नई दिल्ली:- लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद बहुत अजित पवार की अगुआई वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने मुस्लिम वोटरों को साधने की कोशिश शुरू कर दी है. बुधवार को अजीत के नेतृत्व वाली राकांपा ने महाराष्ट्र में मुस्लिम समुदाय के लिए शिक्षा में आरक्षण का पुरजोर समर्थन किया है. तेलुगु देशम पार्टी के बाद एनसीपी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की दूसरी बीजेपी की सहयोगी पार्टी है जिसने शिक्षा में मुसलमानों के लिए आरक्षण का समर्थन किया है.
मुस्लिम आरक्षण की मांग क्यों?
अजीत पवार की पार्टी को पता है कि इस साल सितम्बर-अक्टूबर में होने वाले महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में सीटें जीतनी हैं तो उन्हें मुस्लिम वोट की जरूरत होगी ही, वरना उनकी पार्टी का हाल लोकसभा चुनाव की
तरह होगा, एनसीपी ने लोकसभा की चार सीटों में चुनाव लड़ा था, लेकिन केवल एक सीट पर जीत मिली थी. इसलिए लोकसभा चुनाव के खत्म होते ही अजित की पार्टी ने शिक्षा में आरक्षण की मांग की पहल शुरू कर दी है, यानी यह एनसीपी का नया पैंतरा है, जिससे विधानसभा चुनाव में मुस्लिम वर्ग का वोट हासिल किया जा सके.
बीजेपी के लिए संकट
अजीत पवार की एनसीपी महायुति सरकार का हिस्सा है और वह मुस्लिम समुदाय को शिक्षा में कोटा देने के लिए भाजपा और शिवसेना के साथ बातचीत करने की योजना बना रही है. अगर एनसीपी आरक्षण की मांग को लेकर सरकार से बात करती है तो उस समय देखना होगा कि बीजेपी का निर्णय क्या होगा, सरकार बचाने के लिए बात मानती है, या अजीत से रिश्ता ही तोड़ लेती है.
बीजेपी गठबंधन को नहीं दिया वोट
इस बार के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को महाराष्ट्र से खूब नुकसान हुआ है, 2019 में बीजेपी की सीटों की संख्या 23 से घटकर 2024 में नौ रह गई है. इस बार महाराष्ट्र में मुस्लिम वोटरों ने दलितों और आदिवासियों के साथ मिलकर महायुति के खिलाफ मतदान किया था.
मुस्लिमों को भय
पूरे देश में इस बार मुस्लिमों को डर था कि अगर इस बार बीजेपी 400 सीटों का आंकड़ा पार कर गई तो कही संविधान में न बदलाव कर दे, जिससे उनका अस्तित्व खतरे में पड़ जाए.
‘मुस्लिमों को आरक्षण मिलना चाहिए’
महाराष्ट्र एनसीपी के मुख्य प्रवक्ता उमेश पाटिल ने कहा, “हम अपनी स्थिति पर अड़े हुए हैं कि मुस्लिम समुदाय को राज्य में शिक्षा में आरक्षण मिलना चाहिए. इसके पहले भी महाराष्ट्र में शिक्षा में मुस्लिमों को आरक्षण मिले की मांग हो चुकी है, मामला बॉम्बे हाईकोर्ट तक पहुंचा था, उस समय कांग्रेस-एनसीपी की सरकार थी, इन लोगों ने मुस्लिम समुदाय को 5 प्रतिशत शैक्षणिक आरक्षण देने के फैसले को स्वीकार कर लिया था. हालांकि बाद में यह मामला ठंडे बस्ते में चला गया.
एनसीपी ने चली चाल
एनसीपी का मुस्लिम वोटरों के लिए आरक्षण की मांग इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि पिछले सप्ताह अजीत पवार के साथ अपनी बैठक में पार्टी विधायकों ने कहा था कि पार्टी को उस्मानाबाद, बारामती और शिरूर में भारी नुकसान हुआ, क्योंकि मुस्लिम मतदाताओं ने महा विकास अघाड़ी उम्मीदवारों को वोट दिया था. पार्टी को लगता है मुस्लिम वोटर अजीत के साथ आ जाए तो उनकी पार्टी को फायदा हो सकता है.
सड़कों पर उतरने की धमकी
अजीत पवार ख़ेमे के नेता, पार्टी उपाध्यक्ष सलीम सारंग ने आंध्रप्रदेश की तेलुगु देशम पार्टी की तर्ज पर महाराष्ट्र में मुलसमानों के लिए नौकरियों और शिक्षा के अलावा राजनीतिक आरक्षण की मांग की है. मांग के साथ आंदोलन सड़क तक लाने की चेतावनी भी दी है.
महाराष्ट्र में मराठा के बाद मुस्लिम आरक्षण
एक तरफ महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण की आग फिर सुलग रही है. मनोज ज़रांगे के अनशन ने राजनीतिक दलों के पसीने छुड़ाने शुरू कर दिये हैं, तो दूसरी ओर मुस्लिम आरक्षण की मांग चल पड़ी है. सत्तारूढ़ गठबंधन महायुति की सहयोगी दल एनसीपी अजीत पवार गुट ही अब सरकार को आंख दिखा रही है.
मुसलमान क्यों मांग रहे अलग आरक्षण
महाराष्ट्र में मुस्लिम आरक्षण की मांग मुस्लिम समुदाय में सामना की जाने वाली सामाजिक-आर्थिक असमानताओं और ऐतिहासिक अन्याय में निहित है. समर्थकों का तर्क है कि राज्य में मुसलमानों को सामाजिक और आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ता है, जिसमें शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार तक पहुंच काफी सीमित है. ऐतिहासिक रूप से, न केवल महाराष्ट्र में बल्कि भारत के कई हिस्सों में, मुस्लिम समुदाय को भेदभाव और हाशिए का सामना करना पड़ा है.
आरक्षण की मांग कर रहे मुसलमान
कहते हैं कि उन्हें ठीक ढंग से सरकारी नौकरियों, शैक्षणिक संस्थानों और अन्य सामाजिक स्तर पर प्रतिनिधित्व नहीं मिलता. आरक्षण से मुस्लिम समाज को उनका उचित प्रतिनिधित्व मिलेगा और इससे वह राजनीतिक रूप से भी सशक्त हो पाएंगे. इससे समुदाय का भी उत्थान हो सकता है.
कांग्रेस ने आरक्षण किया था लागू
महाराष्ट्र में 5 प्रतिशत आरक्षण कांग्रेस सरकार ने लागू किया था, जिसे कथित रूप से बॉम्बे हाई कोर्ट ने भी स्वीकार किया था. लेकिन बाद में धार्मिक आधार पर आरक्षण दिए जाने की बात कहकर बीजेपी सरकार ने आरक्षण को रद्द कर दिया था.