नई दिल्ली:– आपको बता दे की इन दिनों सावन का महीना चल रहा है। मंदिरों में भी से भक्तों का तांता लगा हुआ है और भगवान शिव के विशेष अनुष्ठान किए जा रहे हैं। हिंदू मान्यता के अनुसार भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए जलाभिषेक किया जाता है और उन पर बेलपत्र भी चढ़ाया जाता है, लेकिन कुछ चीज ऐसी भी है, जिसे भगवान शिव पर चढ़ाना वर्जित माना गया है। इसके बारे में आपके यहां बताते हैं।
दरअसल, पूजा के दौरान भगवान शिव को तुलसी के पत्ते नहीं चढ़ाए जाते हैं। इसको लेकर अलग-अलग पौराणिक कथा भी जुड़ी है, जिसके बारे में हम आपको बताते हैं।
पहली कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय जालंधर नाम का राक्षस हुआ करता था। उसकी पत्नी का नाम वृंदा था। जालंधर वृंदा पर बहुत अत्याचार करता था, जिसके कारण भगवान शिव ने श्री हरि को जालंधर को सबक सिखाने के लिए कहा। इसके बाद भगवान विष्णु ने जालंधर का रूप धारण कर वृंदा के प्रबंध धर्म को भंग कर दिया।
वृंदा को जब इस बार में पता चला तो वह क्रोधित हो गई और उसने भगवान विष्णु को पत्थर बनने का श्राप दे दिया। इस समय भगवान विष्णु ने वृंदा से कहा कि वह उसे जालंधर के अत्याचारों से बचा रहे थे और उन्होंने वृद्धा को श्राप दिया कि तुम लकड़ी की बन जाओ। कालांतर में वृंदा तुलसी बन गई। तुलसी को भगवान विष्णु का श्राप था और इसी श्राप के कारण तुलसी भगवान शिव की पूजा में नहीं चढ़ाई जाती।
दूसरी कथा
एक अन्य कथा के अनुसार जालंधर की पत्नी वृंदा पतिव्रता थी और इस कारण जालंधर अधिक शक्तिशाली हो गया था। ऐसे में जालंधर का अंत करने के लिए भगवान विष्णु ने उसी का रूप धारण किया और वृंदा का पतिव्रत धर्म भंग कर दिया।
जब वृंदा को इसकी जानकारी लगी, तो उसने खुद को आग के हवाले कर दिया। जिस जगह पर वृंदा ने खुद को आग लगाई, वहां तुलसी का पौधा उग गया। वृंदा ने तुलसी को शिव भगवान की पूजा में शामिल न करने का भी श्राप दिया था।ये वस्तुएं भी है वर्जित
भगवान शिव को कनेर और लाल रंग के फूल भी पूजा में नहीं चढ़ाए जाते। इसके अलावा केतकी का फूल भी शिव पूजा में वर्जित माना गया है।