2019 लोकसभा चुनावों के बाद से यूपी का राजनीतिक समीकरण बदल गया हैउत्तर प्रदेश में अब बाहुबलियों का तिलिस्म टूटता नजर आ रहा हैरंगदारी मामले में जेल जाने के बाद धनंजय सिंह का चुनाव लड़ने का सपना टूटा
लखनऊ: अपराध और माफिया के खिलाफ यूपी में जीरो टॉलरेंस की नीति के बाद यह सवाल उठ रहे हैं कि इस बार के लोकसभा चुनाव में बाहुबल कितना प्रबल रहेगा। साल 2012 से 2022 के दौरान हुए चुनावों को देखें तो यूपी में बाहुबलियों का तिलिस्म टूटता नजर आ रहा है। चुनाव दर चुनाव बाहुबलियों को नकारने का सिलसिला बढ़ता जा रहा है। माननीयों से जुड़े मुकदमों में तेज हुई पैरवी ने भी बाहुबलियों की कमर तोड़ने में अहम भूमिका निभाई है।इसका ताजा उदाहरण हैं NDA के घटक दल जेडीयू से टिकट की आस लगाने वाले बाहुबली धनंजय सिंह का। वह जेडीयू के टिकट पर जौनपुर से लड़ने की तैयारी में थे।
लेकिन बीजेपी ने महाराष्ट्र के पूर्व गृह राज्यमंत्री और पूर्व कांग्रेसी कृपाशंकर सिंह को टिकट देकर उनकी उम्मीदों को तोड़ दिया। धनंजय ने बीजेपी के टिकट की घोषणा के कुछ देर बाद ही सोशल मीडिया पर जौनपुर से चुनाव लड़ने की पोस्ट डालकर अपने समर्थकों को तैयार रहने का संदेश दे डाला। हालांकि, तीन दिन बाद ही अपहरण के एक मामले में धनंजय को सजा हो गई और उनका चुनाव लड़ने का इरादा टूट गया। अब चर्चा है कि धनंजय अपनी पत्नी श्रीकला रेड्डी को जौनपुर से लड़वा सकते हैं।
लोकसभा चुनाव: यूपी की 80 सीटों पर सबकी नजर, बीजेपी-SP, बसपा और कांग्रेस उम्मीदवारों की पूरी लिस्ट देखिएधनंजय को 2009 के बाद नहीं मिली जीतबाहुबली धनंजय सिंह को जौनपुर में 2009 के लोकसभा चुनाव के बाद से जीत हासिल नहीं हुई है। 2009 में धनंजय बीएसपी के टिकट पर सांसद बने और अपने पिता राजदेव को खाली हुई सीट पर विधायकी जितवाई। इन जीत के अलावा 2022 में मल्हनी सीट से धनंजय विस चुनाव हारे थे। 2017 में भी धनंजय को विस चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था। 2012 में धनंजय ने अपनी दूसरी पत्नी डॉ. जागृति को मलहनी से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में लड़वाया, लेकिन हार मिली। जुलाई 2021 में उनकी पत्नी श्रीकला ने जिला पंचायत अध्यक्ष के पद पर जीत हासिल की, क्योंकि परदे के पीछे से NDA के सहयोगी दल का समर्थन मिला था।
डीपी यादव परिवार कर सकता है दावेदारीबदायूं से वेस्ट यूपी के बाहुबली डीपी यादव की दावेदारी आ सकती है। चर्चा है कि वह बीजेपी के टिकट पर खुद या बेटे को चुनाव लड़वाने की तैयारी में हैं। बीजेपी ने भी अभी तक इस सीट पर प्रत्याशी की घोषणा नहीं की है। सपा से इस सीट पर पार्टी के कद्दावर नेता शिवपाल यादव चुनाव लड़ रहे हैं। अभी यहां से बीजेपी की संघमित्रा मौर्य सांसद हैं।
गाजीपुर से अफजाल, पर बृजभूषण पर संशयमाफिया मुख्तार अंसारी के बड़े भाई अफजाल अंसारी इस बार सपा के टिकट पर गाजीपुर से ताल ठोक रहे हैं। इससे पहले वह बीएसपी के टिकट पर गाजीपुर से जीते थे। मुख्तार व उसके परिवार के खिलाफ हुई कार्रवाई के बाद इस बार का चुनाव कितना चुनौती भरा होगा, यह देखना होगा। कैसरगंज सीट से बाहुबली बृजभूषण की दावेदारी को लेकर भी संशय है। कहा जा रहा है कि अगर उनका टिकट कटा तो परिवार से ही कोई दावेदार होगा।अतीक के परिवार से नहीं आ पाएगी दावेदारीहर चुनाव में ताल ठोकने वाले माफिया अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की हत्या के बाद इस परिवार से कोई दावेदारी आना मुश्किल है।
दरअसल, अतीक की पत्नी उमेश पाल व दो सिपाहियों की हत्या में वॉन्टेड है। दो बालिग बेटे उमर और अली जेल में हैं। भाई अशरफ की पत्नी भी अंडरग्राउंड है। हालांकि, अतीक ने 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ वाराणसी से चुनाव लड़ा था और 1000 वोट भी नहीं मिले थे।ये हैं दम भरने को तैयारबाहुबली अमरमणि त्रिपाठी के बेटे अमनमणि त्रिपाठी ने हाल में टिकट की चाह में कांग्रेस की सदस्यता ली है। हालांकि, उन्हें टिकट मिलेगा इस पर संशय है। वहीं, ईडी के शिकंजे में घिरे बाहुबली हरिशंकर तिवारी के बेटे विनय तिवारी पिता के निधन के बाद संत कबीर नगर व श्रावस्ती से सपा के टिकट पर चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं।
2019 में निकला बड़े बड़ों का दम2019 के लोकसभा चुनाव में माफिया अतीक अहमद के अलावा रमाकांत यादव, अक्षय प्रताप सिंह उर्फ गोपाल जी, आनंद सेन, बाल कुमार पटेल, अरुण शंकर शुक्ला उर्फ अन्ना, भगवान शर्मा उर्फ गुड्डू पंडित, विनोद कुमार उर्फ पंडित सिंह (निधन हो चुका है), चंद्रभद्र सिंह उर्फ सोनू सिंह और बाहुबली हरिशंकर तिवारी के बेटे भीष्म शंकर तिवारी को हार का सामना करना पड़ा था।क्यों नकारे जा रहे?माननीयों के मुकदमों को लेकर सुप्रीम कोर्ट के सख्त रुख और यूपी में योगी सरकार के सत्ता में आने के बाद माननीय बने बाहुबलियों के मुकदमे में तेजी से फैसले आए हैं। बीते तीन साल में 60 से ज्यादा माननीयों या पूर्व माननीयों को सजा हो चुकी है।
इसमें माफिया मुख्तार अंसारी, अतीक अहमद, धनंजय सिंह, इंद्रसेन उर्फ खब्बू तिवारी जैसे बाहुबलियों को सजा हुई और वे चुनाव लड़ने से वंचित हो गए। कुछ बाहुबलियों को अपवाद के रूप में छोड़ दिया जाए तो ज्यादातर को बीते तीन चुनावों में हार का सामना करना पड़ा है।