नई दिल्ली:– प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो दिन के रूस दौरे पर जा रहे हैं। पीएम की यह यात्रा उस वार्षिक द्विपक्षीय शिखर बैठक का हिस्सा है, जो 2001 में शुरू हुई थी। यह बैठक हर साल बार-बारी से भारत और रूस में आयोजित की जाती है। 2020 में कोविड-19 और फिर 2022 और 2023 में रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते इसे रोकना पड़ा था। डिफेंस, स्पेस, एनर्जी और परमाणु सहयोग जैसे क्षेत्रों के लिहाज से यह बैठक महत्वपूर्ण मानी जाती रही है। मिडिल ईस्ट की स्थिति, रूस-चीन की बढ़ती दोस्ती और यूक्रेन युद्ध के कारण जो जियो पॉलिटिकल सिचुएशन बनी है, उसमें यह बैठक और भी अहम हो जाती है। तीसरी बार प्रधानमंत्री चुने जाने के बाद मोदी का यह पहला द्विपक्षीय दौरा है।
रूस को महत्व
आज जब पश्चिमी दुनिया रूस को एक अछूत राष्ट्र के रूप में देख रही है, तब यह दौरा दिखाता है कि भारत-रूस संबंधों को हिंदुस्तान कितना महत्व देता है। 3 और 4 जुलाई को अस्ताना में हुई SCO बैठक में पीएम मोदी के शामिल न होने का साफ संदेश यही था कि भारत नहीं चाहता उसे ऐसे कार्यक्रम में देखा जाए, जहां चीन और पाकिस्तान, दोनों मौजूद हों। भारत मध्य एशिया के साथ सेंट्रल एशिया प्लस फॉर्मेट में और रूस के साथ द्विपक्षीय स्तर पर रिश्ते चाहता है। उसे इसमें चीन और पाकिस्तान की मौजूदगी नहीं चाहिए। Central Asia plus format की मीटिंग इस साल के आखिर में होनी है। अफगानिस्तान से सिर उठा रहे आतंकवाद और ड्रग ट्रैफिकिंग को रोकने के लिए भारत SCO के माध्यम से मध्य एशिया और काबुल के साथ जुड़ना चाहता है।
नीतियों में समानता
रूस ने पीएम मोदी की यात्रा का स्वागत किया है। दोनों देशों की विदेश नीति में कई स्तरों पर समानता है। दोनों बहुध्रुवीयता को प्राथमिकता देते हैं और कई अन्य मुद्दों के साथ ही पश्चिमी अधिपत्य का विरोध करते हैं। एक्सपर्ट्स का मानना है कि रूस के साथ हमारा सहयोग न केवल हमारी रणनीतिक स्वायत्तता को बनाए रखता है बल्कि हमारी विदेश नीति के उद्देश्यों के अनुकूल है और ग्लोबल साउथ के हितों को आगे बढ़ाने में मदद करता है।
रूस विरोध से दूरी
यूक्रेन युद्ध का भारत विरोध करता है। पीएम मोदी ने सितंबर 2022 में उज्बेकिस्तान के समरकंद में SCO शिखर सम्मेलन में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पूतिन से कहा था, ‘यह युद्ध का दौर नहीं है।’ यह मौजूदा युद्ध को लेकर भारत की आपत्ति का संकेत है। हालांकि भारत ने यूक्रेन में युद्ध को लेकर रूस की निंदा करने से हमेशा परहेज किया है। संयुक्त राष्ट्र में आने वाले तमाम रूस विरोधी प्रस्तावों से खुद को दूर रखा है। उसने स्विट्जरलैंड में पिछले दिनों हुए ‘शांति सम्मेलन’ के प्रस्ताव पर भी हस्ताक्षर करने से यह कहते हुए इनकार किया कि इसमें रूस शामिल नहीं है। इस सम्मेलन में ज्यादातर पश्चिमी देश शामिल हुए थे।
गहरी दोस्ती
भारत और रूस ने हर सुख-दुख में दोस्ती निभाई है। रूस ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत का साथ दिया है। उसने कश्मीर मुद्दे पर लगातार हमारा समर्थन किया है। पिछले 50 बरसों से वह भारतीय सशस्त्र बलों के लिए रक्षा उपकरणों का सबसे बड़ा सप्लायर रहा है। भारत की सैन्य जरूरतों में रूस का हिस्सा लगातार कम हो रहा है, इसके बाद भी देश की रक्षा जरूरतों का करीब 50% हिस्सा रूस से ही आता है।
गलतफहमी दूर होगी
रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद भारत की प्रमुख व्यापारिक शक्ति के रूप में मास्को का महत्व बढ़ गया है। रूस जीवाश्म ईंधन के बड़े सप्लायर के रूप में उभरा है। इराक और सऊदी अरब के मुकाबले आने वाले बरसों में रूस के प्रतिस्पर्धी तेल आपूर्तिकर्ता बने रहने की संभावना है। भू-राजनीतिक स्तर पर अगर लंबे वक्त के लिए चीन और उसके परिणामस्वरूप पाकिस्तान, रूस के करीब आते हैं तो भारत के लिए अच्छी स्थिति नहीं होगी। यह भारत के हितों के खिलाफ होगा। इस यात्रा से दोनों पुराने दोस्तों के बीच की यह गलतफहमी दूर होगी कि वे उन देशों के करीब जा रहे हैं, जिनसे दोस्ती दोनों के पारस्परिक हित में नहीं है।
यात्रा का उद्देश्य
आधिकारिक रूप से भारत और रूस, किसी ने भी इस यात्रा का अजेंडा तय नहीं किया है। लेकिन, पीएम मोदी की विजिट का मुख्य उद्देश्य आर्थिक होगा। दोनों नेता रूस के साथ स्थानीय मुद्रा में हो रहे पेमेंट ट्रांसफर पर चर्चा करेंगे। रूस पर लगे प्रतिबंधों के कारण इस पेमेंट का ज्यादातर हिस्सा भारत नहीं पहुंच पा रहा। ऐसे में दोनों नेता टूरिस्ट एक्सचेंज और छात्रों के खर्चों में रुपये और रूबल के इस्तेमाल की संभावना टटोल सकते हैं। Eurasian Economic Union के साथ फ्री ट्रेड एग्रीमेंट के अलावा रूसी Myr cards संग Rupay cards के इंटीग्रेशन की भी संभावना है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, पीएम मोदी की यात्रा के दौरान Chennai-Vladivostok समुद्री मार्ग को एक्सप्लोर करने, खेती, फार्मास्यूटिकल्स और सेवाओं पर समझौतों का आदान-प्रदान होगा।
हित देखे भारत
वार्ता के दौरान महत्वपूर्ण रक्षा आपूर्ति में देरी का मुद्दा भी उठेगा, विशेष रूप से एस-400 ‘Triumf’ एयर डिफेंस सिस्टम की सप्लाई में होने वाली देरी का। ऐसी अटकलें हैं कि भारत की दिलचस्पी रूस से SU-70 स्टील्थ बॉम्बर खरीदने में है। यह बॉम्बर रूस-यूक्रेन युद्ध में इस्तेमाल हो चुका है। पीएम मोदी के मास्को दौरे पर पूरी दुनिया की नजरें होंगी। हर देश अपने-अपने हिसाब से अर्थ निकालेगा। भारत का एकमात्र लक्ष्य उसके अपने हित होने चाहिए, और कुछ भी नहीं।