देश के पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव को भारत रत्न मिलेगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके नाम का ऐलान किया है.कांग्रेस में 50 साल से ज्यादा लम्बा समय बिताने वाले नरसिम्हा राव को कई बातों के जाना गया. 65 साल की उम्र में कम्प्यूटर सीखा. देश में आर्थिक सुधारों के लिए उनका नाम दर्ज हुआ. आर्थिक उदारीकण का जनक कहा गया. राजनीतिक टिप्पणी लिखने के लिए भाषाएं सीखीं. 10 भाषाओं में बात करने का हुनर था. अनुवाद पर गहरी पकड़ थी. संगीत-सिनेमा और थिएटर से लगाव रहा. तेलुगू और हिन्दी में कविताएं लिखने के लिए चर्चा में रहे.28 जून 1921 को करीमनगर में जन्मे राव ने उस्मानिया, मुंबई और नागपुर विश्वविद्यालय पढ़ाई की. शुरुआती दौर में पेशे से कृषि विशेषज्ञ और वकील रहे. फिर राजनीति में एंट्री हुई. 1951 में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (AICC) के सदस्य बने. 1957 में मंथनी सीट (अब तेलंगाना के पेद्दापल्ली जिले में) जीती और आंध्र प्रदेश विधानसभा पहुंचे
1962 से 64 तक तत्कालीन आंध्र प्रदेश सरकार में कानून एवं सूचना मंत्री रहे. 1964 से 67 तक कानून मंत्री और 1967 में स्वास्थ्य एवं चिकित्सा मंत्री की कुर्सी संभाली. 1968 से 1971 तक शिक्षा मंत्री और 1971 से 73 तक आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर पर राज्य की बागडोर संभाली.राजनीति में तेजी से उनका कद बढ़ता गया. लोकसभा पहुंचे. गृहमंत्री, रक्षा मंत्री और विदेशी मंत्री के तौर पर अपना योगदान दिया. 20 जून, 1991 से 16 मई, 1996 तक देश के प्रधानमंत्री रहे.भारतीय अर्थव्यवस्था को रास्ता दिखायाप्रधानमंत्री के रूप में राव के कार्यकाल को भारतीय अर्थव्यवस्था का तारणहार कहा गया.
उन्हें आर्थिक सुधारों के लिए जाना गया. साल 1991 में भारत में आर्थिक संकट मंडरा रहा था. महंगाई सातवें आसमान पर थी. विदेशी मुद्रा भंडार निचले स्तर पर पहुंच गया था. देश को विदेशी कर्ज से निकालने की चुनौती थी. तब राव ने तत्कालीन वित्त मंत्री मनमोहन सिंह के साथ अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए उदारीकण के उपायों को लागू कर दिया.देश में विदेशी निवेश का रास्ता खोला. घरेलू बाजार के नियम बदले. व्यापार व्यवस्था में सुधार किया. उनकी नीतियों ने देश में आर्थिक विकास और वैश्विक अर्थव्यवस्था में एकीकरण का रास्ता साफ किया.बतौर पीएम उनके कार्यकाल में एक बड़ी घटना तब हुई जब 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद को गिरा दिया गया था. घटना के कुछ महीने पहले ही लोकसभा में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर उनका बयान चर्चा में रहा था. उनका कहना था कि ”कांग्रेस मस्जिद को तोड़े बिना मंदिर निर्माण के पक्ष में है.”
राजनीति जीवन से इतर लेखन में रुचि रहीउन्हें संगीत, सिनेमा और थियेटर में खास रुचि थी. उन्होंने विश्वनाथ सत्यनारायण के प्रसिद्ध तेलुगू उपन्यास वेई पदागालू का हिन्दी में और मराठी उपन्यास पान लक्षत कोन घेटो का तेलुगू में अनुवाद किया.कई पत्रिकाओं के लिए लिखते रहे. राजनीतिक विषयों पर संयुक्त राज्य अमेरिका और पश्चिम जर्मनी के विश्वविद्यालयों में व्याख्यान देने पहुंचे.