नई दिल्ली:– पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने जमात-ए-इस्लामी पर प्रतिबंध हटाने का आह्वान किया ताकि वह जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनावों में भाग ले सके। उन्होंने नैशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला की उस टिप्पणी को अफसोसजनक बताया, जिसमें उन्होंने कहा था कि जमात-ए-इस्लामी कभी चुनावों को हराम मानती थी, लेकिन अब हलाल मानती है। महबूबा ने 1987 का जिक्र करके उमर अब्दुल्ला को निशाने पर लिया।उमर ने अनंतनाग जिले के पहलगाम में कहा, ‘हमें बताया गया था कि चुनाव हराम , लेकिन अब चुनाव हलाल हो गए हैं। देर आए दुरुस्त आए।’
श्रीनगर में पत्रकारों से बात करते हुए, महबूबा ने कहा कि 1987 में, जब जेईआई और अन्य समूहों ने चुनावों में भाग लेने की कोशिश की, तो एनसी ने बड़े पैमाने पर अनियमितताएं कीं क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि कोई तीसरी ताकत उभरे। उनके कारण ही आखिर में जेईआई और अन्य समूहों ने चुनाव का बहिष्कार किया।
जमात एक इस्लामी से बैन हटाने की मांग
महबूबा ने सरकार से जेईआई पर प्रतिबंध हटाने और उसकी जब्त संपत्ति वापस करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा, ‘अगर जमात-ए-इस्लामी चुनाव लड़ना चाहती है, तो यह अच्छी बात है… यह लोकतांत्रिक विचारों की लड़ाई है और इसमें किसी को भी भाग लेने की अनुमति दी जानी चाहिए। उनकी संस्थाओं और संपत्तियों को जब्त करके वापस किया जाना चाहिए।’
उमर अब्दुल्ला के बयान पर बरसीं महबूबा
महबूबा ने नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला पर जेईआई की चुनाव में भाग लेने की इच्छा पर व्यंग्यात्मक टिप्पणी करने के लिए निशाना साधा। उमर अब्दुल्ला ने मंगलवार को पहलगाम में संवाददाताओं से कहा, ‘पहले हमें बताया जाता था कि चुनाव ‘हराम’ हैं, लेकिन अब वे ‘हलाल’ हो गए हैं। देर आए दुरुस्त आए।’ पीडीपी प्रमुख ने कहा कि यह बयान खेदजनक है और यह ‘दुर्भाग्यपूर्ण है कि नेशनल कॉन्फ्रेंस जीतते समय चुनाव को हलाल और हारते समय हराम कहती है।’
‘जम्मू-कश्मीर को अपनी जागीर समझते हैं अब्दुल्ला’
महबूबा ने कहा कि उमर की पार्टी ने ही चुनाव के संबंध में हराम और हलाल की यह कहानी शुरू की थी। उन्होंने अब्दुल्ला पर कश्मीर को अपनी जागीर समझने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा, ‘1947 में जब दिवंगत शेख अब्दुल्ला पहली बार जम्मू-कश्मीर के मुख्य प्रशासनिक अधिकारी बने थे, तब चुनाव हलाल थे। उन्होंने कहा, ‘जब वे मुख्यमंत्री बने, तो चुनाव हलाल थे। लेकिन जब उन्हें पद से हटा दिया गया, तो 22 साल तक चुनाव हराम हो गए।’
पीडीपी चीफ ने कहा कि उस दौरान एनसी ने लगातार चुनाव प्रक्रिया का विरोध किया। उन्होंने कहा, ‘वे ‘जनमत संग्रह’ की बात करते रहे, जिसका उद्देश्य जम्मू-कश्मीर को आजाद कराना या पाकिस्तान के साथ जाना था।’ हालांकि, 1975 में जब शेख अब्दुल्ला सत्ता में लौटे, तो चुनाव अचानक फिर से हलाल हो गए।
पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा, ‘यह देखना दुखद है कि आज भी इस नैरेटिव का इस्तेमाल किया जा रहा है।’ उन्होंने रेखांकित किया कि इस ‘हलाल-हराम’ बहस का जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक प्रक्रिया पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ा है। लोकतंत्र को विचारों की लड़ाई बताते हुए पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने शुक्रवार को सरकार से जमात-ए-इस्लामी पर प्रतिबंध हटाने का आग्रह किया ताकि वह चुनाव लड़ सके।