जालौर:- जीरा एक महत्वपूर्ण मसाला है, जो हर घर में इस्तेमाल किया जाता है. जीरा न केवल स्वाद बढ़ाता है, बल्कि सेहत के लिए भी फायदेमंद होता है. जीरा ठंडी जलवायु की फसल है, जो रेतीली या चिकनी मिट्टी में अच्छी तरह उगती है. जीरे की खेती जालौर जिले में बहुत ज्यादा की जाती है. जीरे की फसल को बढ़ावा देने के लिए किसानों को कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए. इस लेख में हम आपको बताएंगे कि जीरे की फसल में कौन से रोग लग सकते हैं और उनसे बचने के लिए क्या करना चाहिए.
जीरे की फसल में लगने वाले रोग
जीरे की फसल में तीन प्रमुख रोग लग सकते हैं, जो इस प्रकार हैं:
छाचा रोग: इस रोग में जीरे के पौधे की पत्तियां और डंठल पर छाचे जैसे धब्बे पड़ जाते हैं. इससे पौधे की वृद्धि रुक जाती है और बीज का उत्पादन कम हो जाता है. इस रोग से बचने के लिए किसानों को बुवाई के समय बीज को थायोफेनेट मिथाइल 0.2% के घोल में डुबोकर बुवाई करनी चाहिए. इसके अलावा, फसल में नियमित रूप से नीम का तेल या ट्राइकोडर्मा विरिडी का छिड़काव करना चाहिए.
झुलसा रोग: इस रोग में जीरे के पौधे की पत्तियां और फूल सूख जाते हैं. इससे पौधे का रंग बदल जाता है और बीज का गुणवत्ता भी कम हो जाता है. इस रोग से बचने के लिए किसानों को फसल में नियमित रूप से बोर्डो मिक्सचर 1% का छिड़काव करना चाहिए. इसके अलावा, फसल को अधिक गाढ़ा न बनाएं और खरपतवार को नियंत्रित रखें.
उखटा या विल्ट रोग: इस रोग में जीरे के पौधे की जड़ें में फफूंदी लग जाती है, जिससे पौधे का तना काला हो जाता है और पौधा मर जाता है. इस रोग से बचने के लिए किसानों को बुवाई के समय बीज को कैप्टान 0.2% के घोल में डुबोकर बुवाई करनी चाहिए. इसके अलावा, फसल में नियमित रूप से ट्राइकोडर्मा हर्जियनम या प्सेउडोमोनास फ्लोरेसेंस का छिड़काव करना चाहिए.
जीरे की फसल का लाभ
जीरे की फसल की खेती से किसानों को कई फायदे होते हैं, जो इस प्रकार हैं:
जीरे की फसल की उपज अच्छी होती है और बाजार में इसका भाव भी अच्छा रहता है. जीरे की फसल से किसानों को अच्छा मुनाफा मिलता है.
जीरे की फसल को आसानी से भंडारण किया जा सकता है. जीरे के दाने को सुखाकर बोरों में रखा जा सकता है. इससे जीरे की फसल का बरबादी का खतरा कम होता है.