देश में लोकसभा चुनाव के शंखनाद से पहले एक और चुनाव की दुंदुभि बज चुकी है और यह है राज्यसभा का चुनाव. दरअसल, 27 फरवरी को देश के 15 राज्यों की 56 राज्यसभा सीटों के लिए मतदान होना है. इन सीटों के लिए 15 फरवरी तक नामांकन किए जा सकते हैं. उम्मीदवार 20 फरवरी तक अपने नाम वापस ले सकते हैं.राज्यसभा चुनाव वाले राज्यों में यूपी, महाराष्ट्र, बिहार, गुजरात, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, ओडिशा, हरियाणा, हिमाचल, राजस्थान, उत्तराखंड, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ हैं. आइए जान लेते हैं कि आखिर राज्यसभा का चुनाव कैसे होता है और यह दूसरे चुनाव से अलग कैसे होता है?राज्यसभा के चुनाव में जनता नहीं लेती हिस्सादरअसल, राज्यसभा के चुनाव में आम जनता हिस्सा नहीं लेती, बल्कि उसके चुने हुए विधायक इसमें हिस्सा लेते हैं.
इसीलिए इसके चुनाव को अप्रत्यक्ष चुनाव भी कहा जाता है. भारत में संसद के दो हिस्से हैं. लोकसभा और राज्यसभा. दोनों सदनों से कोई विधेयक पास होने के बाद राष्ट्रपति के पास जाता है. उनके हस्ताक्षर के बाद विधेयक कानून का रूप ले लेता है और पूरे देश में उसका पालन होने लगता है
कभी भंग नहीं होता है उच्च सदनयह तो हम सभी जानते ही हैं कि लोकसभा का चुनाव सामान्य परिस्थितियों में हर पांच साल में होता है. इसके चुने गए सदस्यों की संख्या के आधार पर ही देश में सरकार बनती है. यानी लोकसभा के सदस्य सांसदों का कार्यकाल पांच साल के लिए होता है पर विपरीत परिस्थितियों में यह बीच में भी भंग की जा सकती है. इसके विपरीत राज्यसभा एक स्थायी सदन है और यह कभी भंग नहीं होती. इस उच्च सदन के सदस्य छह साल के लिए चुने जाते हैं.हर दो साल में पूरा हो जाता है एक तिहाई सदस्यों का कार्यकालव्यवस्था ऐसी है कि राज्यसभा के एक तिहाई सदस्यों का कार्यकाल हर दूसरे साल पूरा होता रहता है और उनकी जगह पर नया चुनाव होता है. वैसे अगर राज्यसभा का कोई सदस्य इस्तीफा दे दे या किसी की मृत्यु हो जाए अथवा किसी कारण से किसी सदस्य को सदन के अयोग्य घोषित कर दिया जाए, तो उसकी जगह पर उप चुनाव भी होता है.
जिस सीट के लिए बीच में चुनाव होता है, उस पर चुना गया सांसद पूरे छह साल का कार्यकाल पूरा नहीं करता, बल्कि वह उतने ही समय के लिए सांसद बनता है, जितना समय पहले के सदस्य के कार्यकाल का बचा होता है.अधिकतम 250 सदस्य हो सकते, फिलहाल 245 है संख्याभारतीय संविधान के अनुच्छेद 80 में राज्यसभा के कुल सदस्यों की अधिकतम संख्या 250 तय की गई है. इनमें से 238 सदस्य राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की ओर से चुने जाते हैं. राज्यसभा के 12 सांसदों को राष्ट्रपति सरकार की सलाह पर मनोनीत करते हैं. ये देश के प्रतिष्ठित लोग होते हैं.
फिलहाल राज्यसभा में सदस्यों की कुल संख्या 245 है.राज्यसभा के सदस्यों के लिए न्यूनतम उम्र सीमा 30 साल तय की गई है. वहीं, लोकसभा सदस्यों के लिए यह सीमा 25 साल है. राज्यसभा की जिन सीटों के लिए कार्यकाल पूरा होता जाता है, चुनाव आयोग उनके लिए नए चुनाव की घोषणा करता है. इस चुनाव में राज्यों की विधानसभा के चुने हुए विधायक ही हिस्सा ले सकते हैं. देश के पांच राज्यों में विधान परिषद भी हैं, जो राज्यसभा की तर्ज पर ही काम करती हैं. इनके सदस्य राज्यसभा चुनाव में हिस्सा नहीं ले सकते हैं
.इस फॉर्मूले से चुने जाते हैं राज्यसभा के सांसददरअसल, राज्यसभा सांसद को चुनने के लिए एक फॉर्मूला तय है. किसी भी सीट से राज्यसभा सांसद बनने के लिए कितने वोटों की जरूरत होती है, यह पहले से तय होता है. इस फॉर्मूले के तहत राज्यसभा का सदस्य बनने के लिए एक विधानसभा के कुल विधायकों की संख्या को 100 से गुणा किया जाता है. इस संख्या को राज्य की कुल राज्यसभा सीटों में एक जोड़कर उससे भाग किया जाता है. अब जो नई संख्या मिलती है, उसमें एक और जोड़ दिया जाता है. इसके बाद जो संख्या बनती है, राज्यसभा का सदस्य बनने के लिए कम से कम उतने विधायकों के वोट जरूरी होते हैं.चुनाव में नहीं होता गुप्त मतदानराज्यसभा चुनाव के लिए कोई गुप्त मतदान नहीं होता है. इसमें ईवीएम का इस्तेमाल भी नहीं किया जाता है. इस चुनाव में भाग लेने वाले हर उम्मीदवार के नाम के आगे एक से चार तक की संख्या लिखी होती है. इसके वोटर विधायक अपनी वरीयता के आधार पर उन नंबरों पर निशान लगाते हैं. फिर अपने मतपत्र को अपनी पार्टी के एजेंट को दिखाकर पेटी में डालते हैं.
यह मतपत्र अपने पार्टी के एजेंट को न दिखाने पर अवैध हो जाता है. इसी तरह से अगर मतपत्र किसी दूसरी पार्टी के एजेंट को दिखाया जाए तो भी अवैध हो जाता है.अब किसी उम्मीदवार को जीतना है तो उसे सबसे ज्यादा वोट तो चाहिए ही, साथ ही ऊपर बताए गए फॉर्मूले के हिसाब से उसे कम से कम जरूरी वोट भी हासिल करने होते हैं. लोकसभा और विधानसभा चुनाव की तरह नहीं है कि जिस सदस्य को सबसे ज्यादा वोट मिलेंगे, वह जीत जाएगा.अब अगर मान लीजिए कि किसी सदस्य को पहली वरीयता के सबसे ज्यादा वोट मिलते हैं पर वह संख्या ऊपर बताए गए फॉर्मूले के तहत जीत के लिए निकलने वाली संख्या से कम होती है तो फिर दूसरी वरीयता के वोटों की गिनती की जाती है. यानी अगर एक नंबर पाने वाले उम्मीदवार के कुल वोट सबसे ज्यादा होने के बावजूद फॉर्मूले पर खरे नहीं उतरते तो दूसरे नंबर वाले उम्मीदवार को मिले वोटों की गिनती होती है.अगर उसको मिले दूसरी वरीयता के वोट जीत के लिए जरूरी वोटों की संख्या के बराबर या उससे ज्यादा होते हैं, तो उसे विजयी घोषित कर दिया जाता है.