नई दिल्लीः – प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ के मुद्दे पर फंस गई है। लोकसभा में बीते दिन इस बिल पर हुई वोटिंग के दौरान सरकार बहुमत का आंकड़ा भी नहीं छू पाई, जबकि इस बिल को पास कराने के लिए विशेष बहुमत की अवश्यक्ता है। गौरतलब है कि मंगलवार को केंद्रीय कानून मंत्री ने संसद के निचले सदन में वन नेशन वन इलेक्शन का बिल पेश किया था। बिल पर वोटिंग के दौरान NDA के 292 सांसदों में से 269 ने बिल के पक्ष में वोट किया। वहीं विपक्ष के 237 सांसदों मे से 198 ने खिलाफ में वोटिंग की।
गौरतलब है कि ऐसा तब हुआ जब कांग्रेस और भाजपा सहित कई पार्टियों ने अपने सासंदों को व्हिप जारी किया था। इसके बावजूद भी NDA बिल पर बहुमत नहीं जुटा पाई। जिसके कारण सरकार की काफी किरकिरी हुई। कुछ लोगों तो सरकार के अल्पमत में भी होने का दावा कर रहे हैं।
हमेश अपने दम पर किसी भी बिल को पास कराने वाली केंद्र सरकार अब बैकफुट पर है। अब सरकार को विपक्षी नेताओं का साथ चाहिए, जो पहले से ही विरोध में है। हालांकि अभी तक राहुल गांधी ने खुलकर इस मुद्दे पर अपनी बात नहीं रखी है, लेकिन अखिलेश यादव और तेजस्वी यादव व ममता बनर्जी सहित कई दलों ने वन नेशन वन इलेक्शन का खुल कर विरोध किया है।
वहीं अब मामला जेपीसी (JPC) में पहुंच गया है। जेपीसी में इस बिल की खामियों पर चर्चा होगी और सुधार के सलाह दिए जाएंगे। जेपीसी में विपक्ष और सत्ता पक्ष के सदस्य रहते हैं। ऐसे में यदि बिल को कानून में तब्दील करवाना है, राहुल गांधी को सरकार को साथ लेना होगा। वहीं सरकार का भी कुछ यही प्लान है कि विपक्ष को कॉन्फिडेंस में लेकर इस बिल को लोकसभा और राज्यसभा में पास कराया जाए।
इस बिल को पेश करते समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी संसद में मौजूद नहीं थे। जिसको लेकर भी कई तरह की चर्चाए हैं। राजनीतिक बैठकों में चर्चा है कि नरेंद्र मोदी को अनुमान था कि बिल को जेपीसी में जाना है और इसका भी भान था सरकार के पास बिल पर बहुमत नहीं है। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ की संसद में पीएम मोदी किसी महत्वपूर्ण बिल के पेश होते समय अनुपस्थित रहे हों।