चंद्रमा के बाद ब्लैक होल पर भारत की नजर है. इस साल चंद्रमा पर इतिहास रचने के बाद भारत 2024 की शुरुआत ब्रह्मांड और इसके सबसे स्थायी रहस्यों में से एक ब्लैक होल के बारे में और अधिक समझने के एक और महत्वाकांक्षी योजना की शुरुआत करेगा. 1 जनवरी की सुबह भारत एक उन्नत खगोल विज्ञान वेधशाला लॉन्च करने वाला दुनिया का दूसरा देश बनने जा रहा है, जो विशेष रूप से ब्लैक होल और न्यूट्रॉन सितारों के अध्ययन के लिए तैयार है. 1 जनवरी को इसरो के ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान द्वारा यह किया जाएगा.
बता दें कि वेधशाला को XPoSAT, या एक्स-रे पोलारिमीटर उपग्रह कहा जाता हैब्रह्मांड की खोज में एक साल से भी कम समय में यह भारत का तीसरा मिशन है. जब सबसे बड़े तारों का ईंधन खत्म हो जाता है और वे ‘मर जाते हैं’, तो वे अपने गुरुत्वाकर्षण के कारण नष्ट हो जाते हैं और अपने पीछे ब्लैक होल या न्यूट्रॉन तारे छोड़ जाते हैं. भारत का उपग्रह, जिसका नाम XPoSAT या एक्स-रे पोलारिमीटर सैटेलाइट है, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के विश्वसनीय रॉकेट, पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल द्वारा लॉन्च किया जाएगा.
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, बॉम्बे के खगोल भौतिकीविद् डॉ. वरुण भालेराव ने कहा, “नासा के 2021 के इमेजिंग एक्स-रे पोलारिमेट्री एक्सप्लोरर या आईएक्सपीई नामक मिशन के बाद यह दूसरा मिशन है. मिशन तारकीय अवशेषों या ब्लैक होल समझने की कोशिश करेगा.” एक्स-रे फोटॉन और विशेष रूप से उनके ध्रुवीकरण का उपयोग करके, XPoSAT ब्लैक होल और न्यूट्रॉन सितारों के पास से विकिरण का अध्ययन करने में मदद करेगा.
इसरो बनाएगा इतिहास, एक साल के अंदर तीसरा मिशनडॉ भालेराव ने कहा कि ब्लैक होल ऐसी वस्तुएं हैं, जिनका गुरुत्वाकर्षण बल ब्रह्मांड में सबसे अधिक है और न्यूट्रॉन सितारों का घनत्व सबसे अधिक है. इसलिए मिशन अति-चरम वातावरण के रहस्यों को उजागर करेगा जो अंतरिक्ष में देखा जाता है. खगोल वैज्ञानिक ने कहा कि न्यूट्रॉन तारे छोटी वस्तुएं हैं, जिनका व्यास 20 से 30 किलोमीटर के बीच होता है.ब्रह्मांड का पता लगाने के लिए भारत के एक साल के अंदर यह तीसरा मिशन है. पहला ऐतिहासिक चंद्रयान-3 मिशन था, जिसे 14 जुलाई, 2023 को लॉन्च किया गया था और इसके बाद 2 सितंबर, 2023 को समर्पित सौर वेधशाला, आदित्य-एल1 लॉन्च किया गया था.टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च के खगोलशास्त्री डॉ एआर राव का कहना है कि यह एक अनोखा मिशन है.
उन्होंने कहा, ‘एक्स-रे ध्रुवीकरण में सब कुछ आश्चर्यचकित करने वाला है, क्योंकि खगोलीय अन्वेषण के इस क्षेत्र में सब कुछ नया है.’भारत के XPoSat उपग्रह की लागत लगभग ₹ 250 करोड़ (लगभग $ 30 मिलियन) थी, जबकि NASA IXPE मिशन के लिए $ 188 मिलियन के परिव्यय की आवश्यकता थी. नासा मिशन का नाममात्र जीवन दो साल है, जबकि XPoSAT के पांच साल से अधिक समय तक चलने की उम्मीद है.नए मिशन से साइंसटिस्ट्स का बढ़ा जोशरमन रिसर्च इंस्टीट्यूट, बेंगलुरु के वैज्ञानिक प्रोफेसर बिस्वजीत पॉल, जो XPoSAT मिशन के प्रमुख चालकों में से एक हैं, ने कहा, “यह ब्रह्मांडीय वस्तुओं में तीव्र चुंबकीय क्षेत्र की संरचना और चरम में पदार्थ और गुरुत्वार्षण विकिरण के व्यवहार की जांच करेगा.इसरो के अध्यक्ष एस सोमनाथ ने XPoSAT मिशन और सामान्य रूप से भारतीय वैज्ञानिक मिशनों के बारे में एक छोटी सी चिंता व्यक्त की है कि उपयोगकर्ता समुदाय अभी भी छोटा है.
उन्होंने कहा कि भारत के युवा खगोलविदों को इन महंगे राष्ट्रीय मिशनों में शामिल करने की जरूरत है.हालांकि, वरिष्ठ भारतीय वैज्ञानिक इस मिशन को लेकर बहुत उत्साहित हैं. सोनीपत में अशोक विश्वविद्यालय के खगोल वैज्ञानिक डॉ दीपांकर भट्टाचार्य ने कहा कि भारत लक्षित बैक-टू-बैक मिशनों के साथ ब्रह्मांड की खोज कर रहा है और देश ब्रह्मांड के कई रहस्यों को सुलझाने में बड़ा प्रभाव डाल सकता है.XPoSAT मिशन में यह प्रक्षेपण यान 60वीं उड़ान भरने के लिए तैयार है.