नई दिल्ली:– हरियाणा सरकार ने अनुसूचित जातियों की सूची में तीन जातियों के नामों को हटाने का प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा है. इस बदलाव की मांग पिछले कई वर्षों से की जा रही थी. सरकार का कहना है कि ये नाम न केवल आपत्तिजनक हैं. बल्कि इन्हें अक्सर जातिगत अपमान और गाली के रूप में इस्तेमाल किया जाता है.
कौन से नाम हटाने का प्रस्ताव है?
हरियाणा सरकार ने अनुसूचित जाति की सूची से चुरा, भंगी और मोची नामों को हटाने का प्रस्ताव दिया है.
चुरा और भंगी: अनुसूचित जाति की सूची में क्रम संख्या दो पर हैं.
मोची: इस सूची में नौवें स्थान पर है.
सरकार ने कहा है कि इन नामों को अब समाज में अपमानजनक और नकारात्मक तरीके से देखा जाता है.
केंद्र को भेजा गया पत्र
हरियाणा सरकार ने सामाजिक न्याय, अधिकारिता और अनुसूचित जाति एवं जनजाति कल्याण विभाग के माध्यम से यह पत्र केंद्र को भेजा है.
पत्र में तर्क दिया गया है कि यह नाम अब अपनी प्रासंगिकता खो चुके हैं.
ये नाम लंबे समय से जातिगत पूर्वाग्रह और भेदभाव को बढ़ावा देने वाले माध्यम बन गए हैं.
सरकार ने केंद्र से 1950 के एससी/एसटी अधिनियम में संशोधन की मांग की है ताकि इन नामों को सूची से हटाया जा सके.
पूर्व सरकार के प्रयास
2013 में भी तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के कार्यकाल में इसी प्रकार का पत्र केंद्र सरकार को भेजा गया था.
हालांकि, उस पत्र पर क्या कार्यवाही हुई, इसका कोई रिकॉर्ड मौजूद नहीं है.
वर्तमान सरकार ने इस मामले को फिर से उठाया है, और केंद्र से इस पर जल्द कार्रवाई की उम्मीद जताई जा रही है.
जातिगत नाम और पारंपरिक व्यवसाय
हरियाणा सरकार का कहना है कि ये तीनों नाम पारंपरिक व्यवसायों से जुड़े हैं, जो समाज में लंबे समय तक जातिगत पहचान के रूप में उपयोग किए गए.
चुरा और भंगी: सफाई से जुड़े पारंपरिक कामों के लिए जाने जाते हैं.
मोची: जूतों की मरम्मत और अन्य कामों से जुड़ा हुआ है.
हालांकि सरकार का मानना है कि इन नामों का नकारात्मक अर्थ में इस्तेमाल समाज में तनाव और भेदभाव को बढ़ावा देता है.
सामाजिक प्रभाव
इन नामों को हटाने से समाज में सकारात्मक बदलाव आ सकते हैं.
जातिगत पूर्वाग्रहों और भेदभाव को कम करने में मदद मिलेगी.
इन समुदायों के प्रति सम्मान और बराबरी का दृष्टिकोण विकसित होगा.
समाज में सामाजिक समरसता को बढ़ावा मिलेगा.
1950 का अधिनियम और बदलाव की प्रक्रिया
अनुसूचित जाति और जनजाति की सूची में किसी भी बदलाव के लिए केंद्र सरकार को अधिनियम में संशोधन करना होता है.
यह संशोधन संसद में कानून पास करके किया जाता है.
सूची में जातियों को शामिल करने या निकालने का अधिकार केवल केंद्र सरकार के पास है.
सरकार का तर्क
हरियाणा सरकार का कहना है कि जब इन नामों का उपयोग उपहासपूर्ण अर्थ में होता है, तो यह जातिगत पूर्वाग्रह को बढ़ावा देता है.
सरकार ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अधिनियम 1989 का जिक्र करते हुए कहा कि भेदभाव और अपमान के लिए इसमें कड़े प्रावधान हैं.
इसलिए, इन नामों को हटाना सामाजिक समरसता के लिए जरूरी है.
क्या होगा इस बदलाव का असर?
अगर केंद्र सरकार इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लेती है, तो यह न केवल हरियाणा बल्कि पूरे देश में लागू होगा.
यह बदलाव समाज में सकारात्मक संदेश देगा.
इससे उन समुदायों को मुख्यधारा में लाने में मदद मिलेगी, जिन्हें अब तक भेदभाव का सामना करना पड़ा है.
इसके अलावा, सामाजिक न्याय को बढ़ावा मिलेगा.
चुनौतियां और उम्मीदें
बदलाव के लिए संसद में कानून में संशोधन करना अनिवार्य है, जो एक लंबी प्रक्रिया हो सकती है.
सरकार को सभी पक्षों के विचार लेकर संतुलित निर्णय लेना होगा.
हालांकि, सरकार की इस पहल से उम्मीद की जा रही है कि समाज में भेदभाव और जातिगत तनाव कम होंगे.