नई दिल्ली:– बैंकों से पर्याप्त मात्रा में छोटे नोट मिलना अब बेहद मुश्किल हो गया है। खासतौर पर 10, 20 और 50 रुपये के नए नोट तो जैसे बाजार से गायब ही हो गए हैं। व्यापारी लगातार प्रयास कर रहे हैं, लेकिन बार-बार मांगने पर भी बमुश्किल कुछ पुराने नोट ही हाथ आ पाते हैं।”
इंदौर सहित आसपास के इलाकों में इन दिनों रोजमर्रा के लेन-देन में ‘छोटे नोट’ सबसे बड़ी चुनौती बन गए हैं। पिछले कुछ महीनों से धीरे-धीरे बाजार से 10, 20 और 50 रुपये के नोट जैसे गायब होते जा रहे हैं। हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि छोटे कारोबारियों और दुकानदारों को अब अपनी बिक्री की रकम में से कुछ हिस्सा कमीशन पर छुट्टे पैसे जुटाने में ही लगाना पड़ रहा है।
बाजार में रिटेल कारोबारियों के सामने सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि ग्राहक तो आते हैं, लेकिन खुले पैसे न होने के कारण कई बार उन्हें वापस भेजना पड़ता है या मनमाफिक रकम का हिसाब बिठाना मुश्किल हो जाता है। किराना दुकानदार चेतन आहूजा बताते हैं, “अब तो व्यापार बचाए रखने के लिए मजबूरी में कुछ कमीशन देकर छुट्टे पैसे लेने पड़ते हैं। ग्राहक को तो सुविधा चाहिए, चाहे हमें नुकसान ही क्यों न हो।”
बैंक भी खाली हाथ, नए नोटों की मांग बढ़ी
दिक्कत केवल दुकानदारों तक सीमित नहीं है। बैंकों के पास भी छोटे नोटों का पर्याप्त स्टॉक नहीं है। इंदौर स्थित बैंक ऑफ बड़ौदा की शाखा प्रबंधक नेहा वर्मा बताती हैं, “छोटे नोटों की सप्लाई करेंसी चेस्ट से कम हो रही है। ऊपर से ग्राहक सिर्फ नए, चमचमाते नोट ही मांगते हैं, जिससे पुराने नोटों की डिमांड और सप्लाई का संतुलन बिगड़ गया है।”
ऑनलाइन पेमेंट बढ़े, छुट्टे पैसे कम हुए
शहर के अलावा शाजापुर और अन्य कस्बों से भी छोटे नोटों की कमी की शिकायतें लगातार आ रही हैं। किराना व्यापारी जयप्रकाश भावसार का कहना है, “ग्राहकों का बड़ा हिस्सा अब डिजिटल पेमेंट कर रहा है। ऐसे में नकद लेन-देन में छुट्टे पैसे आने ही बंद हो गए हैं। पहले दिन भर में जितने छोटे नोट आ जाते थे, उससे काम चल जाता था, लेकिन अब हालात अलग हैं।”
समाधान की उम्मीद में व्यापारी
बाजार में अब आवाज उठने लगी है कि सरकार को केवल डिजिटल पेमेंट को बढ़ावा देने पर ही नहीं, बल्कि नकद व्यवस्था को भी संतुलित बनाए रखने पर ध्यान देना चाहिए। छोटे नोटों की आपूर्ति सुचारु न होने से रोजमर्रा के लेन-देन में परेशानी और उपभोक्ताओं का असंतोष दोनों ही बढ़ते जा रहे हैं।