मुंबई:- समान नागरिक संहिता का मुद्दा संसद के शीतकालीन सत्र में राज्यसभा में बिल भी पेश हो चुका है बीजेपी के ही एक सांसद की तरफ से प्राइवेट मेंबर बिल के तौर पर पेश किया गया है। अतीत में कई बार इस बिल को लिस्ट किया जा चुका है लेकिन पेश नहीं हो पाया था। इस बार विपक्षी सदस्यों के भारी विरोध के बीच शुक्रवार को ये बिल उच्च सदन में पेश हुआ। बीजेपी शासित कुछ राज्यों में इसे लागू करने की संभावना तलाशने के लिए पहले ही कमेटियां बन चुकी हैं।
गृह मंत्री अमित शाह ने भी हाल में टाइम्स नाउ समिट में कहा था कि मोदी सरकार समान नागरिक संहिता को लेकर गंभीर है लेकिन सभी पक्षों से व्यापक विचार-विमर्श के बाद ही इस पर फैसला होगा।बीजेपी के राज्यसभा सांसद किरोड़ी लाल मीणा ने भारत में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने के प्रावधानों वाले प्राइवेट मेंबर बिल को विपक्ष के विरोध के बीच सदन में पेश किया। विपक्षी सदस्यों के विरोध पर सरकार ने मीणा का समर्थन करते हुए कहा कि बिल पेश करना उनका अधिकार है।
जब विपक्ष ने बिल को वापस लेने की मांग की तो राज्यसभा चेयरमैन जगदीप धनखड़ ने उस पर वोटिंग करा दी। ध्वनिमत में बिल को पेश करने के पक्ष में 63 वोट पड़े जबकि विरोध में 23 वोट। उस समय राज्यसभा में कई सांसद अनुपस्थित थे समान नागरिक संहिता को लागू करने से जुड़ा ये बिल पहले भी पिछले सत्रों में कई बार लिस्ट हो चुका था लेकिन इससे पहले कभी पेश नहीं हो पाया। हर बार जब सभापति या आसन की तरफ से बिल पेश करने के लिए किरोड़ी लाल मीणा का नाम लिया जाता था तो वह उस वक्त सदन से नदारद होते थे। लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ। इस बार तो उन्हें सरकार का भी समर्थन दिखा। सदन में जैसे ही प्रक्रिया शुरू हुई विपक्षी सदस्य हंगामा करने लगे। उनका आरोप था कि इस बिल से देश में अमन-चैन और धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को नुकसान पहुंच सकता है।
उपराष्ट्रपति धनकड़ ने विरोध कर रहे विपक्षी सदस्यों को शांत कराया और उन्हें अपनी चिंताएं रखने का मौका दिया। कई विपक्षी सदस्यों ने बिल के खिलाफ अपनी आवाज उठाई। उसके बाद सदन के नेता पीयूष गोयल ने कहा कि समान नागरिक संहिता संविधान में राज्य के नीति निर्देशक तत्वों में है। इस पर बहस करते हैं। खास बात ये है कि 1970 के बाद से अबतक संसद में किसी प्राइवेट मेंबर बिल को मंजूरी नहीं मिली है।
संसद से अबतक सिर्फ 14 प्राइवेट मेंबर बिल को ही मंजूरी मिल पाई है जिनमें से 6 को तो अकेले 1956 में ही पास किया गया था। समान नागरिक संहिता का मतलब है सभी नागरिकों के लिए समान कानून। भारत में क्रिमिनल लॉ तो हर धर्म के लोगों पर समान रूप से लागू होते हैं लेकिन विवाह, तलाक, गोद लेने, उत्तराधिकार जैसे सिविल मामलों में ऐसा नहीं है। ऐसे मामलों में पर्सनल लॉ लागू होते हैं। अलग-अलग धर्म को मानने वाले लोगों के लिए अलग-अलग कानून हैं।