कोरोना महामारी के बाद लोग हेल्थ इंश्योरेंस के प्रति काफी सजग हो गए हैं. वे हेल्थ इंश्योरेंस को अपने जीवन में ज्यादा महत्व देने लगे है. हालांकि जब भी लोग हेल्थ इंश्योरेंश खरीदते हैं, तो वे बीमा के प्रीमियम और वह कितना कवर करता है, इस पर ज्यादा ध्यान देते हैं. लेकिन जब क्लेम करने की नौबत आती है तो कंपनियां खुद के बचाव में को-पेमेंट जैसे नियमों का हवाला देने लगती है. ऐसे में यह जरुरी है कि जब आप बीमा खरीदें तो अपने दस्तावेजों की जांच कर लें. कई हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसियों में को-पेमेंट का प्रावधान होता है.
को-पेमेंट (सह-भुगतान) क्या है ?हेल्थ इंश्योरेंस में को-पेमेंट एक ऐसा विकल्प है जो बीमा कंपनी और उपभोक्ता के करार पर आधारित होता है. इसे बीमित व्यक्ति द्वारा वहन किया जाता है. इसके तहत् बीमाधारक अपने चिकित्सा पर लगने वाले कुल खर्च के एक निश्चित प्रतिशत का भुगतान करता है. बाकि के अंश का भुगतान बीमा कंपनी करती है. आमतौर पर यह 10 से 30 प्रतिशत के बीच होता है. उदाहरण के लिए मान लीजिए, आप ने एक बेहतरीन स्वास्थ बीमा पॉलिसी खरीदी जिस पर 10 प्रतिशत के को-पेमेंट का करार किया गया है. आप अस्पताल गए और आपका बिल 1 लाख रुपये का बना. तो आपको अपने बीमा पॉलिसी के अनुसार अस्पताल में आपको 1 लाख का 10 प्रतिशत यानी 10 हजार रुपये का भुगतान करना होगा. शेष 90,000 का भुगतान बीमा कंपनी करेगी
.क्या यह पॉलिसी का अनिवार्य हिस्सा है ?इसका जवाब है बिल्कुल नहीं. यह जरूरी नहीं होता कि सभी हेल्थ इंश्योरेंस कंपनियां को-पेमेंट की सुविधा दे. यानि कुछ कंपनियां ऐसी भी होती है जो आपके हेल्थ का सारा खर्चा खुद वहन करती है.को-पेमेंट हमारी पॉलिसी को कितना प्रभावित करता है ?यदि हमारी हेल्थ इंश्योरेंस में को-पेमेंट की सुविधा होती है तो यह सीधे हमारे प्रीमियम को प्रभावित करता है. कहने का मतलब है हमारी बीमा पॉलिसी का प्रीमियम को-पेमेंट से निर्धारित होता है.