साल 1988 की 25 फरवरी भारतीय रक्षा क्षेत्र के लिए एक अहम तारीख है. तब भारत के प्रधानमंत्री थे राजीव गांधी. उन्होंने इसी दिन पार्लियामेंट के दोनों सदनों को बताया था कि भारत ने अपनी पहली मिसाइल पृथ्वी का सफल परीक्षण कर लिया है. इसके बाद तो संसद के दोनों सदनों के सदस्यों ने मेजें थपथपाकर इस उपलब्धि का स्वागत किया और आत्मरक्षा के क्षेत्र में भारत की आत्मनिर्भरता की शुरुआत की एक-दूसरे को बधाई दी थी. आइए जान लेते हैं पृथ्वी मिसाइल और भारत के मिसाइल कार्यक्रम से जुड़ी हर जानकारी.भारत को आजादी मिली तो डॉ. होमी जहांगीर भाभा के प्रयासों से परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में हमने कदम आगे बढ़ाए पर इसका उद्देश्य एटॉमिक एनर्जी का केवल शांतिपूर्वक इस्तेमाल करना था. साल 1956 में भारत में एशिया का पहला एटॉमिक रिएक्टर शुरू हुआ तो देश को लगने लगा कि हम एटम बम भी बना सकते हैं.
हालांकि, इसके लिए अभी डॉ. होमी जहांगीर भाभा को सरकार की हरी झंडी नहीं मिली थी. इसी बीच, एक-एक कर भारत को तीन लड़ाइयों का सामना करना पड़ा
युद्धों के कारण जरूरत महसूस हुईसाल 1962, 1965 और 1971 में भारत को दुश्मनों से दो-दो हाथ करने पड़े. इसी दौरान सरकार और वैज्ञानिकों को लगने लगा कि अगर देश की रक्षा करनी है तो भारत के पास मिसाइलें और एटम बम होने ही चाहिए, जिससे फिर कोई दुश्मन देश हमारी ओर आंखें उठाने की हिम्मत न कर सके. वैसे साल 1958 में ही डिफेंस साइंस ऑर्गनाइजेशन, टेक्नीकिल डेवलेपमेंट इस्टेब्लिशमेंट और डायरेक्टरोट ऑफ टेक्नीकल डेवलेपमेंट एंड प्रोडक्शन के संयोजन के बाद डिफेंस रिसर्च एंड डेवलेपमेंट ऑर्गनाइजेशन (DRDO) की स्थापना की जा चुकी थी. आज तो यह 52 प्रयोगशालाओं का एक ग्रुप बन चुका है, जो रक्षा टेक्नोलॉजी के अलग-अलग क्षेत्रों में काम कर रहा है.
सरकार ने IGMDP को दी हरी झंडीइधर, युद्धों के बाद जब यह महसूस होने लगा कि भारत के पास अपनी मिसाइलें होनी चाहिए तो डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम की अगुवाई में DRDO के वैज्ञानिकों ने इंटीग्रेटेड गाइडेड मिसाइल डेवलेपमेंट प्रोग्राम (IGMDP) का प्रस्ताव तैयार किया, जिससे मिसाइल टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में भारत को आत्मनिर्भर बनाया जा सके. यह वो दौर था जब दुनिया भर में केवल चार ही ऐसे देश थे जिनके पास अपने मिसाइल सिस्टम थे.
अपनी रक्षा के लिए साल 1983 की 26 जुलाई को भारत सरकार ने इंटीग्रेटेड गाइडेड मिसाइल डेवलेपमेंट प्रोग्राम को हरी झंडी दिखा दी.Prithvi 125 फरवरी, 1988 को भारत ने अपना पहला मिसाइल परीक्षण किया300 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया गयातब प्रधानमंत्री थीं इंदिरा गांधी. इस प्रोग्राम के तहत सेनाओं की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए पांच मिसाइल सिस्टम के डेवलेपमेंट को मंजूरी दी गई थी.
