नई दिल्ली:– कोलकाता में ट्रेनी डॉक्टर से रेप-मर्डर के मामले में आरोपी संजय रॉय समेत 6 का पॉलिग्राफ टेस्ट होगा। इनमें आर.जी. कर मेडिकल कॉलेज और हॉस्पिटल के पूर्व प्रिंसिपल संदीप घोष के अलावा पीड़ित डॉक्टर के साथ 8 अगस्त की रात डिनर करने वाले 4 डॉक्टर भी शामिल हैं। शुक्रवार को CBI ने मुख्य आरोपी संजय रॉय को सियालदा के स्पेशल कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे 14 दिन की जुडिशल कस्टडी में भेज दिया गया। आइए जानते हैं यह पॉलिग्राफ टेस्ट कैसे होता है?
सवाल: क्या होता है पॉलीग्राफ टेस्ट
जवाब: लाई डिटेक्टर मशीन को ही पॉलीग्राफ मशीन कहा जाता है। इससे यह पता लगाया जाता है कि कोई व्यक्ति सच बोल रहा है या झूठ। यह ECG मशीन की तरह ही होता है।
सवाल: कैसे काम करता टेस्ट
जवाब: पॉलीग्राफ टेस्ट इस धारणा पर आधारित है कि जब कोई झूठ बोल रहा होता है तो दिल की धड़कन, सांस लेने में बदलाव, पसीना आने लगता है। पूछताछ के दौरान कार्डियो-कफ या सेंसेटिव इलेक्ट्रोड जैसे उपकरण व्यक्ति से जुड़े होते हैं और बीपी, नाड़ी आदि को मापा जाता है।
सवाल: कैसे हुई इस टेस्ट की शुरुआत
जवाब:कहा जाता है कि ऐसा टेस्ट पहली बार 19वीं शताब्दी में इतालवी अपराध विज्ञानी सेसारे लोम्ब्रोसो ने किया गया था। उन्होंने पूछताछ के दौरान आपराधिक संदिग्धों के बीपी में परिवर्तन को मापने के लिए एक मशीन का उपयोग किया था। इसी तरह की मशीन बाद में 1914 में अमेरिकी मनोवैज्ञानिक विलियम मैरस्ट्रॉन और 1921 में कैलिफोर्निया पुलिस अधिकारी जॉन लार्सन द्वारा बनाए गए थे।
सवाल: क्या मिल जाता है सटीक जवाब?
जवाब: न तो पॉलीग्राफ टेस्ट और न ही नार्को टेस्ट वैज्ञानिक रूप से 100% सफल साबित हुए हैं। चिकित्सा क्षेत्र में भी यह विवादास्पद बने हुए हैं। हालांकि, जांच एजेंसियां इन्हें प्राथमिकता देती हैं।
सवाल: प्रूफ माने जाते हैं रिजल्ट?
जवाब: टेस्ट के रिजल्ट को ‘स्वीकारोक्ति’ नहीं माना जा सकता। हालांकि, इस तरह के टेस्ट की मदद से बाद में खोजी गई किसी भी जानकारी या सामग्री को सबूत के रूप में स्वीकार किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने ‘सेल्वी बनाम कर्नाटक राज्य’ मामले में कहा था कि यदि कोई आरोपी टेस्ट के दौरान हत्या के हथियार के स्थान का खुलासा करता है और पुलिस को बाद में उस स्थान पर हथियार मिल जाता है, तो आरोपी का बयान सबूत नहीं होगा लेकिन हथियार होगा।