सागर:- आधुनिक खेती की प्रक्रिया में यूरिया का अपना ही महत्व है. किसान फसलों को उर्वरा शक्ति पहुंचने के लिए इसका उपयोग करते हैं. देखा जाए तो धान लगाने से लेकर काटने के कुछ समय पहले तक किसान यूरिया का उपयोग करते हैं. लेकिन, अक्सर किसानों में कन्फ्यूजन रहता है कि धान की फसल तैयार होने तक कितनी बार यूरिया डाली जाए, जिससे लाभ हो. सागर कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक डॉ. आशीष त्रिपाठी ने इस समस्या का सही निदान बताया है, क्योंकि कई बार ज्यादा यूरिया का प्रयोग हानिकारक हो सकता है।
सिर्फ तीन बार करें यूरिया का प्रयोग
कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, धान की फसल में कुल मिलाकर तीन बार यूरिया डालना सबसे अधिक लाभकारी है. पहली बार धान की पौध को रोपने के 21 दिन बाद यूरिया का छिड़काव किया जाता है. यह समय पौधों के लिए सबसे महत्वपूर्ण है, क्योंकि इस दौरान पौधे तेजी से बढ़ते हैं और उन्हें नाइट्रोजन की अधिक आवश्यकता होती है. दूसरी बार यूरिया तब डाली जाती है, जब पौधे में कान निकलने वाले होते हैं. यह समय फसल के फूलने और दाने बनने की प्रक्रिया का होता है और इस समय पर्याप्त नाइट्रोजन की जरूरत होती है. तीसरी बार यूरिया का उपयोग तब किया जाता है जब धान के दाने बनने और भरने की प्रक्रिया शुरू होती है. यह फसल की उपज को बढ़ाने में मदद करता है.
क्या देसी खाद वैकल्पिक व्यवस्था
देसी खाद यूरिया का एक अच्छा विकल्प हो सकती है. खासकर उन किसानों के लिए जो जैविक खेती को प्राथमिकता देते हैं. देसी खाद मिट्टी की संरचना को बेहतर बनाती है और उसमें नमी बनाए रखने की क्षमता को बढ़ाती है. यह धीरे-धीरे नाइट्रोजन और अन्य पोषक तत्वों को छोड़ती है, जिससे फसल को लंबे समय तक पोषण मिलता है. यह पर्यावरण के अनुकूल होती है और मिट्टी तथा पानी में किसी प्रकार का प्रदूषण नहीं फैलाती.
ये भी यूरिया का विकल्प
अगर यूरिया का उपयोग न किया जाए, तो गोबर की खाद या वर्मी कंपोस्ट को तीन चरणों में फसल के साथ मिलाकर उपयोग किया जा सकता है. जैसा कि यूरिया के मामले में होता है. इसके अलावा, नीम की खली, हरी खाद और फसल अवशेषों से बनी खाद भी अच्छे विकल्प हो सकते हैं.