प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार में कई बदलाव हुए. सरकार ने अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही कई परंपराओं को खत्म किया. फिर वह चाहें ‘राजपथ’ का नाम बदलकर ‘कर्तव्यपथ’ करना हो या ‘इंडिया गेट’ पर ‘नेताजी सुभाष चंद्र बोस’ की प्रतिमा को लगाना. इसी तरह वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी अपने बजट भाषणों में अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही परंपरा को खत्म कर दिया, लेकिन उनके वित्त मंत्री बनने से भी पहले मोदी सरकार रेल बजट का विलय आम बजट में कर चुकी थी. आखिर क्या थी इसके पीछे की मूल वजह?
मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में शुरुआत के 3 साल में अलग से रेल बजट पेश किया गया, लेकिन 2016 के बाद देश में रेल बजट पेश होना बंद हो गया. आखिरी रेल बजट साल 2016 में तब के रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने किया था. इसके बाद सरकार ने 9 दशकों से चली आ रही इस परंपरा को बंद करके रेल बजट को आम बजट के साथ विलय कर दिया.आखिर क्यों बंद किया गया अलग रेलवे बजट?भारत में 1924 से ही अलग रेलवे बजट पेश करने की परंपरा थी. 1947 में आजादी मिलने के बाद भी रेलवे बजट को अलग से पेश करने की परंपरा बनी रही, क्योंकि ये भारत सरकार के सबसे बड़े विभागों में से एक है. हालांकि इससे कई समस्याएं थीं, जिसे दूर करने के लिए ही मोदी सरकार ने रेल बजट का विलय आम बजट में कर दिया
सबसे पहली बार भारतीय रेल असल में भारत सरकार का एक विभाग मात्र है. इसलिए इसका अलग से बजट पेश करने का कोई ठोस कारण नहीं है. दुनिया के अधिकतर देशों में ऐसा देखने को नहीं मिलता. जिस दौर में इस परंपरा को शुरू किया गया था, तब रेल बजट पूरे सरकारी बजट के 70 प्रतिशत के बराबर था.आजादी के बाद रेलवे के राजस्व में कमी आनी शुरू हुई. बजट के अंदर इसकी हिस्सेदारी घटने लगी. इसलिए भी सरकार ने इसे अलग से पेश करना बंद कर दिया.रेलवे का बजट अलग से पेश करने से सबसे बड़ा संकट ये था कि उसके लिए सरकार को अलग नीतियां बनानी पड़ती थीं. इसकी वजह से कई बार सरकार की आर्थिक नीतियों से उसका मिलान करना मुश्किल होता था.
वहीं इससे रेलवे के आधुनिकीकरण के लिए आम बजट से पैसा देने में दिक्कत पेश आती थी. इसलिए सरकार ने इसका विलय किया.रेल बजट का आम बजट में विलय करने से सरकार को रेलवे सेक्टर में होलिस्टिक अप्रोच के साथ निवेश करने का मौका मिला.