नई दिल्ली:– सपिंड विवाह एक ऐसी शादी है, जहां व्यक्ति अपने नजदीकी रिश्तेदारों से विवाह कर लेता है। भारत में हिंदू विवाह अधिनियम के तहत ऐसी शादी मान्य नहीं होती। सपिंड यानी एक ही खानदान के लोग, जो एक ही पितरों का पिंडदान करते हैं। आजादी के बाद साल 1950 में भारत का संविधान लागू हुआ था। जिसके तहत हर नागरिक को कुछ मौलिक अधिकार दिए गए थे। जिसमें कोई भी व्यस्क पुरुष व महिला अपनी मर्जी से किसी भी जाति, धर्म में शादी कर सकते हैं, लेकिन कुछ मामलों में शादी फिर भी मुमकिन नहीं, जैसे कि सपिंड विवाह।
क्या है सपिंड विवाह
आसान शब्दों में समझें तो सपिंड विवाह मतलब एक ही पिंड के शादी। हिंदू मैरिज एक्ट 1955 की धारा 3(f)(i) के अनुसार, एक हिंदू व्यक्ति किसी ऐसे व्यक्ति से शादी नहीं कर सकता जो मां की ओर से उनकी तीन पीढ़ियों के अंदर हो। पिता की ओर से, यह कानून पांच पीढ़ियों पर लागू होता है। इसका मतलब हुआ कि अपनी मां की ओर से, कोई व्यक्ति अपने भाई-बहन पहली पीढ़ी, अपने माता-पिता दूसरी पीढ़ी, अपने दादा-दादी तीसरी पीढ़ी या किसी ऐसे व्यक्ति से शादी नहीं कर सकता है, जिसकी तीन पीढ़ियां एक ही वंश को साझा करती हों।
ऐसी शादी में हो सकती है सजा
सपिंड विवाह नजदीकी ब्लड रिलेशन में होने वाली शादी को दर्शाता है। समाज इसे एक खराब रिश्ते के रूप में देखता है। सपिंड विवाह, कानून के मुताबिक ऐसी शादी है, जहां वैवाहिक वर और वधू का एक तय सीमा के अंदर एक ही पूर्वज होता है। यानि एक ही पिंड के बच्चों के बीच शादी इस अधिनियम की चुनौती है। अधिनियम के मुताबिक मां की तरफ से तीन पीढ़ियों और पिता के तरफ से पांच पीढ़ियों तक विवाह पर रोक है। ऐसी शादी करने पर सजा और जुर्माने की बात भी की गई है। 1 महीने की सजा या 1000 रूपये तक का जुर्माना हो सकता है।
क्या है सपिंड विवाह
आसान शब्दों में समझें तो सपिंड विवाह मतलब एक ही पिंड के शादी। हिंदू मैरिज एक्ट 1955 की धारा 3f i के अनुसार, एक हिंदू व्यक्ति किसी ऐसे व्यक्ति से शादी नहीं कर सकता जो मां की ओर से उनकी तीन पीढ़ियों के अंदर हो। पिता की ओर से, यह कानून पांच पीढ़ियों पर लागू होता है। इसका मतलब हुआ कि अपनी मां की ओर से, कोई व्यक्ति अपने भाई-बहन , अपने माता-पिता अपने दादा-दादी या किसी ऐसे व्यक्ति से शादी नहीं कर सकता है, जिसकी तीन पीढ़ियां एक ही वंश को साझा करती हों।
ऐसी शादी में हो सकती है सजा
सपिंड विवाह नजदीकी ब्लड रिलेशन में होने वाली शादी को दर्शाता है। समाज इसे एक खराब रिश्ते के रूप में देखता है। सपिंड विवाह, कानून के मुताबिक ऐसी शादी है, जहां वैवाहिक वर और वधू का एक तय सीमा के अंदर एक ही पूर्वज होता है। यानि एक ही पिंड के बच्चों के बीच शादी इस अधिनियम की चुनौती है। अधिनियम के मुताबिक मां की तरफ से तीन पीढ़ियों और पिता के तरफ से पांच पीढ़ियों तक विवाह पर रोक है। ऐसी शादी करने पर सजा और जुर्माने की बात भी की गई है। 1 महीने की सजा या 1000 रूपये तक का जुर्माना हो सकता है।
सपिंड शादी में रिवाज के मुताबिक छूट है, जो आज भी समाज में मान्य है। यानि किसी समाज या कुटुंब में ऐसी शादियां होती रही है, तो वह इस प्रावधान में मान्य है। समाजशास्त्रियों का कहना है कि सपिंड शादी के साथ-साथ एक गोत्र में भी शादी करना भारतीय समाज के एक बड़े हिस्से में नाजायज है। वह इसके पीछे आनुवांशिक विकारों का तर्क देते हैं कि ऐसी शादियों से उत्पन्न बच्चे आनुवांशिक विकारों या दिव्यांगता के साथ जन्म लेते हैं। इसलिए हिंदू समाज ऐसी शादियों को न करने के लिए प्रेरित करता है।
कानून में बदलाव की आवश्यकता
आनुवांशिक विकारों की उत्पत्ति एक बड़ी चिंता का विषय है। ऐसे में कानून के जानकार, समाजशास्त्रियों और आनुवांशिक विशेषज्ञों को ऐसे विवाह सही है या गलत इस पर विचार करने की आवश्यकता है। वाद-विवादों में ऐसे मुद्दों को शामिल करने की जरूरत है।