भारत में स्ट्रीट डॉग की सुरक्षा की जिम्मेदारी तय है तो पेट्स और उनके मालिकों के लिए भी नियम-कानून हैं. कुत्तों से इंसानों की सुरक्षा के लिए भी चीजें तय हैं. भारत ने खुद को रैबीज फ्री करने का संकल्प भी ले रखा है फिर भी कुत्ते राष्ट्रीय समस्या बने हुए हैं. कभी अलग-अलग हाईकोर्ट कुत्ता काटने की घटनाओं पर अपना फैसला सुनाते हैं, चिंता जताते हैं तो कभी सुप्रीम कोर्ट. फिर भी घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं. यहां तक की झगड़े भी बढ़ रहे हैं और शहरों में मारपीट आम हो चली है.
इसका मतलब साफ है कि इस मामले में जिम्मेदार एजेंसियां, उनसे जुड़े सरकारी तंत्र के लोग और कुत्ता पालक अपने दायित्व ठीक से नहीं निभा रहे हैं. अगर सब लोग अपनी भूमिका सही तरीके से निभाना शुरू कर दें तो दिक्कतें काफी हद तक कम हो जाएंगी, इसमें किसी को शक नहीं होना चाहिए.स्ट्रीट और पेट डॉग को लेकर ढुलमुल रवैयापालतू कुत्तों से लेकर स्ट्रीट डॉग पर काम करने वाले पशु चिकित्सक डॉ. विकास सिंह का नजरिया बिल्कुल स्पष्ट है. वे कहते हैं कि पूरे देश में स्ट्रीट डॉग और पेट्स को लेकर हमारा रवैया बेहद ढुलमुल है. एजेंसी सख्ती नहीं कर पा रही हैं. स्ट्रीट डॉग की नसबंदी की शर्त है कि उनका तुरंत टीकाकरण हो, हो भी रहा है लेकिन कहीं तो कोई चूक हुई है जब गाजियाबाद में एक मासूम की मौत हो जाती है.
किसी को नहीं पता कि जिस कुत्ते ने उसे काटा, वह अब कहां है? उसे कौन सा टीका लगा था? कब लगा था? वे कहते हैं कि टीके की उपलब्धता अपने आप में सवाल है. अगर है तो कोल्ड चेन नहीं मेंटेन हो पा रही है. कहने की जरूरत नहीं है कि अगर कोल्ड चेन नहीं मेंटेन होगी तो उसका प्रभाव स्वाभाविक तौर पर बेहद कम होगा. स्ट्रीट डॉग के संदर्भ में देश में अभी तक कोई ऐसा सिस्टम विकसित नहीं हो पाया है कि उनकी ट्रैकिंग हो सके. किसे टीका लगा है? कब लगा है?80-85 फीसदी स्ट्रीट डॉग की नसबंदीडॉ. विकास कहते हैं कि कागज में लक्ष्य तय है कि 80-85 फीसदी स्ट्रीट डॉग की नसबंदी होनी है, पर कितनों की हो रही है, इसका स्पष्ट लेखा-जोखा नहीं है. जिसकी नसबंदी हो उसे तुरंत रैबीज का इंजेक्शन लगना अनिवार्य है.
एक बार टीका लगने के बाद तीन साल तक उसका प्रभाव होता है, कहने की जरूरत नहीं है कि उसे फिर से लगाना होगा. बिना ट्रैकिंग के यह संभव नहीं है. लोगों को अंदाजा भी नहीं है कि यह समस्या अचानक क्यों बढ़ी?स्ट्रीट डॉग ने पालतू कुत्तों को काटाअसल में कोरोना काल में लोग घरों में बैठे थे. उन्होंने कुत्ते पाल लिए. किसी ने छोटी नस्ल के कुत्ते पाले तो किसी ने पिटबुल जैसे नस्ल के कुत्ते पालने में भी संकोच नहीं किया. कोरोना जाने के बाद लोगों के पास काम आया. जीवन सामान्य हुआ तो वही पालतू कुत्ते उनकी जिंदगी में भारी पड़ने लगे. बड़ी संख्या में लोगों ने अपने पालतू कुत्तों को सड़क पर छोड़ दिया.
