भारत के ऐतिहासिक चंद्रयान-3 मिशन के बाद, कई और देशों ने मून मिशन लाॅन्च किया है. अमेरिका भी आर्टेमिस-3 मिशन से इंसान को सालों बाद चांद पर वापस भेजने की तैयारी कर रहा है. मिशन करीब 30 दिनों तक चलेगा. इसमें चालक दल के दो सदस्य सतह पर उतरकर चांद के साउथ पोल की स्टडी करेंगे. इस बीच एक स्टडी में कुछ ऐसा खुलासा हुआ है जिससे नासा को अपने मिशन पर फिर से विचार करना पड़ेगा.चांद के साउथ पोल पर हुई ताजा स्टडी को प्लैनेटरी साइंस जर्नल में पब्लिश किया गया है. इसे अमेरिकी की स्पेस एजेंसी नासा ने फंड किया है. स्टडी में सामने आया है कि चांद लगातार सिकुड़ रहा है, जिससे साउथ पोल पर भूकंप के तीव्र झटके महसूस हो रहे हैं. आइए जानते हैं कि आखिर चांद क्यों सिकुड़ रहा है.
थ्रस्ट फॉल्ट क्यों है चिंता की बात?नासा के लूनर रिकोनाइसेंस ऑर्बिटर (LRO) पर लगे लूनर रिकोनाइसेंस ऑर्बिटर कैमरे से चांद की सतह पर हजारों छोटे और नए थ्रस्ट फॉल्ट का पता लगाया गया है. चांद की सतह पर ये किसी चट्टान से नजर आ रहे हैं. थ्रस्ट फॉल्ट को इस तरह समझ सकते हैं कि अंगूर के सिकुड़ने की तरह चंद्रमा के सिकुड़ने पर उस पर झुर्रियां सी बन जाती है. लेकिन चांद की परत अंगूर की तरह लचीली नहीं होती. इसलिए जब चांद की सतह सिकुड़ती है, तो एक परत टूटकर दूसरे परत के ऊपर धकेली जाती है, जिससे थ्रस्ट फॉल्ट बनते हैं. अब सवाल उठता है कि आखिर चांद सिकुड़ क्यों रहा है.
चांद की सतह पर थ्रस्ट फॉल्ट किसी चट्टान की तरह नजर आ रहे हैं. (NASA)चांद क्यों सिकुड़ रहा है?चांद के सिकुड़ने के पीछे दो कारण बताए जा रहे हैं. एक ये कि जब चांद बन रहा था, तब कई सारे एस्टेरॉयड और मेटेओर उससे टकराए थे. इस वजह से चांद के अंदर के हिस्सा का तापमान गर्म हो गया. वहीं, जब से चांद बना तब से वो ठंडा हो रहा है. चांद के सिकुड़ने की एक वजह चंद्रमा के अभी भी गर्म आंतरिक भाग का ठंडा होना है. इसके अलावा पृथ्वी से उत्पन्न होने वाली टाइडल फोर्स भी चांद के सिकुड़ने की प्रमुख वजह बताई गई है.यानी कि जैसे-जैसे चांद ठंडा होगा, यह सिकुड़ेगा और इसकी नाजुक सतह टूट टूटती जाएगी.
वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया है कि पिछले कई करोड़ों सालों में, चंद्रमा का डायमीटर सिकुड़कर लगभग 150 फीट (50 मीटर) छोटा हो गया है.चांद पर आ रहे हैं मूनक्वेकथ्रस्ट फॉल्ट बनने से सिर्फ सतह के ऊपर असर नहीं हो रहा. बल्कि, इनकी वजह से सतह के नीचे भूकंप के तेज झटके आ रहे हैं. चांद पर आने वाले भूकंप को मूनक्वेक कहा जाता है. इनको मापने के लिए उन डिवाइस का इस्तेमाल होता है, जिन्हें अपोलो प्रोग्राम के एस्ट्रानाॅट्स चांद पर छोड़कर आए थे. नासा की रिपोर्ट के अनुसार, दर्ज किए गए सबसे शक्तिशाली मूनक्वेक का केंद्र साउथ पोल क्षेत्र में था. यह वो ही हिस्सा है जहां भारत के चंद्रयान-3 ने सफल लैंडिंग की थी.Moon Earthquake Instrumentअपोलो प्रोग्राम के अंतरिक्ष यात्री चांद पर वैज्ञानिक डिवाइस छोड़कर आए थे.
(NASA)रिसर्च टीम ने पाया कि साउथ पोल के क्षेत्र के कुछ इलाके में हल्के भूकंपीय झटकों से भी लैंडस्लाइड का खतरा रहता है. हालांकि, बर्फ जैसे संसाधनों के मिलने की उम्मीद की वजह से इन जगहों पर वैज्ञानिकों की खास नजर बनी रहती है.रिसर्च पेपर के लीड ऑथर टॉम वाटर्स ने कहा, ‘चांद पर स्थायी बेस बनाने की लोकेशन चुनने से पहले चांद पर फैले नए थ्रस्ट फॉल्ट और उनकी क्षमता को समझना जरूरी है.’