्वीर हटाई
पुरानी पाठ्यपुस्तक में समाचार पत्रों के लेखों की तस्वीरें थीं, जिनमें 7 दिसंबर, 1992 का एक लेख भी शामिल था, जिसका शीर्षक था ‘बाबरी मस्जिद ढहाई गई, केंद्र ने कल्याण सरकार को बर्खास्त किया।’ 13 दिसंबर, 1992 के एक अन्य शीर्षक में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का कथन उद्धृत किया गया था, ‘अयोध्या भाजपा की सबसे बड़ी गलती थी।’ सभी समाचार पत्रों की कतरनें अब हटा दी गई हैं।पुराने सुनवाई की जगह नए फैसले का जिक्र
पुरानी किताब में सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस वेंकटचलैया और जस्टिस जी एन रे द्वारा मोहम्मद असलम बनाम भारत संघ मामले में 24 अक्टूबर 1994 को दिए गए फैसले में की गई टिप्पणियों का एक अंश था, जिसमें कल्याण सिंह को ‘कानून की गरिमा को बनाए रखने’ में विफल रहने के लिए अदालत की अवमानना का दोषी ठहराया गया था। और कहा गया था कि ‘चूंकि अवमानना बड़े मुद्दों को उठाती है जो हमारे देश के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने की नींव को प्रभावित करती है, इसलिए हम उन्हें एक दिन के सांकेतिक कारावास की सजा भी देते हैं।’ अब इसे 9 नवंबर, 2019 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के एक अंश से बदल दिया गया है, जिसमें कहा गया है: ‘…इस न्यायालय के प्रत्येक न्यायाधीश को न केवल संविधान और उसके मूल्यों को बनाए रखने का कार्य सौंपा गया है, बल्कि इसकी शपथ भी ली गई है। संविधान एक धर्म और दूसरे धर्म की आस्था और विश्वास के बीच अंतर नहीं करता है। सभी प्रकार की आस्था, पूजा और प्रार्थना समान हैं…इस प्रकार यह निष्कर्षप्रकार यह निष्कर्ष निकाला गया है…कि मस्जिद के निर्माण से पहले और उसके बाद से हिंदुओं की आस्था और विश्वास हमेशा से यही रहा है कि भगवान राम का जन्मस्थान ही वह स्थान है जहा बाबरी मस्जिद का निर्माण किया गया है, जो आस्था और विश्वास दस्तावेजी और मौखिक साक्ष्यों से साबित होता है।