नई दिल्ली:– एक वक़्त ऐसा था जब भारत में बड़ी संख्या में गिद्ध पाए जाते थे.
मवेशियों के शवों की तलाश में गिद्ध विशाल लैंडफिल पर मंडराते. कभी-कभी वे हवाईअड्डे से उड़ान भरने के दौरान जेट इंजन में फंसकर पायलटों के लिए ख़तरा पैदा करते थे.
लेकिन दो दशक से कुछ अधिक वक़्त ही गुज़रा है, जब बीमार गायों के इलाज के लिए इस्तेमाल की जाने वाली कुछ दवाओं के कारण भारत में बड़ी संख्या में पाए जाने वाले ये गिद्ध मरने लगे.
1990 के दशक के मध्य आते-आते 5 करोड़ की आबादी वाले गिद्धों की संख्या डाइक्लोफेनाक नाम की दवा की वजह से तकरीबन शून्य पर आ गई. ‘डाइक्लोफेनाक’ मवेशियों के लिए एक सस्ती गैर-स्टेरॉयडल दर्द निवारक दवा है, जो गिद्धों के लिए घातक है.
दरअसल, जो भी पक्षी इस दवा से इलाज किए गए पशुओं के शवों को खाते थे, वे किडनी फेल्योर की वजह से मर जाते थे.