पौराणिक कथा के अनुसार, जब भगवान शिव ने अपने त्रिशूल से गणेश जी का सिर उनके धड़ से अलग किया था तब वह सिर धरती के नीचे पाताल में स्थित एक गुफा में आकर गिरा था. धार्मिक शास्त्रों में गणेश जी का वास्तविक मुख चंद्रमंडल में जाने का उल्लेख मिलता है. आदि शंकराचार्य जी को जब यह गुफा मिली तब उन्होंने भगवान गणेश के शीश को स्थापित किया और यहां उनके सिर की पूजा का विधान शुरू किया. बता दें कि आज के समय में यह गुफा पाताल भुवनेश्वर के नाम से जानी जाती है.
पाताल भुवनेश्वर नाम से प्रसिद्ध यह स्थान उत्तराखंड में पिथौरागढ़ के गंगोलीहाट से 14 किलोमीटर दूर स्थित है. इस गुफा को लेकर एक मान्यता ये भी है कि भगवान शिव यहां स्वयं गणेश जी के सिर की रक्षा करते हैं और उसका ध्यान रखते हैं. पाताल भुवनेश्वर गुफा एक छोटे से क्षेत्र में कई रहस्य को समेटे हुए हैं. कहें तो रहस्य का ब्रहमांड है. गुफा में प्रवेश करने के बेहद छोटा, संकरा और टेढ़ा मेड़ा रास्ता है. गुफा में निचे जाने के लिए रास्ता तीन फीट चौड़ा और चार फीट लंबा है तथा प्रवेश के लिए लोहे की जंजीरों का सहारा लेना पड़ता है.