भारत में 25 और 26 जून की दरम्यानी रात को आपातकाल लगाया गया था. इसे आजाद भारत के काले इतिहास के रूप में जाना जाता है. इमरजेंसी 21 मार्च 1977 तक रही. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत राष्ट्रीय आपातकाल लगाया था. यह देश में लगा पहला राष्ट्रीय आपातकाल था, जिससे सुनते ही हर कोई दंग रह गया था. ये इमरजेंसी ऐसी थी जिसे आज भी लोग सुनकर सहम जाते हैं. सरकार के खिलाफ आवाज उठाने वालों को जेल में बंद किया जा रहा था. कई पत्रकारों, कवियों तक को सलाखों के पीछे भेज दिया गया था. ऐसे में चलिए जानते हैं कि आखिर इमरजेंसी लगाई क्यों गई थी और सबसे पहले इसके बारे में पता किसे चला था.
सबसे पहले किसे मिली थी आपातकाल की जानकारी?देश की स्थिति: इंदिरा गांधी के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने देश में असामान्य परिस्थितियों और स्थिति को देखकर आपातकाल की घोषणा करने का फैसला लिया था. इसके पीछे कई कारण थे, जिनमें राजनीतिक अस्थिरता, बढ़ती सार्वजनिक असंतोष, और विपक्षी नेताओं की गतिविधियां शामिल थीं.अनुच्छेद 352 की सिफारिश: इमरजेंसी के बारे में सबसे पहले राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद को बताया गया और उनसे आपातकाल की घोषणा करने के लिए अनुच्छेद 352 के तहत एक सलाह दी गई थी. यह अनुच्छेद देश की सुरक्षा को खतरा मानते हुए आपातकाल की स्थिति की घोषणा की अनुमति देता है.राष्ट्रपति की स्वीकृति: राष्ट्रपति ने सरकार की सिफारिश को स्वीकार कर लिया और 25 जून 1975 को औपचारिक रूप से आपातकाल की घोषणा की. इससे संबंधित आदेश राष्ट्रपति द्वारा जारी किया गया था
.संसद की मंजूरी: आपातकाल की घोषणा के बाद, संसद के दोनों सदनों ने आपातकाल के आदेश को मान्यता दी और इसे वैधता प्रदान की. इसके साथ ही, आपातकाल के दौरान केंद्रीय सरकार को व्यापक शक्तियां मिल गईं और मौलिक अधिकारों पर प्रतिबंध लगा दिया गया था.भारत में क्यों लगाई गई थी इमरजेंसी?
दरअसल साल 1971 के चुनाव में इंदिरा गांधी ने संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के प्रत्याशी राजनारायण को हरा दिया था. उन्होंने इंदिरा गांधी पर सरकारी मशीनरी और संसाधनों के दुरुपयोग और भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट में मामला दर्ज करवाया था. 12 जून 1975 हाई कोर्ट के जज जगमोहन लाल सिन्हा ने इंदिरा गांधी को दोषी ठहराया था. इसके बाद उनका निर्वाचन अवैध हो गया और 6 साल के लिए उनके किसी भी चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी गई थी. इसके बाद इंदिरा गांधी के पास पीएम पद छोड़ने के अलावा कोई और रास्ता नहीं बचा था.ऐसे में इंदिरा गांधी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जहां जस्टिस वीआर कृष्णा अय्यर ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर पूरी तरह रोक नहीं लगाई, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उनको पीएम बने रहने की अनुमति प्रदान कर दी.
इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें अंतिम फैसला आने तक बतौर सांसद वोट करने का अधिकार नहीं दिया. इस बीच बिहार और गुजरात में जयप्रकाश नारायण का कांग्रेस के खिलाफ आंदोलन तेज हो रहा था. जेपी ने कोर्ट के इंदिरा गांधी के पीएम पद से हटने के आदेश का हवाला देकर छात्रों, सैनिकों और पुलिस से ‘निरंकुश सरकार’ के आदेश न मानने की अपील की. ऐसे में लगातार बढ़ते जनाक्रोश और संसद में वोट न करने की अनुमति से कमजोर स्थिति और जेपी की अपील को इंदिरा गांधी द्वारा आपातकाल लगाने का कारण माना जाता है. आपातकाल के दौरान कई राजनीतिक और व्यक्तिगत स्वतंत्रताओं पर अंकुश लगा दिया गया था और कई विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया था. ये अवधि भारतीय राजनीति का एक महत्वपूर्ण और विवादास्पद दौर मानी जाती है.