नई दिल्ली:- बिना लाइसेंस के इथोर्फिन प्राप्त करना और दूसरे राज्य को देना : जानकारी के मुताबिक साल 2019-20 में छत्तीसगढ़ वन विभाग के पास छत्तीसगढ़ में Etorphine और ऐसी अन्य ड्रग रखने और उपयोग में लाने का कोई लाइसेंस नहीं था. फिर भी दुधवा टाइगर रिजर्व से और भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून से जनवरी और फरवरी 2020 में 10 मिलीलीटर इथोर्फिन मंगवाया गया.
वन भैंसों को पकड़ने के लिए हाथी जितनी डोज : फरवरी 2020 में वन विभाग ने असम के मानस टाइगर रिजर्व में छत्तीसगढ़ लाने के लिए दो वन भैंसे पकड़े. एक वन भैंसे को पकड़ने में अधिकतम 0.8 एमएल Etorphine लगता है. इस प्रकार दो वन भैंसों के लिए कुल 1.6 एमएल Etorphine की जरुरत हो सकती है. लेकिन स्टॉक रजिस्टर से असम से 2020 में वन भैसा पकड़ने के नाम से 7.8 एमएल Etorphine निकालना बताया गया. इस प्रकार 6.2 एमएल की खपत ज्यादा बताई गई.
विभाग को नहीं है जानकारी : जानकारी के मुताबिक असम में उपयोग की गई 7.8 एमएल Etorphine के उपयोग के बारे में बताया गया कि उपयोग की गई औषधि से सम्बंधित जानकारी मानस टाइगर रिजर्व असम के पास है. डायरेक्टर जंगल सफारी ने बताया है कि दूसरे राज्य को Etorphine देने के उच्च अधिकारियों द्वारा या डायरेक्टर जंगल सफारी द्वारा कोई आदेश जारी नहीं किये गए हैं.असम को Etorphine हैण्ड ओवर करने की कोई पावती नहीं है और उन्हें नहीं पता कि असम को कितनी मात्रा में Etorphine दी गई.
सिर्फ जंगल सफारी के लिए लाइसेंस और ले गए असम : जंगल सफारी के डायरेक्टर के नाम से सबसे पहली बार छत्तीसगढ़ आबकारी विभाग ने अगस्त 2021 में Ethorpin और अन्य ड्रग का सिर्फ जंगल सफारी के परिसर में उपयोग हेतु लाइसेंस जारी किया. अनिवार्य शर्त थी कि सिर्फ जंगल सफारी परिसर में उपयोग होगा अन्यत्र नहीं. दूसरी शर्त थी कि डायरेक्टर जंगल सफारी ड्रग अनुमोदित चिकित्सक से नुस्खा प्राप्त होने के बाद ही देंगे और प्रिस्क्रिप्शन रिकॉर्ड में रखंगे. शर्तों की पूरी जानकारी होने के बाद भी मार्च 2023 में वर्तमान प्रधान मुख्य वन संरक्षक ने असम से चार और वन भैंसा लाने के कमेटी गठन का आदेश जारी किया, जिसमें वन्यप्राणी चिकित्सकों का नाम लेकर आदेशित किया कि वन्यप्राणी चिकित्सक बेहोश करने की दवा अपने साथ ले कर जाएंगे.
