नई दिल्ली:– सोमवार 24 जून को देश के पांचवें राष्ट्रपति भारत रत्न वी.वी. गिरि की पुण्यतिथि है। वी.वी. गिरि इकलौते ऐसे राष्ट्रपति रहे हैं जिन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर राष्ट्रपति का चुनाव जीता था। वी.वी. गिरि के उपराष्ट्रपति से कार्यवाहक राष्ट्रपति और फिर राष्ट्रपति बनने की कहानी बेहद ही दिलचस्प है।
साल था 1969 और तारीख थी तीन मई। तत्कालीन राष्ट्रपति जाकिर हुसैन का हार्ट अटैक से निधन हो गया। तब वी.वी. गिरि उपराष्ट्रपति थे। उन्हें तत्काल प्रभाव से कार्यवाहक राष्ट्रपति बना दिया गया। राष्ट्रपति की रिक्त कुर्सी के लिए चुनाव होना था। यह वह दौर था कांग्रेस में इंदिरा गांधी अपने पैर पूरी तरह जमाने के लिए बेताब थी। कांग्रेस के तत्कालिक अध्यक्ष के. कामराज को इंदिरा गांधी चुनौती देने लगी थी। पार्टी में सिंडिकेट बनाम इंदिरा गांधी का माहौल बनने लगा था।
कांग्रेस में शुरू हुई अंतर्कलह
के कामराज की खेमें में अतुल्य घोष, महाराष्ट्र के एस.के. पाटिल, कर्नाटक के निजलिंगप्पा और बिहार की तारकेश्वरी सिन्हा जैसे दिग्गज शामिल थे। दूसरी तरफ प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी जिसे तब तक केवल गूंगी गुड़िया समझा जाता था। लेकिन चंद्रशेखर, अर्जुन अरोड़ा, कृष्णकांत, मोहन धारिया, रामधन और लक्ष्मीकांत थम्मा जैसे युवा नेता साथ खड़े थे।
नीलम संजीव रेड्डी बने कांग्रेस उम्मीदवार
राष्ट्रपति चुनाव के लिए उम्मीदवार तय किया गया। कांग्रेस की तरफ कैंडिडेट के तौर पर आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे नीलम संजीव रेड्डी. को मैदान में उतारा गया। कामराज का खेमा पूरी तरह रेड्डी के प्रचार में जुटा हुआ था। दूसरी ओर इंदिरा गांधी भी ऊपरी मन से बैठकों और प्रचार अभियानों में पहुंच रही थीं।
इंदिरा को नहीं मिली तवज्जो
कहा जाता है इंदिरा गांधी जगजीवन राम को राष्ट्रपति बनाना चाहती थीं। लेकिन के. कामराज के साथ सिंडिकेट के और नेता नीलम संजीव रेड्डी के नाम पर अड़े रहे। बेंगलुरु में कांग्रेस संसदीय समिति की बैठक में इंदिरा ने प्रस्ताव भी रखा लेकिन वह पास नहीं हो पाया। इंदिरा को यह बात हज़म नहीं हुई।
निर्दलीय मैदान में उतरे वी.वी गिरि
इस बीच इंदिरा गांधी ने 10 जुलाई, 1969 को 14 बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया। कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में कार्य कर रहे वी.वी. गिरि ने इस पर हस्ताक्षर किए। इसके बाद उन्होंने इस्तीफा देते हुए राष्ट्रपति चुनाव के लिए निर्दलीय पर्चा दाखिल कर दिया। शुरू में सबको लगा कि यह उनकी अपनी मर्जी है। लेकिन अंदरखाने इंदिरा गांधी उनके लिए समर्थन जुटा रही थीं।
इंदिरा ने सांसदों को किया इशारा
मतदान से ठीक एक दिन पहले इंदिरा ने कांग्रेस के सांसदों से साफ तौर पर कहा कि वे अंतरात्मा की आवाज पर वोट करें। कांग्रेस के सांसद इंदिरा का इशारा समझ गए। उन्होंने वी.वी. गिरि के पक्ष में वोट किया। कांग्रेस के आधिकारिक उम्मीदवार नीलम संजीव रेड्डी की हार हो गई और वी.वी. गिरि राष्ट्रपति बन गए। यह आज तक का इकलौता ऐसा राष्ट्रपति चुनाव है जब कोई निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर राष्ट्रपति का चुनाव जीता था।
काग्रेस में हुई दो फाड़
इस राष्ट्रपति चुनाव के बाद इंदिरा को एक मजबूत राजनेता के तौर पर आंका जाने लगा। सिंडिकेट को भी इंदिरा गांधी से ख़तरा महसूस होने लगा था। नतीजतन कांग्रेस अध्यक्ष निजलिंगप्पा ने इंदिरा को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया। इंदिरा ने भी नई पार्टी का कांग्रेस ऐलान कर दिया।