पौधे उतने भी शांत नहीं होते, जितना उन्हें समझा जाता है. नई रिसर्च में पौधों के बारे में कई खुलासे किए गए हैं. दावा किया गया है कि पौधे भी तनाव लेते हैं. वो भी शोर मचाते हैं और काटने पर रोते हैं. अब तक यह माना गया है कि पौधे बेहद शांत होते हैं, लेकिन हालिया में रिसर्च में सामने आया कि कुछ पौधे पानी में रहने पर शोर मचाते हैं. यह अपने पास से खास तरह के सिग्नल रिलीज करते हैं. जानिए इसका पता कैसे लगाया गया.डेलीमेल की रिपोर्ट के मुताबिक, रिसर्च के दौरान सामने आया है कि कुछ ऐसे पौधे हैं जो तनाव के दौरान सिग्नल रिलीज करते हैं.
इसे आवाज के रूप में पहचाना जाता है. टमाटर, कॉर्न और तम्बाकू समेत कई ऐसे पौधे हैं जिनके पास से सेंसर्स के जरिए अल्ट्रासोनिक वाइब्रेशन रिकॉर्ड किया गया है. पहली बार इसकी पुष्टि हुई है कि पौधों से निकलने वाली आवाज चूहे जैसे जानवर 5 मीटर की दूरी से भी सुन सकते हैं.डेलीमेल की रिपोर्ट के मुताबिक, रिसर्च के दौरान सामने आया है कि कुछ ऐसे पौधे हैं जो तनाव के दौरान सिग्नल रिलीज करते हैं. इसे आवाज के रूप में पहचाना जाता है. टमाटर, कॉर्न और तम्बाकू समेत कई ऐसे पौधे हैं जिनके पास से सेंसर्स के जरिए अल्ट्रासोनिक वाइब्रेशन रिकॉर्ड किया गया है. पहली बार इसकी पुष्टि हुई है कि पौधों से निकलने वाली आवाज चूहे जैसे जानवर 5 मीटर की दूरी से भी सुन सकते हैं. शोधकर्ताओं का कहना है, पौधों की आवाज को इंसान सुन नहीं सकते क्योंकि इनकी फ्रीक्वेंसी हाई होती है.
इसलिए रिसर्च के दौरान पौधों की आवाज को सुनने के लिए फ्रीक्वेंसी को कम किया गया. ऐसा करने पर पता चला कि पौधों से वैसी ही आवाज आती है जैसे पॉपकॉर्न पकते समय आती है. ऐसी आवाज इसलिए आती है क्योंकि पौधों के तने में एयर बबल पहुंचते हैं और जब वो फटता है तो यह आवाज निकलती है. हर एक घंटे में एक बार ऐसा होता है. (फोटो साभार: DailyMail)शोधकर्ताओं का कहना है, पौधों की आवाज को इंसान सुन नहीं सकते क्योंकि इनकी फ्रीक्वेंसी हाई होती है. इसलिए रिसर्च के दौरान पौधों की आवाज को सुनने के लिए फ्रीक्वेंसी को कम किया गया. ऐसा करने पर पता चला कि पौधों से वैसी ही आवाज आती है जैसे पॉपकॉर्न पकते समय आती है. ऐसी आवाज इसलिए आती है क्योंकि पौधों के तने में एयर बबल पहुंचते हैं और जब वो फटता है तो यह आवाज निकलती है. हर एक घंटे में एक बार ऐसा होता है. रिसर्च करने वाली तेल अवीव यूनिवर्सिटी की शोधकर्ता लिलाच हाडेने कहती हैं, हमने में रिसर्च के दौरान 100 से अधिक पौधों पर अध्ययन किया. इस दौरान सामने आया कि पौधों की भी अपनी आवाज होती है. इसे पौधों के पास मौजूद चमगादड़, चूहे, कीट-पतंगे समझ पाते हैं. वो इनकी हाई फ्रीक्वेंसी की आवाज को सुनने में सक्षम होते हैं. हमें लगता है कि रिसर्च के नतीजे सेंसर्स की मदद से यह समझने में मदद करेंगे कि पौधों को कब पानी की जरूरत है.