नई दिल्ली:– अभियंता दंपति को विवाह विच्छेद की अनुमति देने वाले मद्रास उच्च न्यायालय के आदेश को बरकरार रखते हुए कहा कि शादी एक ऐसा रिश्ता है जो आपसी विश्वास, साहचर्य और साझा अनुभवों पर बनता है.
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति पीबी वराले की पीठ ने कहा कि अलगाव की अवधि और पति-पत्नी के बीच स्पष्ट तल्खी यह स्पष्ट करती है कि विवाह को बचाने की कोई संभावना नहीं है.पीठ ने कहा, ‘‘विवाह आपसी विश्वास, साहचर्य और साझा अनुभवों पर बना एक रिश्ता है. जब ये आवश्यक तत्व लंबे समय तक गायब रहते हैं तो वैवाहिक बंधन किसी भी सार से रहित केवल कानूनी औपचारिकता बनकर रह जाता है.”इसमें कहा गया है कि अदालत ने लगातार माना है कि लंबे समय तक अलगाव और मेल-मिलाप करने की अक्षमता वैवाहिक विवादों पर निर्णय लेने में एक प्रासंगिक कारक है. पीठ ने कहा कि मौजूदा मामले में अलगाव की अवधि और दोनों पक्षों के बीच स्पष्ट दुश्मनी से यह स्पष्ट हो जाता है कि शादी को बचाने की कोई संभावना नहीं है.
पीठ ने कहा कि पति और पत्नी दो दशकों से अलग-अलग रह रहे हैं और यह तथ्य इस निष्कर्ष को और पुष्ट करता है कि यह विवाह अब व्यवहार्य नहीं है. शीर्ष अदालत ने उन महिलाओं की अपील खारिज कर दी जिन्होंने क्रूरता के आधार पर विवाह विच्छेद की अनुमति देने वाले मद्रास उच्च न्यायालय की मदुरै पीठ के आठ जून, 2018 के फैसले को चुनौती दी थी.