इनका लालन-पालन जिस माहौल में हुआ तो वे स्ट्रीट डॉग से लड़ने की स्थिति में नहीं होते. अनेक घटनाएं ऐसी हुई जब स्ट्रीट डॉग ने ऐसे छोड़े गए पालतू कुत्तों को काट खाया. उनके मुंह में खून लग गया. अब वही कुत्ते गली-मोहल्लों में लोगों को काट खा रहे हैं.भारत को रैबीज फ्री करने का लक्ष्यडॉ. विकास कहते हैं कि ऐसे न जाने कितने कुत्तों का इलाज उन्होंने किया है, जो स्ट्रीट डॉग के हमले में घायल हुए. वे कहते हैं कि साल 2030-32 तक भारत को रैबीज फ्री करने का लक्ष्य है, और जो हालत है, उसे देखकर कहीं से नहीं लगता कि यह संभव हो पाएगा.
उन्होंने कहा कि समय आ गया है कि पेट्स के शौकीनों की काउंसिलिंग हो. लाइसेंस देने से पहले उनसे पूछा जाए कि आखिर उन्हें पेट्स की जरूरत क्यों है? अगर बच्चों के शौक के लिए पालना है तो छोटे ब्रीड के पेटस पाले जाएं. खतरनाक और बड़े ब्रीडस की अनुमति नहीं मिलनी चाहिए.
डॉक्टर ने कहा कि अभी पेट्स स्टेटस सिंबल बनते जा रहे हैं. वे लखनऊ का किस्सा बताते हैं, जहां कुछ महीना पहले पिटबुल ने घर की मालकिन की जान ले ली. जानते हैं क्यों? खुद ही जवाब देते हैं. असल में मालकिन का बेटा बॉडी बिल्डर है. जब वह अंडे खाता तो पीला वाला हिस्सा पिटबुल को खिलाता और सफेद हिस्सा खुद खाता. बॉडी बिल्डर होने की वजह से वह खुद की सेहत के प्रति तो सतर्क था लेकिन पिटबुल को अंडे का कितना पीला हिस्सा खिला गया, उसे बिल्कुल अंदाजा नहीं था. मांसाहारी वह था ही, नतीजा उसके शरीर में हार्मोन्स ने करवट ली और मालकिन को ही खा बैठा.
नियम-कानून का कड़ाई से हो पालनसुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता अश्विनी कुमार दुबे भी काफी हद तक डॉ. विकास से सहमत हैं. वे भी मानते हैं कि उपलब्ध नियम-कानून का कड़ाई से पालन सुनिश्चित हो तो बात बनेगी. पर, झोल यहीं है. सरकारी एजेंसियां अपना काम इस मामले में ठीक से नहीं कर रही हैं. वे जोड़ते हैं कि सरकार को फाइन बढ़ाना होगा. अगर किसी पेट्स की वजह से किसी दूसरे को नुकसान हुआ है तो उस पर फाइन ऐसा हो कि आदमी पांच बार सोचे और वह पेट्स की देखभाल में किसी तरह की लापरवाही न बरतें.
ऐसा करने से विवाद भी नहीं होगा और हुआ भी तो कानून के दायरे में रहते हुए निस्तारण आसान होगा.कानून में बदलाव करने का समयएडवोकेट दुबे कहते हैं कि एनिमल बोर्ड को भी इंसानों की सुरक्षा का ध्यान रखते हुए अपने नियम-कानून में बदलाव करने का समय अब आ गया है. अगर ऐसा नहीं हुआ तो शहरों में स्ट्रीट डॉग और पेट्स, दोनों कानून-व्यवस्था का मुद्दा बनने वाले हैं. जब सुप्रीम कोर्ट और अनेक हाईकोर्ट इस मामले में सरकारों को जिम्मेदार ठहरा रही हैं तो यह यूं ही नहीं है. समय आ गया है कि लोकल बॉडीज और राज्य सरकारें अब इस मामले में गंभीर हो जाएं. क्योंकि नियम-कानून पर्याप्त हैं.
