)देहरादून (उत्तराखंड): पहाड़ी राज्य उत्तराखंड हर साल प्राकृतिक आपदाओं की मार झेलता है. जिसमें जान माल का काफी नुकसान पहुंचता है. इस आपदा में बादल फटने की घटना भी शामिल है, जो आपदा की मुख्य वजहों में शामिल है. प्रदेश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का करीब तीन चौथाई हिस्सा गंभीर से लेकर हाई भूस्खलन जोन वाले क्षेत्र में आता है. बीती रोज भी टिहरी के जखन्याली और रुद्रप्रयाग के केदारनाथ पैदल मार्ग पर लिनचोली में भी बादल फटने की घटना की देखने को मिली. जिसमें 3 लोगों की जान गई,
लेकिन इन घटनाओं ने उन घटनाओं की यादें ताजा कर दी, जिसने भारी तबाही मचाई थी.अगर पिछली आंकड़ों पर गौर करें तो आपदा ने उत्तराखंड को कई गहरे जख्म दिए हैं. जिसमें हजारों लोगों की असमय ही जानें जा चुकी है. सबसे बड़ा आपदा साल 2013 में केदारनाथ का आपदा था. जिसमें पांच हजार से ज्यादा लोगों की जानें गई. इसके अलावा अगस्त 1998 में रुद्रप्रयाग के ऊखीमठ और पिथौरागढ़ में बादल फटा था. अगस्त 2001 में रुद्रप्रयाग के फाटा, अगस्त 2002 में टिहरी के बूढ़ाकेदार, अगस्त 2012 उत्तरकाशी के अस्सी गंगा, सितंबर 2012 रुद्रप्रयाग के ऊखीमठ, जून 2013 रुद्रप्रयाग के केदारनाथ में बादल फटने की घटना हुई.
इसके अलावा अगस्त 2019 में उत्तरकाशी के आराकोट, अगस्त 2020 रुद्रप्रयाग, मई 2021 देहरादून, मई 2022 में नैनीताल और बागेश्वर, जुलाई 2023 उत्तरकाशी, अगस्त 2024 में टिहरी में बादल फटने की घटनाएं दर्ज की गई. हाल ही वर्षों की बात करें तो साल 2019 में उत्तराखंड में ऐसी 23 घटनाएं हुईं और 19 लोगों की मौत हुई. साल 2020 में 14 बादल फटने की घटनाएं हुई. जबकि, साल 2021 में उत्तराखंड के 9 जिलों में कम से कम 26 बादल फटने की घटनाएं हुई हैं. वहीं, साल 2022 में बादल फटने की 31 घटनाएं हुईं.उत्तराखंड में बादल फटने समेत अन्य बड़ी घटनाएं और नुकसान-20 जुलाई 1070 को चमोली के गणाई में बादल फटा था. जिसमें 200 लोगों की मौत और 33 घर तबाह हुए थे.13-19 जुलाई 1971 को पिथौरागढ़ के डोबाटा गांव में बादल फटने की घटना हुई थी.
जिसमें 12 लोगों की मौत हुई थी. जबकि, 35 घर मलबे में दब गए थे.17 अगस्त 1979 को रुद्रप्रयाग के कुंथा में बादल फटने से 39 लोगों की मौत हुई थी. जबकि, 39 मवेशियों की भी मौत हुई थी. वहीं, 20 घर पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हुए थे.17 अगस्त 1979 को ही रुद्रप्रयाग के सिरवाड़ी गांव में बादल फटने से 13 लोगों की मौत हुई. जबकि, 150 मवेशी भी मारे गए. वहीं, 34 घर तबाह हुए.24-25 अगस्त 1980 को उत्तरकाशी के ज्ञानसू नाले में बादल फटने की घटना में 24 लोगों की मौत हुई थी. कई घर सैलाब में बहे.23 जुलाई 1983 को बागेश्वर के कपकोट के करमी गांव में बादल फटा था. जिसमें 25 लोगों की मौत हुई थी. जबकि, 20 जानवर मारे गए और 6 घर ध्वस्त हुए.9 जुलाई 1990 को पौड़ी के नीलकंठ क्षेत्र में बादल फटने की घटना में 100 लोगों की मौत हुई. जबकि, 10 मकान पूरी तरह से डैमेज हुए
