नई दिल्ली:- उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता कानून पास हो गया. चर्चा है कि गुजरात और असम की राज्य सरकारें भी ऐसा विधेयक ला सकती हैं. उत्तराखंड में UCC लागू होने के बाद मुस्लिम समुदाय को शरीयत कानून के जरिए 87 साल से मिले कई अधिकार खत्म हो गए. आइये आपको बताते हैं…
मुस्लिम समुदाय में व्यक्तिगत मामले, जैसे- शादी, तलाक, गुजारा भत्ता, विरासत, चाइल्ड कस्टडी जैसे मामले मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एप्लीकेशन एक्ट 1937 से संचालित किए जाते हैं. दावा किया जाता है कि शरीयत कानून और हदीस पर आधारित है.
1937 में, मुस्लिम पर्सनल लॉ एप्लिकेशन एक्ट पास किया गया. इस कानून का मकसद भारतीय मुसलमानों के लिए एक इस्लामिक कानून कोड तैयार करना था. भारत में, दूसरे धार्मिक समूहों के भी हैं पर्सनल लॉ हैं. जैसे- हिंदुओं के लिए 1955 का हिन्दू मैरिज एक्ट, पारसी मैरिज एंड डाइवोर्स एक्ट 1936 आदि.
शरीयत कानून में कहा गया है कि मुस्लिम लड़कियां रजस्वला की उम्र यानी 13 साल की उम्र के बाद शादी के योग्य हो जाती हैं. 13 की उम्र में उनकी शादी की जा सकती है, जबकि भारत में लड़कियों की शादी की उम्र 18 साल है. अब उत्तराखंड में भी मुस्लिम समुदाय की लड़कियों की शादी की उम्र 18 और लड़कों की 21 होगी.
शरीयत बहु-विवाह की इजाजत है, जबकि भारत में बहु-विवाह यानी पॉलीगेमी प्रतिबंधित है. अब उत्तराखंड में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होने के बाद मुसलमान बहु-विवाह नहीं कर पाएंगे. आपको बता दें कि अन्य धर्मों में बहु विवाह पहले से प्रतिबंधित है.
शरीयत कानून में निकाह-हलाला का प्रावधान है. आसान भाषा में कहें तो यदि कोई मुस्लिम महिला तलाक के बाद उसी पुरुष से दूसरी बार शादी करनी चाहती है तो उसे पहले हलाला यानी तीसरे मर्द से शादी करनी होती है. उत्तराखंड UCC में निकाह हलाला और इद्दत को भी प्रतिबंधित कर दिया गया है. 3 साल की कैद से लेकर 1 लाख तक के जुर्माने का प्रावधान है.
87 साल पुराने शरीयत कानून में कहा गया है कि मुस्लिम व्यक्ति अपनी संपत्ति का एक तिहाई हिस्सा किसी को दे सकता है, जबकि बाकी का हिस्सा उसके परिवार को मिलेगा. अगर कोई वसीयत नहीं है तो संपत्ति का बंटवारा कुरान और हदीद में बताए गए नियमों के मुताबिक होगा. उत्तराखंड UCC में इसमें भी बदलाव कर दिया गया है. अब जरूरी नहीं है कि अपनी संपत्ति का तिहाई हिस्सा किसी को देना पड़े.