नर्मदापुरम:- ग्राम सुपरली के किसान योगेंद्र पाल सिंह सोलंकी पिछले 25 वर्षों से होली के अवसर पर पशुओं के गोबर एवं फसलों के अपशिष्ट से विशेष प्रकार की लकड़ी का निर्माण कर रहे हैं. जिसे वह सामाजिक संगठनों को बांटते हैं. इस विशेष प्रकार की लकड़ी के निर्माण के लिए किसान योगेंद्र ने स्कूल एव संस्थाओं को विशेष प्रशिक्षण दिया है. वह इसे जिले के अलावा दूसरे शहरों में भी पहुंचाने का काम कर रहे हैं. ताकि वन संरक्षित किया जा सके.
25 सालों से बना रहे गोबर से लकड़ी
जिले के ग्राम सुपरली के किसान योगेंद्र पाल सिंह सोलंकी बताते हैं, ”करीब 25 वर्षों से होली के अवसर पर विशेष प्रकार की लकड़ी का निर्माण कर रहे हैं, जिससे वन एवं पर्यावरण की रक्षा होती है. वह पशुओं के गोबर एवं फसलों के अवशिष्ट से विशेष लकड़ी का निर्माण करते हैं, जो होलिका दहन के लिए पर्यावरण बचाने के लिए सर्व सुविधा युक्त है.
वह बताते हैं कि, ‘होली हमारे लिए महत्वपूर्ण पर्व है. लेकिन होली के लिए प्रकृति के हनन की कहानी छुपी नहीं है. हमारे देश में लगभग साढ़े 6 लाख गांव हैं. इन साढ़े 6 लाख गांवों में लगभग 15 लाख होली जलती हैं. पूरे देश में करीब 4 हजार शहर हैं जो होली जलाते हैं. इस हिसाब से देखा जाए तो लाखों होलिया जलाई जाती हैं.” योगेंद्र बताते हैं कि, ”1 दिन में पौने दो करोड़ लकड़ियां हम होली जलाकर नष्ट कर देते हैं. एक होली में करीब 5 क्विंटल लकड़ी जलती है और 5 क्विंटल लकड़ी को वृक्ष को देने में 10 साल लगते हैं. इस प्रकार हम देश में लाखों वृक्षों की बलि चढ़ा देते हैं.
गोबर की लकड़ी करेगी पर्यावरण की रक्षा
उन्होंने बताया की मेरी उपलब्धि यह रही है कि, ”अभी पिछले 2 सालों से सामाजिक संगठन संस्थाओं को इसका निर्माण कार्य सिखाया और इसे संगठन को बनाकर दिया है. ताकि होलिका इन लकड़ियां से जलाई जा सके. लेकिन सबसे अच्छी बात यह है कि गांव में घर-घर में यह लकड़ी बनेगी तो पर्यावरण की रक्षा होगी. मैंने कई स्कूलों में इस प्रकार की लकड़ी बनाने का प्रशिक्षण दिया है. साथ ही अभी तक दस हजार लोगों को यह लकड़ी भेंट कर चुका हूं. इसके अलावा मुंबई, भोपाल सहित अन्य शहरों में इसे भेंट कर चुका हूं. इस बार जिन लड़कियों का निर्माण किया है उन्हें सामाजिक संगठनों को देने का प्रयास करूंगा