नई दिल्ली:– राजनीति में कई बार बाहर-बाहर जो आप देखते हैं, या फिर देखना चाहते हैं, वैसा ही नहीं होता। बल्कि कई बार अंदरखाने की हलचल कुछ और ही होती है। कुछ ऐसा ही इन दिनों बिहार में भी देखने को मिल रहा है। राष्ट्रीय जनता दल के प्रमुख लालू प्रसाद यादव के बिहार के सीएम नीतीश कुमार को फिर से साथ आने के दिए गए ऑफर की खबरों के बाद बिहार की राजनीति में अचानक हलचल मच गई थी।
बीते 15 दिनों में जिस तरह से सियासी सरगर्मी रही इसने प्रदेश ही नहीं, बल्कि देश के लोगों का भी ध्यान अपनी ओर खींचा। ऐसे कयास लगाए जाने लगे कि बिहार पॉलिटिक्स में कभी भी टर्न और ट्विस्ट हो सकता है। अगर ऐसा हुआ तो इसका असर न केवल सूबे की सरकार पर बल्कि केंद्रीय स्तर की राजनीति पर भी दिखेगा।
अंदरखाने चल रहा खेल
वहीं, लालू यादव के ऑफर के पहले ही आरजेडी प्रवक्ता शक्ति सिंह यादव तथा विधायक भाई वीरेंद्र सियासत के पलटने की बातें फैला चुके थे। इसके बाद जब लालू प्रसाद यादव के ऑफर की खबरें आ गईं तो राजनीति का पहिया बड़ी तेजी से घूमा, लेकिन इससे पहले बीजेपी अपना प्लान बना चुकी थी। वैशाली में अपनी प्रगति के यात्रा के दौरान नीतीश कुमार ने तीन बार ये कहा कि एनडीए में हैं और इसी हिस्सा बने रहेंगे, वो कहीं नहीं जाने वाले। जाहिर है सीएम नीतीश के इस बयान के बाद फिर बिहार की राजनीति में फिर सबकुछ स्थिर होता हुआ दिख रहा है। हालांकि, राजनीतिक जानकार कहते हैं कि बीजेपी ने राजनीतिक हलचल पहले ही भांप ली थी, यही कारण है कि उपमुख्यमंत्री का बीजेपी के मुख्यमंत्री वाला बयान हो या नीतीश को दिल्ली में मिलने के लिए बड़े नेताओं का समय ना देना इस बात का संकेत देते हैं।
लालू से क्यों नहीं बनी बात?
बता दें कि सियासत में अंदर ही अंदर हमेशा कुछ न कुछ चलता रहता है, केवल सही समय का इंतजार रहता है और बाजी पलट जाती है। इस बीच बिहार की सियासत को लेकर अंदरखाने के सूत्र बताते हैं कि दरअसल, पिछले दिनों जो चर्चाएं चलीं वो अनायास ही नहीं थी, हालांकि, फिलहाल पूरी राजनीति पर नीतीश कुमार ने अपने बयान से पानी फेर दिया है, लेकिन इस पर पानी फिर जाने को लेकर इनसाइड स्टोरी क्या है? जानकारों की मानें तो नीतीश कुमार पिछले 18 साल से बिहार के सीएम हैं और उनके लिए जेडीयू ने एक बार फिर खुला ऐलान कर दिया है कि 2025 से 2030 …फिर से नीतीश… अब इससे जाहिर है जेडीयू के मुताबिक, मुख्यमंत्री पद पर कोई समझौता नहीं हो सकता। राजनीति के जानकारों की माने तो लालू के साथ शायद पेंच यहीं फंस गया।
इससे पहले जब लालू यादव से सीएम को लेकर सवाल किया गया था तो लालू प्रसाद यादव ने कहा कि तेजस्वी यादव ही मुख्यमंत्री बनेंगे, उनको मेरा आशीर्वाद है। इससे पहले भी जब नीतीश कुमार महागठबंधन का हिस्सा थे तो लगातार उनको कहते देखा गया कि अब इनको(तेजस्वी यादव) ही संभालना है। इन्हीं को आगे बढ़ाया जाएगा। नीतीश कुमार के साथ आने को लेकर किए गए सवाल पर लालू प्रसाद यादव ने कहा था कि आते हैं तो काहे नहीं लेंगे, रहें साथ में काम करें, हां रख लेंगे, उनकी सारी गलतियां माफ कर देंगे। लालू ने कहा कि माफ करना ही हमारा फर्ज है। हमारा तो दरवाजा खुला हुआ है और नीतीश कुमार का भी खुला रहना चाहिए।
नीतीश की बैठक में नहीं पहुंचे NDA सांसद
नीतीश कुमार के बाद भाजपा भी बिहार में एक्टिव हो गई है। बीते दिनों अमित शाह का खुद बिहार जाना भी इसी का संकेत है, भले ही शाह के दौरे का कारण कुछ और रहा हो लेकिन बीजेपी इस बार बिलकुल भी धाखा खाने के मूड में नहीं है। वहीं, नीतीश कुमार की सोमवार को हाजीपुर में प्रगति यात्रा के दौरान जिले से तीन सांसदों में एक भी विकास योजनाओं की समीक्षा बैठक में नहीं पहुंचे। तीनों सांसद एनडीए के ही हैं, ऐसे में एक भी सांसद के मीटिंग में मौजूद नहीं रहने को लेकर आमजन के बीच चर्चा का विषय रहा।
बीजेपी भी कर सकती है खेल
बता दें कि हाजीपुर के सांसद चिराग पासवान केंद्र की सरकार में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री हैं तो वहीं, वैशाली सांसद वीणा सिंह हैं। वीणा भी लोजपा रामविलास से सांसद हैं। हालांकि, वैशाली की सांसद वीणा सिंह के संसदीय क्षेत्र का केवल वैशाली विधानसभा क्षेत्र ही जिले में है। इधर, उजियारपुर के सांसद वैसे तो समस्तीपुर जिले से हैं लेकिन जिले का पातेपुर विधानसभा क्षेत्र संसदीय क्षेत्र में होने को लेकर वो बैठक में अपेक्षित थे। नित्यानंद केंद्र की सरकार में गृह राज्यमंत्री हैं। अब बिहार में चुनाव से पहले क्या नीतीश कुमार कोई बड़ा फैसला लेते हैं या फिर बीजेपी कोई नई चाल चलेगी ये तो देखने वाली बात होगी।