नई दिल्ली:– कोलकाता में डॉक्टर से दरिंदगी मामले में बंगाल सरकार और पुलिस घिरती नजर आ रही है। सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को सुनवाई में घटना से लेकर पोस्टमार्टम तक पर सवाल उठे। शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजने का चालान फार्म नहीं होने पर सवाल उठाते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि अगर यह दस्तावेज गायब है तो कुछ गड़बड़ है।
कोर्ट ने कोलकाता पुलिस को अगली तारीख पर इसे पेश करने का निर्देश दिया। एफआइआर दर्ज करने में 14 घंटे की देरी, पोस्टमार्टम की टाइमिंग, सीबीआइ को सिर्फ 27 मिनट का सीसीटीवी फुटेज देने का मुद्दा भी उठा जो राज्य सरकार और पुलिस को सवालों में घेरता दिखता है।
मामले की राजनीतिकरण न किया जाए: कोर्ट
कोर्ट ने सीबीआइ को 17 सितंबर तक नई स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश देते हुए मामले को अगले मंगलवार को फिर सुनवाई पर लगाने का आदेश दिया। कोर्ट ने बंगाल सरकार को सीआइएसएफ की तीन कंपनियों को रहने और उन्हें जरूरी सुरक्षा उपकरण एवं सुविधाएं मुहैया कराने का भी आदेश दिया। कोर्ट ने फिर कहा कि मामले का राजनीतिकरण न किया जाए।
ये आदेश सोमवार को प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जेबी पार्डीवाला व मनोज मिश्रा की पीठ ने दिए। पिछली सुनवाई पर कोर्ट ने सीबीआई को जांच की प्रगति रिपोर्ट और प्रदेश सरकार से आरजी कर अस्पताल में तोड़फोड़ की कार्रवाई रिपोर्ट मांगी थी। सोमवार को सीबीआई और बंगाल सरकार दोनों ने रिपोर्टें पेश कीं। पीठ ने रिपोर्ट देखने के बाद सीबीआई को जांच जारी रखने का निर्देश दिया।
क्या घटनास्थल का सीसीटीवी फुटेज सीबीआइ को दिया: कोर्ट
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोलकाता पुलिस और फोरेंसिक जांच पर सवाल उठाते हुए कहा कि सीबीआई ने फोरेंसिक सैंपल जांच के लिए एम्स भेजने का निर्णय लिया है। यहीं से सवालों का सिलसिला शुरू हुआ। कोर्ट ने बंगाल सरकार के वकील कपिल सिब्बल पूछा कि क्या घटनास्थल का सीसीटीवी फुटेज सीबीआइ को दिया गया है।
सिब्बल ने हां में जवाब दिया तो मेहता ने बताया कि कुल 27 मिनट का फुटेज दिया गया है। सीबीआइ को घटना रिकांस्ट्रेक्ट करनी पड़ेगी क्योंकि फुटेज थोड़ी दूर का है। कोर्ट ने यह भी पूछा कि जब्ती और तलाशी की 8.30 से शाम 10.45 तक चली प्रक्रिया का सारा फुटेज क्या सीबीआइ को मुहैया कराया गया। एक वकील ने पोस्टमार्टम की टाइमिंग पर सवाल उठाया और कहा, नियमानुसार शाम छह के बाद पोस्टमार्टम नहीं होता।
सिब्बल ने हां में जवाब दिया तो मेहता ने बताया कि कुल 27 मिनट का फुटेज दिया गया है। सीबीआइ को घटना रिकांस्ट्रेक्ट करनी पड़ेगी क्योंकि फुटेज थोड़ी दूर का है। कोर्ट ने यह भी पूछा कि जब्ती और तलाशी की 8.30 से शाम 10.45 तक चली प्रक्रिया का सारा फुटेज क्या सीबीआइ को मुहैया कराया गया। एक वकील ने पोस्टमार्टम की टाइमिंग पर सवाल उठाया और कहा, नियमानुसार शाम छह के बाद पोस्टमार्टम नहीं होता।
मेहता ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट पढ़ी, जिसके मुताबिक जब डॉक्टर की बॉडी मिली तो वह अर्धनग्न अवस्था में थी, उसके साथ दुष्कर्म की भी बात कही गई थी।
उन्होंने बॉडी के स्वैब के नमूने लिए जाने और जांच पर सवाल उठाया। हाई कोर्ट में एक जनहित याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि जांच और दस्तावेज में कई खामियां हैं। अपराध स्थल से जब्ती की कार्रवाई रात 11.30 बजे एफआइआर दर्ज होने से पहले की गई। बॉडी से एकत्रित स्वैब को चार डिग्री सेल्सियस पर रखा जाना चाहिए था जो नहीं हुआ।
कोर्ट ने पोस्टमार्टम को लेकर पूछे कई सवाल
पोस्टमार्टम के लिए शव के साथ पीड़िता के कपड़े सील करके नहीं भेजे गए। इसी समय कोर्ट ने पूछा कि पोस्टमार्टम चालान कहां है। उसी में शव के साथ भेजी गईं सामग्रियों की प्रविष्टियां दर्ज होंगी। कोर्ट ने सिब्बल से इसे दिखाने को कहा, लेकिन उन्होंने कहा कि उनके पास वह दस्तावेज नहीं है।
कोर्ट ने पूछा कि क्या पोस्टमार्टम चालान सीबीआइ को दिया गया है तो मेहता न में जवाब दिया। जब सिब्बल ने कहा कि वह निर्देश लेकर कोर्ट को बताएंगे तो सवाल उठा कि इसके बगैर पोस्टमार्टम कैसे हुआ?
जस्टिस पार्डीवाला ने सिब्बल का ध्यान एक कागज की ओर खींचते हुए कहा कि ऊपर तीसरा कालम देखिये, कांस्टेबल को यह ले जाना चाहिए। इसे काट दिया गया है। इसलिए शव को जांच के लिए भेजे जाने पर चालान का कोई संदर्भ नहीं है।
प्रधान न्यायाधीश ने एफआइआर दर्ज होने में देरी पर भी सवाल उठाया और कहा कि यह रात 11.30 बजे लगभग 14 घंटे बाद दर्ज हुई। सिब्बल ने बताया कि पोस्टमार्टम न्यायिक मजिस्ट्रेट की मौजूदगी में किया गया था। कोर्ट ने इंटरनेट मीडिया से शव की तस्वीरें और अन्य सामग्री हटाने का फिर आदेश दिया।