नई दिल्ली – कनाडा के नये प्रधानमंत्री मार्क कार्नी ने शुक्रवार को अपना कार्यभार ग्रहण कर लिया। कार्नी ने अपने शपथ ग्रहण के बाद देश के लोगों को संबोधित किया। इस दौरान उन्होंने अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को भी कड़ा संदेश दे दिया।
कार्नी ने कहा कि कनाडा कभी भी, किसी भी तरह, आकार या रूप में, संयुक्त राज्य अमेरिका का हिस्सा नहीं बनेगा। दरअसल डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति बनने के बाद से ही कनाडा को यूएस में मिलाने की बात कर रहे हैं। उन्होंने जस्टिन ट्रूडो को कनाडा का गवर्नर तक बता दिया था।
अमेरिका के साथ अच्छे संबंध की आस
मार्क कार्नी ने अमेरिका की तरफ से मिल रही टैरिफ की धमकियों पर कहा कि टैरिफ का सामना करना उनकी पहली प्राथमिकता होगी। उन्होंने ट्रंप से शासन को कनाडा की जनरेशन के लिए सबसे बड़ा चैलेंज बताया है। कार्नी ने कनाडाई वस्तुओं पर अमेरिकी टैरिफ को अनुचित बताया है।
हालांकि कार्नी ने उम्मीद जताई है कि उनकी सरकार एक दिन दोनों देशों के हितों को आगे बढ़ाने के लिए अमेरिका के साथ मिलकर काम कर सकेगी। अधिकारियों ने कहा कि वे आने वाले दिनों में ट्रम्प और कार्नी के बीच बातचीत कराने की योजना बना रहे हैं।
ट्रंप के आने के बाद से बिगड़े रिश्ते
जनवरी में ट्रम्प के सत्ता में वापस आने के बाद से कनाडा सीमा-पार संबंधों के बिगड़ने से परेशान है। अंमेरिका ने एक तरह का ट्रेड वॉर शुरू कर दिया है और ट्रंप बार-बार कनाडा से अपनी स्वतंत्रता त्यागकर 51वां अमेरिकी राज्य बनने को कह रहे हैं।
एक तरफ कनाडा ने ट्रम्प के टैरिफ के खिलाफ जवाबी कार्रवाई की है, तो वहीं कनाडाई जनता ट्रंप की धमकियों से काफी नाराज है। कार्नी अगले सप्ताह पेरिस और लंदन जाएंगे, जो संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ संबंधों में आई गिरावट के बीच विदेशों में कनाडा के गठबंधन को मजबूत करने के प्रयास का हिस्सा है। इस दौरान व्यापार और सुरक्षा पर चर्चा होगी।
कनाडा में होने वाले हैं चुनाव
जस्टिन ट्रूडो द्वारा इस्तीफे की पेशकश के बाद लिबरल पार्टी ने मार्क कार्नी को अपना नेता चुना था। मार्क कार्नी इकोनॉमी के तो काफी पक्के खिलाड़ी हैं, लेकिन राजनीति में अभी वह नौसिखिया हैं। उन्होंने कभी भी कोई सार्वजनिक पद पर कार्य नहीं किया है।
कनाडा में कुछ ही समय बाद चुनाव होने वाले हैं। 2008-2009 के वित्तीय संकट के दौरान बैंक ऑफ कनाडा के गवर्नर के रूप में कार्य करने से पहले कार्नी गोल्डमैन सैक्स में निवेश बैंकर थे और उन्होंने ब्रेक्सिट वोट में उथल-पुथल के दौरान बैंक ऑफ इंग्लैंड का नेतृत्व भी किया था।