नई दिल्ली:– धान और सोयाबीन की फसल का सीजन चल रहा है। इन फसलों को कई रोगों के साथ-साथ इल्ली का भी खतरा रहता है। इल्ली के प्रकोप से फसल को बचाने के लिए कीटनाशक दवाओं का छिड़काव होता है, लेकिन मुरैना आंचलिक कृषि अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिकों ने फसल को इल्लियों के प्रकाेप से बचाने का ऐसा रास्ता किसानों को बता रहे हैं, जो कीटनाशक के मुकाबले सस्ता और असरकारक है। सबसे अच्छी बात यह कि, इस तकनीक के कारण कीटनशाक के दुष्प्रभाव वे खेतों की मिट्टी व किसान दोनों सुरक्षित हैं।
मुरैना आंचलिक कृषि अनुसंधान केंद्र ने किसानों को फेरोमोन ट्रैप तकनीक बता रहे हैं। यह तकनीक चने की खेती के दौरान खासी सफल रही है, क्योंकि चने की फसल में अन्य फसलों की तुलना में इल्ली का प्रकोप जल्दी आता है। चने के खेतों में फेरोमोन ट्रैप यंत्र लगाने के बाद फसल पर इल्ली का प्रकोप बेहद कम हो गया।
इस पद्धति में खेत में थैलीनुमा एक उपकरण लगाया जाता है जिसे फेरोमोन ट्रैप कहा जाता है।
एक हेक्टेयर खेत में 12 से 15 फेरोमोन ट्रैप लगाए जाते हैं।
इनमें बने जालीनुमान बाक्स में कुछ मादा इल्ली रखी जाती हैं।
इस यंत्र से सेक्स हार्मोन विकसित होते हैं जिससे पहले नर इल्ली फंसते जाते हैं।
फेरोमोन ट्रैप में जैसे ही इल्ली आती है तो वह सीधे बेहद महीन जालियां वाली पन्नी में फंसकर कैद होती जाती हैं, इसके बाद वह फसल को नुकसान नहीं पहुंचा पाती।