: लाइफ में हर छोटी बड़ी चीज पर फोकस देने की जरूरत होती है. कई बार ऐसा होता है कि कोई व्यक्ति किसी बात पर बहुत ज्यादा गुस्से से रिएक्ट करता है या फिर उस चीज पर फोकस नहीं कर पाता है. जी हां बात हो रही है हाइपर एक्टिविटी डिसऑर्डर की.
इस न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर में मरीज किसी भी चीज पर फोकस नहीं कर पाता है और वो उग्र तरीके से बिहेव करने लगता है. मेंटल हेल्थ के इस इश्यू को लेकर आज भी लोग कम बात करते हैं. चलिए जानते हैं कि हाइपर एक्टिविटी डिसऑर्डर (attention deficit hyperactivity disorder)क्या है और इसके क्या नुकसान हो सकते हैं.क्या है अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर (एडीएचडी)
अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर दरअसल एक मनोविकार है जो किसी व्यक्ति में 12 साल की उम्र से पहले ही उभरने लगता है. ये आमतौर पर बच्चों को अपना शिकार बनाता है. बच्चे के व्यवहार में चेंज आने लगते हैं,लेकिन आमतौर पर पेरेंट्स इन बदलावों को सामान्य मानकर अनदेखा कर देते हैं और इसका नतीजा ये निकलता है कि बच्चे की डेली लाइफ पर इसका असर पड़ने लगता है.इस सिचुएशन में बच्चा किसी भी चीज पर फोकस नहीं कर पाता है.वो बहुत ज्यादा एक्टिव हो जाता है और हर समय आवेग में रहने लगता है. वो लगातार बोलता है और कहने के बावजूद चुप नहीं होता. वो किसी बात में इंतजार नहीं कर पाता. हर किसी की बात में टांग अड़ाना, कुछ ना कुछ बोलते रहना और यहां तक कि बैठे बैठे भी उसके हाथ पैर हिलते रहते हैं. ऐसे बच्चे पढ़ाई और अन्य बातों पर फोकस नहीं कर पाते और अपने व्यवहार के चलते समाज में आइसोलेट हो जाते हैं
.कितना खतरनाक है अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डरपहले माना जाता था कि अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर केवल बच्चों को होता है लेकिन अब ये वयस्कों को भी ट्रिगर करने लगा है. बच्चे का ये व्यवहार अगर लंबे समय तक बना रहे और इसका सही इलाज ना हो तो अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर वयस्क जीवन में उथल पुथल मचा सकता है.
अगर बच्चा अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर से जूझ रहा है तो इसका असर उसकी पढ़ाई, खेल और यहां तक कि नींद पर भी पड़ सकता है जिसका खामियाजा बच्चे के साथ साथ उसके पेरेंट्स को भी उठाना पड़ता है. अगर बच्चे में इस बात के लक्षण दिख रहे हैं तो उसे ब्रीदिंग पैटर्न, मेडिटेशन, कंसलटेशन की जरूरत है. इसके लिए संबंधित डॉक्टर से परामर्श करके इलाज करवाना चाहिए