नई दिल्ली:– मान्यताओं के अनुसार अतृप्त आकांक्षाओं का उद्वेग मरने के बाद भी प्राणी को चैन लेने नहीं देता और वह सूक्ष्म शरीरधारी होते हुए भी किसी न किसी को माध्यम बनाकर अपनी आकांक्षाओं की पूर्ति का प्रयास करते हैं। जब कोई व्यक्ति मानसिक रूप से अस्थिर होता है, तनावग्रस्त या अत्यधिक भयभीत होता है, तो उसका मन कमजोर हो जाता है और एक बार मन कमजोर होने पर आस-पास के वातावरण में मौजूद नकारात्मक ऊर्जा जैसे भूत-प्रेत इत्यादि से प्रभावित हो जाता है। खराब ग्रह दशा अथवा कमजोर मनःस्थिति में व्यक्ति की सोचने-समझने की शक्ति और निर्णय लेने की क्षमता प्रभावित होती है, इससे वह बाहरी नकारात्मक ऊर्जा के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाता है।
मानसिक कमजोरी व्यक्ति को नकारात्मक सोच की ओर आकर्षित करती है। जब व्यक्ति नकारात्मक भावनाओं जैसे क्रोध, अवसाद, या ईर्ष्या से घिरा होता है, तो वह खुद को नकारात्मक ऊर्जाओं से घिरा हुआ महसूस करता है, यह स्थिति व्यक्ति के ऊपर प्रेत-आत्माओं के प्रभाव के रूप में देखी जाती है। मृत्यु के बाद जीवात्मा का अस्तित्व समाप्त हो जाता है या नहीं, इसको लेकर कुछ लोग असमंजस में रहते हैं। कुछ लोग भूत-प्रेत को मानते हैं, तो कुछ नकार देते हैं। शोध में देखा गया है कि केवल दुर्बल मनःस्थिति वाले ही प्रेतों की सवारी बनते हैं। मजबूत इच्छाशक्ति और दृढ़ मनोबल वाले व्यक्ति के उपर प्रेत अपना आधिपत्य नहीं जमा पाते हैं।
विक्षुब्ध व शंकालु मनःस्थिति वाले व्यक्ति अक्सर भूत-प्रेत न होने पर भी उनसे प्रभावित हो जाते हैं। भूत-प्रेत के अस्तित्व संबंधित प्रचलित कथा, गाथाओं के सन्दर्भ में एक तत्व सदा ही सामने आया है कि जिन व्यक्तियों को मरते समय अत्यधिक आवेश रहता है, वह अपनी उनकी उसी मनःस्थिति का परिचय भूत-प्रेत के रूप में देते हैं। उदाहरण के लिए, जैसे धन, संपत्ति से अत्यधिक प्रेम करने वाला व्यक्ति मरते समय उन वस्तुओं से अत्यधिक मोह प्रकट करता है, जिसके कारण इन चीजों से मृत्यु के बाद अलग होने पर, मुक्ति न मिलने पर वह व्यक्ति प्रेत बनकर उन्हीं स्थानों के इर्द-गिर्द मंडराता रहता है। हर व्यक्ति उपद्रवी भूत बने यह जरूरी नहीं, वह पितृ रूप में दयालु, पथ प्रदर्शक और उदारदानी भी बन सकता है।