बस उन्हें लागू करने की इच्छाशक्ति की कमी है या फिर यह भी हो सकता है कि सरकारी तंत्र अभी इस मामले की गंभीरता समझ ही न पा रहा हो. अगर ऐसा है तो यह और भी दुर्भाग्यपूर्ण है.स्ट्रीट डॉग को लेकर क्या कहता है कानून?पशु क्रूरता निवारण अधिनियम की धारा 38 के तहत इन्हें सुरक्षा दी गई है. कुत्तों को उनके इलाके से अचानक हटाया नहीं जा सकता. उनके साथ बुरा व्यवहार करने पर आईपीसी की धारा 428 और 429 के तहत जुर्म है. पुलिस मामला दर्ज कर सकती है और जेल भी हो सकती है. इसमें पांच साल तक की सजा का प्रावधान है.
कुत्ते को बांधकर रखने या भूखे रखने पर भी तीन माह की सजा का प्रावधान है. कुत्ता विषैला है तो भी उसे मारा नहीं जा सकता. इसके लिए पशु कल्याण संगठन से संपर्क करना होगा. लोकल बाडीज से संपर्क करना होगा.कुत्ता पालने के क्या हैं नियम?अगर कोई व्यक्ति कुत्ता पालने का शौक रखता है तो उसे नियमित टीकाकरण करवाना होगा. लाइसेंस लेना होगा. सोसायटी, पार्क में घुमाते समय सुनिश्चित करना होगा कि उसके मुंह पर मास्क लगा हो. गले में पट्टा हो. उस पर रजिस्ट्रेशन की जानकारी अंकित हो. दरवाजे पर कुत्ते से सावधान का बोर्ड लगाने का नियम भी मानना होगा.मालिक को देने होंगे 10 हजार रुपयेनोएडा में अगर कोई पालतू कुत्ता किसी को काटता है तो मालिक को 10 हजार रुपये देने होंगे. इलाज की पूरी जिम्मेदारी लेनी होगी. कुत्ते-बिल्लियों तक के लिए रजिस्ट्रेशन अनिवार्य कर दिया गया है.
टीकाकरण न कराने पर दो हजार रुपये फाइन देना होगा. पालतू कुत्ता अगर किसी को काट लेता है तो पीड़ित पुलिस में मामला दर्ज करवा सकता है. ऐसे मामले में छह महीने तक की सजा और अर्थदंड भी लगाया जा सकता है. उधर, एनिमल वेल्फेयर बोर्ड ऑफ इंडिया ने भी पेट्स मालिकों को कुछ विशेष अधिकार दे रखे हैं. उसके मुताबिक कोई भी सोसायटी लिफ्ट में जाने से कुत्ते को नहीं रोक सकती. किरायेदार भी अपने फ्लैट में कुत्ता पाल सकता है.पांच लाख रुपये का मुआवजाइतना सब होने के बावजूद पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने दोनों राज्य सरकारों और चंडीगढ़ प्रशासन को निर्देश दिए हैं कि अगर कुत्ता काटने से कोई पीड़ित सामने आता है तो एक दांत लगने पर सरकार उसे 10 हजार रुपये फाइन दे.
अदालत ने करीब 200 मामलों को निस्तारित करते हुए विस्तृत निर्देश दिए हैं, जिसमें पुलिस और प्रशासन की जिम्मेदारी अलग-अलग तय की गई है. उधर, कर्नाटक सरकार ने हाईकोर्ट में चल रही सुनवाई का जवाब देने से पहले कुत्तों के काटने से मृत्यु पर पीड़ित परिवार को पांच लाख रुपये मुआवजा देने के साथ ही कई अन्य फैसले लिए हैं. यह मामला कर्नाटक हाईकोर्ट में लंबित है.अपना काम ठीक से नहीं कर रहीं एजेंसियांदेश में उपलब्ध नियम-कानून के बावजूद अगर लोगों को अदालतों की बार-बार शरण लेनी पड़ रही है तो इसका मतलब स्पष्ट है कि एजेंसियां अपना काम ठीक से नहीं कर रही हैं. समय आ गया है कि गंभीर हो उठे इस मुद्दे पर अब केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को जागना होगा.
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