दंतेवाड़ा:- पूरी दुनिया में बस्तर की संस्कृति, पर्व और रहन सहन की चर्चा होती है. बस्तर दशहरा और फाल्गुन मेला काफी प्रसिद्ध है. बस्तर की आराध्य देवी दंतेश्वरी माई के दरबार में विशेष तरह की होली मनाई जाती है. यहां होली की परंपरा बेहद अनूठी है. होली के एक दिन पहले ताड़ के पत्तों से होलिका दहन होता है. उसके बाद होली के दिन दंतेश्वरी मंदिर में विशेष होली खेली जाती है.
भैरव बाबा की पूजा और गार्ड ऑफ ऑनर: बस्तर की होली की प्रचलित परंपरा के मुताबिक सबसे पहले भैरव बाबा की पूजा अर्चना होती है. उसके बाद उनके सम्मान में पुलिस जवान गार्ड ऑफ ऑनर देते हैं. उसके बाद आंवला मार की रस्म निभाई जाती है. इस बार भी होली के अवसर पर ऐसा ही हुआ. होलिका दहन की रात को आंवला मार की रस्म निभाई गई. उसके बाद दंतेश्वरी माई की डोलरी को दंतेश्वरी मंदिर ले जाया गया. रात 12 बजे ताड़ के पत्तों से विशेष पूजा अर्चना की गई. उसके बाद होलिका के 12 लंकवार सेवादार प्रधान पुजारी की तरफ से होलिका के सात फेरे लिए गए. तब जाकर होलिका दहन का कार्यक्रम हुआ.
दंतेश्वरी माई के दरबार में विशेष होली: मंदिर के पुजारी परमेश्वर नाथ जी ने बताया कि कई वर्षों से दंतेवाड़ा में यह परंपरा चली आ रही है. इस परंपरा के अनुसार दंतेश्वरी मंदिर में विशेष होली मनाई जाती है. उन्होंने विस्तार से बताते हुए कहा कि होलिका दहन के दिन दंतेश्वरी सरोवर से पूजा अर्चना कर सबसे पहले जल लाया जाता है. इसी जल से माता का स्नान किया जाता है. उसके बाद मां दंतेश्वरी के स्वरूप माता पार्वती की पूजा अर्चना होती है. दंतेश्वरी माता की डोली मंदिर से निकाली जाती है. माता की डोली के आगे आगे भैरव लाट चलते हैं. उसके बाद होलिका ताड़ के पत्तों को 5 दिन दंतेश्वरी मंदिर में रखा जाता है. होलिका दहन के दिन इसी ताड़ के पत्तों से होलिका का दहन किया जाता है. उसके बाद राख और फूल से रंग तैयार होता है और फिर होली मनाई जाती है.
मनोकामना पूरी करने वाली होली: दंतेश्वरी मंदिर के दरबार में मनोकामना पूरी करने वाली होली मनाई जाती है. ऐसी मान्यता है कि होलिका दहन के बाद उड़ने वाली राख को जो भी व्यक्ति अपने आंचल में पकड़ लेता है, उसकी मनोकामना जरुर पूरी होती है. सुबह होलिका की राख ठंडी होने पर इसी राख और पलाश के फूलों से रंग तैयार किया जाता है. जो सर्वप्रथम मां दंतेश्वरी का स्वरूप माता पार्वती को अर्पित किया जाता है. उसके बाद मंदिर के सभी देवी देवताओं को तिलक लगाकर अर्पण किया जाता है.
राख और फूल के रंग को माता को अर्पित करने के बाद ही मंदिर प्रांगण में लाट भैरव के साथ देवी देवता रंग भंग कार्यक्रम के तहत होली खेलते हैं. उसके बाद एक दूसरे को रंग लगाकर होली की शुभकामना देते हैं. यह सभी प्रक्रिया पूरी होने के बाद आम श्रद्धालु होली खेलते हैं- परमेश्वर नाथ जिया, पुजारी, दंतेश्वरी मंदिर
बस्तर में होलिका दहन के इस कार्यक्रम को देखने के लिए दूर दूर से लोग आते हैं. उसके बाद यहां हर्षोउल्लास के साथ होली मनाई जाती है. इस साल भी लोग होलिका के राख और पलाश के फूल के रंगों से खोली मना रहे हैं.