मनेंद्रगढ़ कोरिया, 23 दिसंबर। जंगल की जमीन नेताओं की कुर्सी के लिए जिस तरह कुर्बानी की भेंट चढ़ रही है।ठीक उसी तर्ज में विभाग में बैठे जंगल के लुटेरों ने भी जंगल की बरबादी का जो अभियान छेड़ रखा है।उससे ये पूरी जीवन धरा अपनी तबाही का रोना रोने के लिए लगातार विवश होती जा रही है।जंगल के ज़र्रे ज़र्रे को दीमक की तरह चरने वाले लोगों ने जिस तरह समस्त जीव जगत को खतरे में डालने का सिलसिला जारी रखा है। वाक्या भविष्य के लिए बहुत ही भयावह और विनाशकारी साबित होगा।
मनेंद्रगढ़ वन मंडल में प्लांटेशन और पनपते पौधों की सुरक्षा पर लापरवाही और प्लांटेशन कराए गए रकबों सहित पौधों के आंकड़ों में जालसाजी का खेल विगत कई वर्षों से जिस तरह अनवरत जारी है।वो पर्यावरण संरक्षण में घात तो है ही साथ ही सीधी तौर पर बड़ी बड़ी राशियों की बेतुकी बरबादी और बंदरबांट भी है। मनेंद्रगढ़ वन परिक्षेत्र के पूर्व रेंजर फारूखी जो मनेंद्रगढ़ के वन मंडलाधिकारी विवेकानंद झा के काफी करीबी और अन्यत्र वन मंडल के इनके अधिनस्थ पूर्व के भी रेंजर थे।जिनके कार्यकाल में मनेंद्रगढ़ रेंज के नारायणपुर बीट चटनिया नर्सरी के निचले हिस्से में जो हसदेव नदी का तटीय क्षेत्र है वहां पर करीब 5 से 7 हेक्टेयर के लगभग रकबे में डेढ़ साल पहले सीमेंट पोल और कंटीले तारों से दोनों ओर फिंसींग कराकर मिश्रित प्रजाति के पौधों का जैसे करंज,आंवला,इत्यादि विभिन्न प्रजातियों के पौधों के वृक्षारोपण का कार्य कराया जाना और उस बावत बड़ी राशि का ब्यय दिखाया गया था।

जिस मिश्रित प्लांटेशन का जिक्र अब तक चल रहा था। दरअसल उसकी जमीनी हकीकत का जब मौका मुआयना किया गया तो काफी चौंकाने वाली बातें सामने आईं। जिस प्लांटेशन के नाम बड़ी राशि का ब्यय उन स्थलों पर दिखाया गया है और उन्हें संरक्षित करने हेतु उस पूरे रकबों का सीमेंट पोल और कंटीले तारों से फिन्सिंग किया गया है।, असल में वहां का ज्यादातर रकबा चट्टानों का है और बची जमीन में एक भी पौधा मौजूद नहीं है। जिसके बाद निश्चित ही कयास लगाए जा सकते हैं कि वृक्षारोपण जमीन पर नहीं बल्कि कागजों में किया गया होगा।आपको बता दें कि विभाग के लोगों द्वारा किया गया ये कृत्य वन संरक्षण और,वनों के विकास के लिए बहुत बड़ा बाधक और पलीता है।
जमीनी हकीकत और अनियमितता पर जब भी विभाग के जिम्मेदारों से उनकी प्रतिक्रिया लेने की कोशिश की जाती है।तो फिर चाहे वो सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी की बात हो या फिर मौखिक तर्क वितर्क की बात हो सभी पर चुप्पी और आनाकानी का रवैया इनकी आदत में शुमार हो जाता है।जिसके चलते इनकी अनियमितता उजागर करने में मीडिया को भी परेशानी से गुजरना पड़ता है।और ऐसे लोग दोषी होकर भी प्रमाणित दस्तावेजों के अभाव में साफ साफ बच निकलते हैं, और जिसके लिए इन पर विभाग के बड़े स्तर के अधिकारियों का वरदहस्त भी प्राप्त रहता है।