नई दिल्ली:– इलाहाबाद हाई कोर्ट ने पिछले हफ्ते यूपी सरकार को 69,000 सहायक शिक्षकों की नियुक्ति के लिए एक नई सूची तैयार करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा है कि इस सूची को तैयार करने में जून 2020 और जनवरी 2022 में किए गए सेलेक्शन्स को अलग रखा जाए। कोर्ट ने मामले में पहले के आदेश को संशोधित करते हुए कहा कि आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवार जो सामान्य श्रेणी की मेरिट सूची के लिए अर्हता प्राप्त करते हैं, उन्हें उसी श्रेणी में ट्रांसफर किया जाना चाहिए।
4 लाख से अधिक उम्मीदवार
दिसंबर 2018 में यूपी सरकार ने सहायक शिक्षक भर्ती परीक्षा-2019 की घोषणा की थी, जो उस समय बेसिक शिक्षा विभाग में 69,000 प्राथमिक शिक्षकों के चयन के लिए राज्य सरकार का सबसे बड़ा भर्ती अभियान था। लगभग 4.3 लाख उम्मीदवारों ने इस परीक्षा के लिए रजिस्ट्रेशन कराया था। इनमें से लगभग 4.1 लाख 6 जनवरी 2019 को परीक्षा में शामिल हुए। चूंकि यह परीक्षा एक क्वालिफाइंग एक्सरसाइज थी इसलिए इसमें किसी तरह का जाति-आधारित आरक्षण लागू नहीं हुआ और न ही कोई कट-ऑफ क्राइटेरिया घोषित किया गया। यह भी साफ किया गया कि ATRE-2019 में क्वालिफाई करने से ही अभ्यर्थी को नियुक्ति का कोई अधिकार नहीं होगा, क्योंकि यह सहायक अध्यापक के पद पर नियुक्ति के लिए एलिजिबिलिटी सेट करने मात्र के लिए परीक्षा थी।
कट-ऑफ से लेकर कोर्ट तक
बाद में 7 जनवरी 2019 को यूपी सरकार ने सामान्य वर्ग के लिए 150 में से 97 तथा आरक्षित वर्ग के लिए 90 कट-ऑफ निर्धारित किया। इस कट-ऑफ के खिलाफ कुछ अभ्यर्थियों ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। 29 मार्च 2019 को एकल न्यायाधीश की पीठ ने आरक्षित और सामान्य वर्ग के लिए क्रमशः 40% और 45% अंक कट-ऑफ निर्धारित किए। हालांकि, उसी साल 6 मई को एक खंडपीठ ने सरकार के पहले वाले एलिजिबिलिटी क्राइटेरिया को बरकरार रखा।
इसके बाद बेसिक शिक्षा विभाग ने जून 2020 में जारी ATRE के नतीजों के आधार पर भर्ती प्रक्रिया शुरू की। 11 अक्टूबर 2020 को 31 हजार 277 अभ्यर्थियों को नियुक्ति पत्र दिए गए और 30 नवंबर 2020 को 36 हजार 590 और अभ्यर्थियों की भर्ती की गई। इस प्रकार 69,000 पदों में से 67,867 पद भरे गए, जबकि एसटी अभ्यर्थियों के 1,133 पद उपयुक्त अभ्यर्थी न मिलने के कारण खाली दिखाए गए।
दो सवाल
जून 2020 की अंतिम मेरिट सूची के बाद बड़ी संख्या में आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों ने हाईकोर्ट का रुख किया। उनकी दो मुख्य शिकायतें थीं- पहला, एटीआरई-2019 परीक्षा के समय वर्टिकल आरक्षण लागू करने के लिए अभ्यर्थियों के कंपार्टमेंटलाइजेशन का उल्लेख नहीं किया गया था जबकि सहायक अध्यापक पद के लिए यह एक खुली प्रतियोगी परीक्षा थी। दूसरा, बिना श्रेणीवार कट-ऑफ घोषित किए दो सेलेक्शन लिस्ट जारी की गईं और निर्धारित कोटे के अनुसार आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों को उचित प्रतिनिधित्व दिए बिना सामान्य श्रेणी के 50% से अधिक उम्मीदवारों का चयन किया गया।
इससे एमआरसी – यानी कि मेरिटोरियस रिजर्व्ड कैटिगरी के छात्र जो कोटा कट-ऑफ का लाभ उठाए बिना मेरिट सूची में आ गए थे, उनको आरक्षण अधिनियम, 1994 की धारा 3(6) के प्रावधानों के तहत सामान्य श्रेणी के बजाय आरक्षित श्रेणी में रखा गया। इसका मतलब यह हुआ कि आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों को आरक्षण अधिनियम, 1994 की धारा 3(1) के साथ धारा 3(6) के अनुसार आरक्षण के अपने अधिकार से वंचित कर दिया गया। यह आरोप लगाया गया कि इस तरह से 19 हजार से ज्यादा आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवार कोटा के लाभ से वंचित रह गए।
नियुक्तियां खारिज