बिना प्रिस्क्रिप्शन के दवा का इस्तेमाल : वन्यप्राणी चिकित्सकों ने डायरेक्टर जंगल सफारी को कोई प्रिस्क्रिप्शन नहीं दिया और ड्रग्स लेकर चले गए. वहां चार वन भैसों को बेहोश करने के लिए 2.50 एमएल Ethorpin का उपयोग किया गया, परन्तु स्टॉक में 3.2 एमएल निकालना बताया गया यानि 0.7 एमएल अधिक. इस प्रकार से Ethorpin और अन्य ड्रग्स कई बार अन्य जिलों में हाथियों को बेहोश करने के लिए भी स्टॉक से निकली गई. जंगल सफारी के दस्तावेज बताते है कि डायरेक्टर जंगल सफारी के पास कोई भी प्रिस्क्रिप्शन नहीं है. हर बार वर्तमान प्रधान मुख्य वन संरक्षक के आदेश के बाद वन्यप्राणी चिकित्सक बिना डायरेक्टर जंगल सफारी की अनुमति के ड्रग्स निकालते थे।
कितना जरुरी है शर्तों का पालन करना? : इस मामले में पत्र लिखने वाले वन्यजीव प्रेमी रायपुर के नितिन सिंघवी ने बताया कि 2023 के अंत तक तत्कालीन डायरेक्टर जंगल सफारी को समझ आ गया था कि वर्तमान प्रधान मुख्य वन संरक्षक से सीधे आदेश प्राप्त करने के बाद उनको बताये बिना ड्रग्स स्टॉक से निकाल ली जाती है. 2023 के अंतिम महीनों में 40 गौर को बारनवापारा अभ्यारण से गुरु घासीदास नेशनल पार्क ले जाने का प्लान बना. बारनवापारा अभ्यारण बलौदा बाजार जिले में आता है, इसलिए डायरेक्टर जंगल सफारी ने उपायुक्त आबकारी रायपुर से बारनवापारा अभ्यारण में ड्रग के उपयोग की अनुमति मांगी. परन्तु उपायुक्त आबकारी रायपुर ने अनुमति नहीं दी.
क्योंकि उपायुक्त आबकारी ने लाइसेंस सिर्फ जंगल सफारी परिसर में उपयोग हेतु दिया था. उपायुक्त ने कहा कि उनके द्वारा दूसरे जिलों के लिए अनुमति नहीं दी जाती. उपायुक्त द्वारा अनुमति नहीं दिया जाना बताता है कि शर्तों का पालन करना कितना अनिवार्य था. जिसके तहत सिर्फ जंगल सफारी परिसर ने Ethorpin का उपयोग किया जा सकता था.परन्तु वन विभाग असम तक Ethorpin ले कर चला गया. सिंघवी ने प्रधान मुख्य वन संरक्षक से पूछा कि जब उन्हें लाइसेंस की शर्तों की पूरी जानकारी थी कि ड्रग का उपयोग सिर्फ जंगल सफारी परिसर नया रायपुर में हो सकता है तब उन्होंने ड्रग को जंगल सफारी से बाहर असम और दूसरे जिलों में ले जाने का आदेश वन्यप्राणी चिकित्सक को क्यों दिया? 2020 और 2023 में अतिरिक्त खपत बताई गई ड्रग्स कहां गई?
रायपुर : छ्त्तीसगढ़ वनविभाग में इथोर्फिन नाम की नारकोटिक ड्रग की हेराफेरी का मामला सामने आया है. बताया जा रहा है कि ये ड्रग मार्फीन से 3 हजार गुना शक्तिशाली है.इस दवा का इस्तेमाल बड़े जानवरों को बेहोश करने के लिए किया जाता है. इसके असर का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसे सूंघने या फिर मानव शरीर पर गिरने मात्र से किसी की जान जा सकती है. मार्फीन से 3000 गुना शक्तिशाली होने के कारण इसकी कीमत ब्लैक मार्केट में प्रति एमएल लाखों तक हो सकती है. ये अफ्रीका से आयत की जाती है. ये सारी जानकारी वन्यजीव प्रेमी नितिन संघवी ने सूचना के अधिकार के तहत निकाली है.जिसमें इस दवा के इस्तेमाल को लेकर कई तरह के सवाल खड़े हुए हैं.
प्रतिबंधित दवा की हेराफेरी का आरोप : नितिन संघवी ने इथोर्फिन और ऐसी ही अन्य ड्रग की छत्तीसगढ़ वन विभाग में व्यापक हेराफेरी का आरोप लगाया गया है. जिसमें बिना लाइसेंस के ये ड्रग प्राप्त करना, बिना अनुमति के दूसरों को देना और लाइसेंस मिलने के बाद भी बिना डायरेक्टर जंगल सफारी (लाइसेंसी) की जानकारी के प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यप्राणी) के आदेश पर, वन्यप्राणी चिकित्सक द्वारा ये ड्रग स्टॉक से निकली और इस्तेमाल ज्यादा बताया गया. इन सब चीजों को लेकर वन्यजीव प्रेमी ने शासन से पूरे मामले की उच्च स्तरीय जांच कर डायरेक्टर जनरल नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो को मामला सौपने की मांग की है.