छत्तीसगढ़:– कृषि महाविद्यालय शस्य विज्ञान विभाग की पहल पर आयोजित गाजर घास उन्मूलन जागरूकता सप्ताह कार्यक्रम को संबोधित करते हुए बैरिस्टर ठाकुर छेदीलाल कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र के अधिष्ठाता डा.आरकेएस तिवारी ने अपने संबोधन में आगे कहा कि इस खरपतवार में ऐस्क्युटरपिन लेक्टोन नामक विषाक्त पदार्थ पाया जाता है, जो फसलों की अंकुरण क्षमता और विकास पर विपरीत असर डालता है। इसके परागकण, पर- परागित फसलों के मादा जनन अंगों में एकत्रित हो जाते हैं जिससे उनकी संवेदनशीलता खत्म हो जाती है और बीज नहीं बन पाते हैं।
दलहनी फसलों में नाइट्रोजन स्थिरीकरण करने वाले जीवाणुओं की क्रियाशीलता को भी कम करता है। इस अवसर पर डा.टीडी पांडेय, प्राध्यापक एवं विभाग प्रमुख ने अपने उद्बोधन में बताया कि यह घास सन 1955 में अमेरिका से भारी मात्रा में गेहूं के आयात से भारत को सौगात के रूप में मिली है। इसे कांग्रेस घास, सफेद टोपी, चटक चांदनी आदि नामों से भी पहचाना जाता है।
यह तीन चार महीने में अपना जीवन चक्र पूरा कर लेती है। एक वर्ष में इसकी तीन चार पीढ़ियां पूरी हो जाती है। इस आयोजन में कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र बिलासपुर के समस्त प्राध्यापक, वैज्ञानिक, कर्मचारी तथा छात्र-छात्राएं उपस्थित थे।
छोड़ने की अनुशंसा
डा. दिनेश कुमार पांडेय, वैज्ञानिक एवं आयोजन सचिव ने बताया कि इसे नष्ट करने के लिए हमें फूल आने से पहले ही जड़ से उखाड़कर खत्म कर देना चाहिए। इसके पश्चात समस्त प्राध्यापक, वैज्ञानिक, कर्मचारी एवं छात्र-छात्राओं ने प्रक्षेत्र में उग रही गाजर घास को उखाड़ कर नष्ट किया एवं उसके समूल उन्मूलन की शपथ ली। डा. आर.के. शुक्ला, प्राध्यापक ने इसके जैविक नियंत्रण के लिए मैक्सिकन कीट जाईगोग्रामा बाईकोलोराटा को वृहद स्तर पर छोड़ने की अनुशंसा की।