कोर्ट में यूपी सरकार ने माना कि 69,000 सहायक अध्यापकों के चयन में आरक्षण अधिनियम 1994 के प्रावधानों का ठीक से पालन नहीं किया गया। इसी वजह से 5 जनवरी 2022 को आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों में से 6 हजार 800 और नियुक्तियों की अतिरिक्त सूची प्रकाशित की गई लेकिन उस सूची को भी इलाहाबाद हाई कोर्ट में इस आधार पर चुनौती दी गई कि उसे बिना उचित प्रक्रिया का पालन किए अंतिम रूप दिया गया। हाईकोर्ट की एकल पीठ ने 3 मार्च 2023 को आरक्षित वर्ग के 6,800 अतिरिक्त अध्यापकों की नियुक्ति को खारिज कर दिया।
इसने यह भी निर्देश दिया कि बेसिक शिक्षा विभाग 69 हजार सहायक अध्यापकों के चयन के लिए 1 जून 2020 की मूल मेरिट सूची को संशोधित करे। कोर्ट ने कहा कि सेवा नियमावली 1981 के परिशिष्ट-1 के आधार पर क्वालिटी पॉइंट्स के अनुसार सूची तैयार करते समय अंकों में छूट का लाभ पाने वाले किसी भी आरक्षित श्रेणी के अभ्यर्थी को उनकी संबंधित श्रेणी से अनारक्षित श्रेणी में ट्रांसफर नहीं किया जाएगा। रिजर्व्ड और अनरिजर्व्ड दोनों श्रेणी के अभ्यर्थियों ने इस आदेश को चुनौती दी थी। कुछ याचिकाकर्ताओं ने कहा कि अनारक्षित श्रेणियों के लिए निर्धारित कट-ऑफ मार्क से ज्यादा अंक प्राप्त करने के बावजूद एमआरसी अभ्यर्थियों को आरक्षित श्रेणी में रखा गया है। अनारक्षित श्रेणी के याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि कोटा कट-ऑफ का लाभ लेने वाले कुछ आरक्षित श्रेणी के अभ्यर्थियों को गलत तरीके से अनारक्षित श्रेणी में रखा गया है।
पुनरीक्षण का आदेश
हाईकोर्ट की खंडपीठ ने 13 अगस्त, 2024 को एकल पीठ के आदेश को संशोधित किया। एकल पीठ ने यूपी सरकार से जून 2020 की मेरिट सूची को संशोधित करने के लिए कहा था, जबकि खंडपीठ ने कहा कि जून 2020 की सूची को पूरी तरह से नजरअंदाज किया जाना चाहिए और आरक्षण नियम, 1994 की धारा 3(6) और बेसिक शिक्षा नियम, 1981 के अनुसार 3 महीने के भीतर एक नई सूची तैयार की जानी चाहिए। हालांकि, कोर्ट ने यूपी सरकार से ATRE-19 के नतीजों का पालन करने को कहा और फैसला सुनाया कि आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवार अगर सामान्य श्रेणी के लिए निर्धारित कट-ऑफ से अधिक अंक प्राप्त करते हैं तो उन्हें सामान्य श्रेणी में स्थानांतरित कर दिया जाएगा।
कोर्ट ने आदेश दिया कि अगर आरक्षित श्रेणी का कोई उम्मीदवार जनरल कैटिगरी के लिए निर्धारित योग्यता के बराबर मेरिट प्राप्त करता है तो MRC उम्मीदवार को आरक्षण अधिनियम, 1994 की धारा 3(6) में निहित प्रावधानों के अनुसार सामान्य श्रेणी में स्थानांतरित कर दिया जाएगा। इसके अलावा, पीठ ने 5 जनवरी 2022 को नियुक्ति के लिए सेलेक्ट किए गए आरक्षित वर्ग के 6,800 उम्मीदवारों की अतिरिक्त सूची को खारिज करने वाले एकल-पीठ के फैसले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया।
अब आगे क्या?
अब नई सूची तैयार करने में कुछ उम्मीदवारों पर प्रतिकूल असर पड़ना तय है लेकिन मामले में स्कूल शिक्षा विभाग ने साफ कर दिया है कि किसी भी सेलेक्ट उम्मीदवार के साथ कोई अन्याय नहीं होगा। कोर्ट ने कहा कि नई सूची तैयार करते समय… अगर राज्य सरकार/सक्षम प्राधिकारी की कार्रवाई से कार्यरत उम्मीदवारों में से कोई भी प्रभावित होता है, तो उसे सत्र लाभ दिया जाएगा ताकि छात्रों को नुकसान न हो। रविवार को सीएम योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में हुई बैठक के बाद यूपी सरकार ने सैद्धांतिक रूप से हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती न देने का फैसला किया। एक सरकारी बयान में कहा गया कि सीएम की राय है कि एससी उम्मीदवारों को संविधान के अनुसार कोटा का लाभ मिलना चाहिए लेकिन साथ ही किसी भी उम्मीदवार के साथ कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए।