वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 23 जुलाई को केंद्रीय बजट पेश करेंगी. बजट से ठीक पहले टैक्स रिफॉर्म की चर्चा छिड़ी है. साल 2014 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले भारतीय जनता पार्टी बड़ा टैक्स रिफॉर्म लाना चाहती थी. पार्टी की मंशा इनकम, सेल्स और एक्साइज टैक्स खत्म करने की थी. भाजपा इसके जरिए चुनाव में मिडिल क्लास और शहरी वोटर्स को अपनी तरफ खींचना चाहती थी. हालांकि पार्टी का एक धड़ा इस प्रपोजल से संतुष्ट नहीं था और इसे ठंडे बस्ते में डालना पड़ा.क्या था प्रपोजल?10 दिसंबर 2013 को भाजपा ने पहली बार इनकम, सेल्स और एक्साइज टैक्स खत्म करने की इच्छा जाहिर की.
पार्टी इस प्रस्ताव को 2014 के लोकसभा चुनाव के लिए अपने विजन डॉक्यूमेंट में भी शामिल करना चाहती थी. नितिन गडकरी विजन डॉक्यूमेंट को तैयार करने वाले पैनल की अगुवाई कर रहे थे. तब उन्होंने कहा कि कि हम लोग टैक्स को लेकर चर्चा कर रहे हैं, लेकिन कुछ तय नहीं किया है. हमारे सामने एक अच्छा प्रेजेंटेशन आया. जिसमें इनकम, सेल्स और एक्साइज टैक्स को खत्म करने की बात है.एक कार्यक्रम में इस प्रपोजल की चर्चा करते हुए गडकरी ने उसके फायदे भी गिनाए. कहा कि अभी देश का टोटल रेवेन्यू14 लाख करोड़ है और पूरे भारत में डेढ़ लाख बैंक ब्रांच ऑपरेट हो रहे हैं. मौजूदा टैक्स की जगह बैंकिंग में लेनदेन पर एक से डेढ़ प्रतिशत टैक्स लगा दें तो 40 लाख करोड़ रुपए का राजस्व प्राप्त हो सकता है. गडकरी ने सुझाव दिया कि नई व्यवस्था से ब्यूरोक्रेसी का बोझ भी कम होगा.
नितिन गडकरी ने 25 दिसंबर 2013 को ट्रेडर्स के साथ एक बैठक में भी इस प्रस्ताव का जिक्र किया. उन्होंने कहा कि पार्टी कई टैक्सेज को खत्म करना चाहती है, ताकि ब्लैक मनी और इंस्पेक्टर राज की समस्या से निपटा जा सके. उन्होंने बैंक ट्रांजैक्शंस पर ‘ट्रांजैक्शन टैक्स’ के जरिए रेवेन्यू कई गुना बढ़ाने की बात भी कही. साथ ही यह भी कहा कि इस प्रस्ताव पर पार्टी के अंदर विचार-विमर्श हो रहा है, लेकिन कोई सहमति नहीं बनी है. गडकरी ने कहा कि इस मसले पर आम लोगों की राय मांगी गई है और करीब 10000 लोगों के सुझाव मिले हैं.किसका था आइडिया?बीजेपी जिस टैक्स रिफॉर्म की बात कर रही थी वह पुणे बेस्ड थिंक टैंक ‘अर्थ क्रांति’ का आइडिया था. यह आईडिया बीजेपी के कई नेताओं को भी पसंद आया, जिसमें सुब्रमण्यम स्वामी और नितिन गडकरी शामिल थे.
अर्थ क्रांति ने 2 जनवरी 2014 को अपना आइडिया एक प्रेजेंटेशन के रूप में बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, राजनाथ सिंह, सुषमा स्वराज, अरुण जेटली, यशवंत सिन्हा और नितिन गडकरी के सामने रखा.अरुण जेटली और यशवंत सिन्हा को यह आइडिया पसंद नहीं आया. जेटली ने तर्क दिया कि इससे बिना वजह गरीबों पर टैक्स का भार पड़ेगा. तो सिन्हा ने कहा कि नए सिस्टम से भारत की टैक्स व्यवस्था दशकों पीछे चली जाएगी. 10 जनवरी 2024 आते-आते और यशवंत सिन्हा और अरुण जेटली इस प्रस्ताव का विरोध करने वालों में सबसे आगे थे.पक्ष और विपक्ष में क्या तर्क थे?प्रस्तावित टैक्स सिस्टम के पक्ष में नितिन गडकरी का तर्क था कि बैंक लेनदेन पर टैक्स, इनकम टैक्स को समाप्त करने से होने वाले राजस्व नुकसान की भरपाई कर सकता है. उन्होंने कहा, ‘अगर हम व्यय या लेनदेन कर लगभग 1 या 1.5 प्रतिशत लागू करते हैं, तो हमें 40,000 लाख करोड़ रुपये का राजस्व मिलेगा…’ दूसरी तरफ, जेटली और सिन्हा की दलील थी कि इससे गरीबों पर अनायास बोझ बढ़ेगा
ठंडे बस्ते में चला गया आइडियाउस वक्त बीजेपी की तरफ से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बनाए गए नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) भी इतने कठोर विचार से सहमत नहीं थे. हालांकि वह टैक्स रिफॉर्म की बात कर रहे थे. 15 जनवरी 2014 आते-आते बीजेपी को अपना आइडिया ड्राप करना पड़ा. 2014 में बीजेपी (BJP) सत्ता में आई और तब से लगातार जीतती आ रही है. टैक्स रिफॉर्म को लेकर अलग-अलग प्रस्ताव पर पर विचार भी करती रही है, लेकिन किसी पर बात आगे नहीं बढ़ पाई