नई दिल्ली। आचार्य चाणक्य ने शासन, प्रशासन, परिवार और समाज के कर्तव्य के बारे में विस्तार से उल्लेख चाणक्य नीति में किया है। आचार्य चाणक्य ने शरीर को स्वस्थ रखने के लिए खानपान को लेकर भी विस्तृत चर्चा की है। खुद को सेहतमंद रखने के लिए आचार्य चाणक्य ने ये नसीहत दी है।
पथ्यमप्यपथ्याजीर्णे नाश्नीयात्
आचार्य चाणक्य ने इस श्लोक में कहा है कि यदि अजीर्ण हो गया हो तो पथ्य भोजन को भी त्याग देना चाहिए। आचार्य ने कहा कि अजीर्ण होने पर व्यक्ति को ऐसा भोजन करना चाहिए, जिसे पचाने में कठिनाई नहीं आती है। अजीर्ण की समस्या होने पर भोजन का त्याग कर देना चाहिए। कहा गया है कि ‘अजीर्ण भोजनं विषम्’ अर्थात् अजीर्ण होने पर भोजन विष के समान होता है।
जीर्णभोजिनं व्याधिर्नोपसर्पति
भोजन के पच जाने पर ही जो व्यक्ति भोजन करता है, वह हमेशा सभी बीमारियों से बचा रह सकता है। मनुष्य का शरीर रोगों का घर है, परंतु रोगों से बचने का उपाय यह है कि व्यक्ति अपनी क्षमता से अधिक भोजन न करे। जो व्यक्ति आवश्यकता से अधिक खाद्य भोजन का सेवन करता है, वे सदैव बीमार रहते हैं।
जीर्णशरीरे वर्धमानं व्याधिर्नोपेक्ष्येत्
आचार्य चाणक्य ने कहा है कि वृद्ध अवस्था में यदि व्यक्ति रोगी रहने लगता है तो उसे अधिक सावधान रहना चाहिए। उसे बीमारियों की अनदेखी नहीं करना चाहिए। वृद्धावस्था में मनुष्य की इंद्रियां शिथिल पड़ जाती हैं। उनमें इतनी शक्ति नहीं रहती कि वह बीमारियों से मुकाबला कर सके।