इसके लिए 300 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया गया था. कार्यक्रम की शुरुआत के समय डॉ. कलाम ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से मिसाइल सिस्टम तैयार करने के लिए जून 1987 तक का समय मांगा था. इसके लिए जोधपुर यूनिवर्सिटी में एल्गॉरिदम बनाए गए. भारतीय विज्ञान संस्थान और इसरो भी अलग-अलग हिस्सों पर काम कर रहे थे. डॉ. कलाम तब DRDO के निदेशक के रूप में सभी विभागों के बीच समन्वय कर रहे थे.इंदिरा गांधी की हत्या के बाद भी नहीं रुका प्रोग्रामसाल 1984 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गई तो लगा कि कहीं इंटीग्रेटेड गाइडेड मिसाइल डेवलेपमेंट प्रोग्राम को झटका न लगे. हालांकि, वैज्ञानिकों ने इस झटके का असर पूरे प्रोग्राम पर नहीं पड़ने दिया और 1985 में शुरुआती परीक्षण भी कर लिए. इंदिरा गांधी की हत्या के चार साल बाद वह घड़ी आ ही गई, जब 25 फरवरी 1988 को भारत ने अपना पहला मिसाइल परीक्षण कर दुनिया को एक नया संदेश दिया कि अब हमारी ओर गंदी नजरों से देखने वालों की खैर नहीं.
इसके साथ ही दुनिया के नक्शे पर भारत ने अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज करा दी.पहली स्वदेशी बैलिस्टिक मिसाइलभारत की इस पहली मिसाइल को नाम दिया गया था पृथ्वी, जिसे आज पृथ्वी-I नाम से जाना जाता है. यह सतह से सतह पर मार करने वाली सामरिक बैलिस्टिक मिसाइल है, जिसे भारत की पहली स्वदेशी बैलिस्टिक मिसाइल का तमगा मिला हुआ है. इसका पहला परीक्षण श्रीहरिकोटा के शार सेंटर से किया गया था और रेंज थी करीब 150 किलोमीटर. आज इसकी मारक क्षमता बढ़ाकर 300 किमी तक की जा चुकी है.
इसके साथ ही पृथ्वी-II और पृथ्वी-III मिसाइलों का परीक्षण ही नहीं हो चुका है, बल्कि सालों से ये भारत की रक्षा के लिए मुस्तैदी से तैनात हैं.इंटीग्रेटेड गाइडेड मिसाइल डेवलेपमेंट प्रोग्राम के तहत पृथ्वी के अलावा सतह से सतह पर मार करने में सक्षम मध्यम दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल अग्नि, सतह से आकाश में मार करने वाली कम दूरी की मिसाइल त्रिशूल, सतह से आकाश में मार करने वाली मध्यम दूरी की मिसाइल आकाश और तीसरी पीढ़ी की टैंक भेदी नाग मिसाइल भी भारत की रक्षा के लिए तैयार की गईं.प्रतिबंधों के कारण आत्मनिर्भर बना भारतभारत ने जब अपनी पहली मिसाइल का परीक्षण किया था, तब अमेरिका और सोवियत संघ के बीच कोल्ड वार जारी था. अमेरिका खुलकर पाकिस्तान का साथ दे रहा था, जबकि भारत सोवियत संघ के नजदीक था. अमेरिका को भारत का परीक्षण बिल्कुल रास नहीं आया.
अमेरिका ने भारत पर प्रतिबंधों को लगाने का सिलसिला शुरू कर दिया और भारत को मिसाइल टेक्नोलॉजी देने पर रोक लगा दी गई. इसके कारण भारत के लिए गाइडेड मिसाइल और उसके पार्ट्स या डिवाइस को खरीदना संभव नहीं रहा. यहां तक कि तब भारत को क्रायोजेनिक इंजन तकनीक देने से यह कहकर मना किया गया था कि भारत परमाणु हथियार के लिए इसका इस्तेमाल कर सकता है.