: राजा-महाराजा के जमाने की बात हो तो खजाना जरूर याद आता है. आज तक लोग सोचते हैं कि क्या सचमुच खजाना होता है. झारखंड की स्वर्णरेखा नदी को भी लोग खजाना मानते हैं. यह नदी कुए से निकलती है. लोगों का कहना है कि इस नदी से सोना उगलता है. कई रहस्यमयी कहानियां सुनाई जाती हैं.स्वर्णरेखा नदी का इतिहासरांची का नगरी गांव से स्वर्णरेखा नदी का उद्गम होता है. नदी महाभारत काल की बताई जाती है. द्रौपदी को प्यास लगने पर अर्जुन ने बाण मारकर यहां से पानी निकाला था. यह नदी ओडिशा और पश्चिम बंगाल से गुजरते हुए 474 किलोमीटर की दूरी तय करती है.
कुएं से निकलती इस नदी को लोग जीवन दायनी के रूप में देखते हैं.पंडित देवेंद्र बताते हैं, ‘कहा जाता है कि इसी कुएं के पानी से माता द्रौपदी जल लेकर सूर्य भगवान को अर्घ डालकर छठ पर्व की उपासना करती थी. इसीलिए इस कुएं का पानी को काफी पवित्र माना जाता है. इसके आसपास के एरिये में किसी घर में शादी या फिर कोई भी शुभ काम होता है, तो इस कुएं का पानी का उपयोग किया जाता है. अगर एक छोटा सा भी सोने का कन दिख जाए और उसे कोई लेने की कोशिश करे, तो उस व्यक्ति का एक्सीडेंट हो जाता है. हमारे पूर्वज कहते हैं ऐसे कई लोगों के साथ हुआ है जो यहां से एकदम सोना चुराने की कोशिश की और बाहर जाकर उनका ऐसा एक्सीडेंट हुआ और मौत ही गयी.
.उगलती है सोनाइस नदी का नाम स्वर्णरेखा इसलिए ही रखा गया, क्योंकि इसमें से सोना निकलता है. विज्ञान भी नहीं बता पाया कि इस नदी में सोना आता कहां से है. हां, कई लोग यह जरूर बताते हैं कि नदी सोने के खानदान से गुजरती है. कई लोगों को नदी के पानी से सोने के कण मिल चुके हैं. लोग इसे चमत्कारी नदी बताते हैं.कुएं हो माना जाता खासभारत में बहुत नदियां हैं. लेकिन इस नदी की शुरुआत एक कुएं से होती है. मकर संक्रांति के मौके पर यहां मेला भी लगता है. दूर-दूर से लोग कुएं के पानी से नहाने आते हैं. ऐसा भी कहा जाता है कि माता सीता भी इस कुए के पानी को इस्तेमाल कर चुकी हैं.नदी से जुड़े हैं रहस्यकुछ लोग ऐसे भी बताते हैं कि इस नदी से निकलने वाले सोने का उठाना नहीं चाहिए. कई लोग ऐसा कर चुके हैं, जिसके बाद उन्हें अपनी जान गवानी पड़ी थी. पानी निकालते वक्त कण दिख भी जाए, तो लोग वापस डाल देते हैं.