.16 अगस्त 1991 को चमोली के गंगोलगांव और देवर खादोड़ा में बादल फटने से 26 लोगों की जान गई. जबकि, 63 मवेशी मरे और 38 घर तबाह हो गए.2 सितंबर 1992 को चमोली के गडनी के खांकराखेत पहाड़ी में भूस्खलन हुआ. जिसमें 14 लोगों की मौत हुई. 31 घर ध्वस्त हुए. जबकि, 20 हेक्टेयर भूमि बह गया.11-19 अगस्त 1998 को रुद्रप्रयाग के ऊखीमठ तहसील के भेंटी-पौंडार गांव में बादल फटा, जिसमें 103 लोगों की जान गई. इसके अलावा 422 मवेशी भी मारे गए. वहीं, 820 पूरी तरह से तबाह हुए.अगस्त 1998 में कुमाऊं में काली घाटी में बादल फटा था. इस घटना में करीब 250 लोगों की मौत हुई थी. इसमें कैलाश मानसरोवर की यात्रा करने वाले करीब 60 लोगों ने भी जान गंवाई थी.18 सितंबर 2010 बागेश्वर के कपकोट तहसील के सुमगढ़ गांव में प्राथमिक विद्यालय और सरस्वती शिशु मंदिर पर चट्टान व मलबा गिरा था. जिसमें 18 बच्चों ने जान गंवाई थी.13 सितंबर 2012 को रुद्रप्रयाग के ऊखीमठ में 69 लोग भूस्खलन की चपेट में आने से मारे गए. जबकि, 15 लोग गंभीर रूप से घायल हो गए.
70 आवासीय भवन क्षतिग्रस्त हो गए.सितंबर 2012 में उत्तरकाशी में बादल फटने की घटना में 45 लोगों की जानें गई. इस घटना में लापता 40 लोग हुए. जिनमें से केवल 22 लोगों के ही शव मिल पाए.16-17 जून 2013 को केदारनाथ में आपदा आई. इस घटना ने देश और दुनिया को सन्न कर दिया था. इस हादसे में 5 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हुई. कई हजार लापता हो गए. लापता लोगों में ज्यादातर तीर्थयात्री शामिल थे. यह उत्तराखंड के इतिहास में सबसे बड़ी आपदा थी.साल 2014 जुलाई में टिहरी में बादल फटने से 4 लोगों ने जान गंवाई.18 अगस्त 2019 उत्तरकाशी जिले की मोरी तहसील के आराकोट क्षेत्र में 21 लोगों की मौत हुई. जबकि, 74 मवेशी मारे गए.19-20 जुलाई 2020 को पिथौरागढ़ के मुनस्यारी में कई जगहों पर बादल फटने से भारी तबाही मची. मुनस्यारी के टांगा गांव में 11 लोगों ने जान गंवाई. जबकि, गेला गांव में 3 लोग आपदा में मारे गए. वहीं, छोरीबगड़ गांव में 5 घर पूरी तरह से जमींदोज हो गए.4 अगस्त 2023 को रुद्रप्रयाग के गौरीकुंड में चट्टान गिर गया था. जिससे कुछ दुकानें सीधे मंदाकिनी में समा गई थी. जिसमें 23 लोग लापता हो गए थे.
जिसमें 10 शव बरामद कर लिए गए और 13 लोग लापता चल रहे हैं.31 जुलाई 2024 को टिहरी के जखन्याली में बादल फटने से एक ही परिवार के 3 लोगों की मौत हुई.क्यों फटते हैं बादल: मौसम वैज्ञानिकों की मानें तो जब बादलों का घनत्व बढ़ जाता है, तब वो पहाड़ी इलाकों में फंस जाते हैं. जिससे वो आगे नहीं बढ़ पाते हैं. यानी बादल फटने की घटना तब होती है, जब बहुत ज्यादा नमी वाले बादल एक ही जगह पर रुक जाते हैं. पानी की बूंदों का वजन बढ़ने से बादलों का घनत्व भी बढ़ जाता है. ऐसे में अचानक से एक ही जगह पर बरस जाते हैं. इस दौरान कुछ ही मिनटों में 2 सेंटीमीटर से ज्यादा तक बारिश हो जाती है.बादल फटने के दौरान नदी नालों और गदेरों का जलस्तर अचानक बढ़ने से आपदा जैसे हालात बन जाते हैं. ढलान की वजह से पहाड़ों पर बारिश का पानी रुक नहीं पाता है. ऐसे में खड़ी ढलानों से बहता पानी तेजी से नीचे की ओर आता है. नीचे आने वाला पानी अपने साथ मिट्टी, कीचड़, पत्थर, मलबा और पेड़ों के साथ लेकर आता है.