नई दिल्ली : हिन्दू पंचांग के अनुसार इस वर्ष 18 जुलाई से 16 अगस्त तक अधिक मास है। यह अधिक मास अधिक श्रावण मास है। अधिक मास बड़े पर्व के समान होता है इसलिए इस माह में धार्मिक कृत्य और अधिक मास महात्म्य ग्रंथ का पठन किया जाता है।
अधिक मास का अर्थ: चंद्र मास, सूर्य एवं चंद्रमा इनकी एक बार युति होने के समय से अर्थात एक अमावस्या से पुनः ऐसी युति होने तक अर्थात अगले माह की अमावस्या तक का काल चंद्र मास होता है। त्योहार, उत्सव, व्रत, उपासना, हवन, शांति, विवाह आदि हिंदू धर्म शास्त्रों के सभी कार्य चंद्रमास के अनुसार अर्थात चंद्रमा की गति से निश्चित हैं। चंद्रमास के नाम उस माह में आने वाली पूर्णिमा के नक्षत्रों के अनुसार हैं। उदाहरणार्थ चैत्र माह की पूर्णिमा को चित्रा नक्षत्र होता है।
सौर मास (सूर्य मास): ऋतु, सौर माह के अनुसार, सूर्य की गति के अनुसार बने हुए हैं। सूर्य अश्विनी नक्षत्र से भ्रमण करते हुए फिर से उसी जगह आता है। उस कालावधि को सौर वर्ष कहा जाता है। चंद्र वर्ष एवं सौर वर्ष इनमें मेल होना चाहिए इसलिए अधिक माह का प्रयोजन है । चंद्र वर्ष 354 दिन एवं सौर वर्ष 365 दिन का होता है अर्थात इन दोनों वर्षों में 11 दिन का अंतर होता है यह अंतर भर जाए तथा चंद्र वर्ष एवं सौर वर्ष इनका मेल बैठे इसलिए लगभग 32 1/2 माह (साढे बत्तीस) के बाद एक अधिक माह मानते हैं अर्थात 27 से 35 माह के बाद एक अधिक माह आता है।
अधिक मास किस माह में आता है : चैत्र से अश्विन इन 7 माह में से 1 माह अधिक मास के रूप में आता है। फाल्गुन माह भी अधिक मास के रूप में आता है। कार्तिक मार्गशीर्ष एवं पौष इन मासों को जोड़कर अधिक मास नहीं आता। इन 3 महीनों में से कोई भी एक माह क्षय हो सकता है, क्योंकि इन 3 महीनों में सूर्य की गति अधिक होने के कारण एक चंद्र मास में उसके दो संक्रमण हो सकते हैं। क्षय माह आता है तब 1 वर्ष में क्षय माह से पहले एक एवं बाद का एक ऐसे दो अधिक माह पास पास आते हैं। माघ माह अधिक मास या क्षय मास नहीं होता।
अधिकमास में व्रत और पुण्यदायक कृतियां करने के पीछे का शास्त्र:
प्रत्येक माह में सूर्य 1-1 राशि में संक्रमण करता है परंतु अधिक मास में सूर्य किसी भी राशि में संक्रमण नहीं करता अर्थात अधिक मास में सूर्य संक्रांति नहीं होती। इस कारण चंद्र एवं सूर्य इनकी गति में फर्क पड़ता है एवं वातावरण भी ग्रहण काल के समान परिवर्तित होता है। इस परिवर्तित होते अनिष्ट वातावरण का प्रभाव हमारे स्वास्थ्य पर ना हो इसलिए इस माह में व्रत एवं पुण्य दायक कृतियां करनी चाहिए ऐसा शास्त्र कारों ने कहा है।